قبرक़ब्र आख़िरत के चरणों में से प्रथम चरण है जिसकी स्थिति हमारी आँख़ों से ओझल है। यह जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ है या जहन्नम के गड्ढ़ों में से एक गड्ढ़ा है। यदि वहाँ की यातनाओं और सज़ाओं का हमें पता चल जाए तो हम अपने मृतकों को दफ़न करना छोड़ दें, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की एक हदीस से पता चलता है।

 لولا أنْ لا تَدافنوا لدعوتُ اللهَ أنْ يُسمِعَكمْ مِنْ عذابِ القبرِ صحيح مسلم: 2868    

ऐसा न हो कि तुम (अपने मृतकों को) दफन करना छोड़ दो वरना मैं अल्लाह से दुआ करता कि वह तुम्हें क़ब्र का अज़ाब सुना दे।

परन्तु हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि मरने के बाद कोई लौट कर आता जो हमें बरज़ख़ी जीवन के सम्बन्ध में बताता, ऐसा ही एक मृतक निकला था अपनी क़ब्र से और बताई थी बरज़ख़ी जीवन में पैश आने वाली स्थिति का वृत्तांत।

इमाम अहमद ने  किताबुज़्ज़ुह्द में इमाम तहावी ने मुश्किलुल आसार में यह रिवायत नक़ल की है, हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

 حدّثوا عن بني إسرائيل ولا حرج ، كانت فيهم الأعاجيب  

बनू इस्राईल के वृत्तांत बयान करो, इसमें कोई हर्ज नहीं, उनमें अजीब अजीब बातें थीं।

फिर आपने बयान करना शुरू किया, आपने कहाः बनू इस्राइल की एक का एक समूह निकला, यहां तक कि क़ब्रिस्तान के दर्शन के उद्देश्य से अपने एक कब्रिस्तान में आए, उन्होंने कहा: क्या ही अच्छा होता कि दो रकअत नमाज़ पढ़ते और अल्लाह से दुआ करते कि हमारे लिए मरे हुए लोगों में से किसी को निकाल दे ताकि हम उस से मौत के सम्बन्ध से पूछ सकें। अतः उन लोगों ने ऐसा ही किया (कि दो रकअत नमाज़ अदा की और दुआ किया) अभी उसी स्थिति में थे कि कब्रिस्तान की एक कब्र से एक आदमी ने अपना सिर निकाला। जो गेहुवाँ रंग का था, उसकी दोनों आंखों के बीच (माथे पर) सजदे के निशान थे, उसने कहा: ऐ! लोगो तुम मुझ से क्या चाहते हो? मैं सौ साल पहले मरा हूँ, लेकिन अभी तक मुझ से मौत की गर्मी शांत नहीं हो सकी है, (फिर उसने उनसे अनुरोध किया कि) मेरे लिए दुआ करो कि मुझे अल्लाह वैसे ही (बरज़खी जीवन में) लौटा दे जैसा पहले था। (इस हदीस को अल्लामा अल-बानी ने अस्सिल-सिला अस्सहीहा 2926 मे सही कहा है)

इस किस्से से पहली बात यह समझ में आ रही है कि बनू इस्राईल के वृत्तांत बयान करना जायज़ है, तभी तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: बनू इस्राईल के वृत्तांत वर्णित करो, इसमें कोई हर्ज नहीं। शुरू इस्लाम में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बनू इस्राईल के वृत्तांत बयान करने से मना कर दिया था क्योंकि शरई अहकाम के प्रस्तुतीकरण से पहले आशंका थी कि ऐसा न हो कि उनकी कहानियाँ शरीअत का हिस्सा बन जाएं। लेकिन जब शरई अहकाम के प्रति संतोष हो गया तो आप ने बनू इस्राईल के वृत्तांत का वर्णन करने की अनुमति दे दी कि उनकी अच्छी बातें बिना प्रमाण के उनकी पुस्तकों के संदर्भ में वर्णित किया जा सकता है क्योंकि इनमें पाठ और नसीहत के सामान हैं, हाँ अगर उन किस्सों का झूठ होना स्पष्ट हो जाए तो उन्हें बयान करने की अनुमति नहीं होगी।

इस वृत्तांत से दूसरा पाठ यह मिलता है कि अवलिया के करामात सत्य हैं, अल्लाह तआला ने उन लोगों को अपनी शक्ति के चिन्ह्  दिखाने के लिए मुर्दे को जीवित कर दिया जिसने अपनी कब्र से सिर निकाल कर उनसे बात की। मुर्दे को जीवित करने की यह कोई पहली घटना नहीं है बल्कि उससे पहले बनू इस्राईल में मृतकों को जीवित करने की विभिन्न घटनाएं घट चुकी थीं। कुरआन और हदीस में इसके कई तर्क हैं जैसे अल्लाह ने बनू इस्राईल के मृत को जीवित कर दिया जिसने जिंदा होने के बाद अपने हत्यारे का पता बताया फिर मर गया, उसी तरह अल्लाह ने उस व्यक्ति का भी उल्लेख किया है जिसे अल्लाह ने सौ वर्ष तक मूर्दा रखा फिर जीवित किया ताकि उसे दिखा दे कि कैसे पुरुषों को पुनर्जीवित किया जाएगा। उसी तरह इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पक्षी को जीवित करने का किस्सा भी कुरआन में वर्णित है।

इस किस्सा से तीसरा पाठ यह मिलता है कि एक व्यक्ति जिसकी विदित विशेषतायें उसकी अच्छाई तथा तक़वा और परहेज़गारी का पता देती हैं लेकिन दुनिया से जाने के बाद कैसी सख्ती में ग्रस्त है कि सौ वर्ष गुजरने के बाद भी मौत की कठोरता में कमी न आ सकी है। मौत और उसकी कठोरता है, कब्र और उसका भींचना है, मुंकर नकीर के सवाल और उसकी तीव्रता है तथा कब्र का दबोचना भी है, अगर कब्र के इस दबोचे जाने से मुक्ति मिल सकती थी तो साद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को मिलती जिनकी मौत से अर्श इलाही कांप उठा था।

इस किस्सा से सबसे महत्वपूर्ण सबक यह मिलता है कि हमें चाहिए कि मौत को हमेशा याद रखें, महा-प्रलय के दिन की तैयारी करें, आख़िरत की फिक्र अपने मन में बैठाए रखें  और अपनी जान को अल्लाह के अज़ाब से बचाने की हमेशा चिंता करें। क्योंकि मूल सफलता  मौत के बाद की सफलता है। अल्लाह तआला ने फरमाया:

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَمَن زُحْزِحَ عَنِ النَّارِوَأُدْخِلَ الْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا مَتَاعُ الْغُرُورِ   –  آل عمران:  (185

प्रत्येक जीव मृत्यु का मज़ा चखने वाला है, और तुम्हें तो क़ियामत के दिन पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। अतः जिसे आग (जहन्नम) से हटाकर जन्नत में दाख़िल कर दिया गया, वह सफल रहा। रहा सांसारिक जीवन, तो वह माया-सामग्री के सिवा कुछ भी नहीं। (सूरः आलि-इम्रानः 185)

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