मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हम मुसलमानों की नज़र में मनुष्यों में से एक मनुष्य उसके दास तथा संदेष्टा हैं। अल्लाह की किसी विशेषता में भागीदार नहीं।

हम मुसलमानों की आस्था है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सारी मानवता में सबसे बेहतर हैं। उनसे बेहतर व्यक्ति इस धरती पर न जन्म लिया न महा प्रलय के दिन तक जन्म ले सकता है। वह सबसे अधिक नेक, सबसे संयम, सबसे अधिक उसका भय रखने वाले थे। वह अल्लाह का सबसे अधिक ज्ञान रखने वाले थे, प्राणियों में अल्लाह के सब से प्रिय, सबसे करीब और उसके पास सबसे अधिक स्थान रखने वाले थे।
स्वयं ऊपर वाले ने उनकी स्मृति को बुलंद किया (क़ुरआनः94:4) उनके महान नैतिकता के शिखर पर होने की गवाही दी। (क़ुरआनः68:4) तथा उनके जीवन की सौगन्ध खाई (क़ुरआनः

15:72)

लेकिन फिर भी वह हम मुसलमानों की नज़र में मनुष्यों में से एक मनुष्य हैं। अल्लाह के दास और संदेष्टा हैं। अल्लाह की किसी विशेषता में भागीदार नहीं, उसके किसी काम में शरीक नहीं, उसके प्रभुत्व में भागीदार नहीं। वह लाभ अथवा हानि के कण बराबर मालिक नहीं।

ज़रा देखिए कुरआन उन्हें कैसे संबोधित करता है:

لَيْسَ لَكَ مِنَ الْأَمْرِ شَيْءٌ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ أَوْ يُعَذِّبَهُمْ فَإِنَّهُمْ ظَالِمُونَ – آل عمران: 128 

“तुम्हें इस मामले में कोई अधिकार नहीं – चाहे वह उसकी तौबा क़बूल करे या उन्हें यातना दे, क्योंकि वे अत्याचारी है।” (क़ुरआनः 3: 128)

उन्हें यह अधिकार नहीं कि जिसे चाहें निर्देशित कर दें और धर्म पर जमा दें। कुरआन ने कहा:

إِنَّكَ لَا تَهْدِي مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَـٰكِنَّ اللَّـهَ يَهْدِي مَن يَشَاءُ ۚ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ – سورة القصص: 56

“तुम जिसे चाहो राह पर नहीं ला सकते, किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वही राह पानेवालों को भली-भाँति जानता है।” (क़ुरआनः 28: 128)

अल्लाह ने तो यहां तक कह दिया कि अगर आप से पहले जितने संदेष्टा और रसूल इंसानों के मार्गदर्शन हेतु भेजे गए उन्होंने भी यदि ईश्वर का भागीदार ठहराया होता तो उनके कार्य भी अकारत जाते, यहाँ तक कि आप के भी:

وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ – سورة الزمر: 65 

“तुम्हारी ओर और जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी ओर भी वह्यस की जा चुकी है कि “यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया-धरा अनिवार्यतः अकारथ जाएगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़नेवालों में से हो जाओगे।” (क़ुरआनः 39: 128)

यही नहीं बल्कि अल्लाह ने अपने नबी को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप लोगों के समक्ष यह घोषणा कर दीजिए कि:

قُل لَّا أَمْلِكُ لِنَفْسِي نَفْعًا وَلَا ضَرًّا إِلَّا مَا شَاءَ اللَّـهُ ۚ وَلَوْ كُنتُ أَعْلَمُ الْغَيْبَ لَاسْتَكْثَرْتُ مِنَ الْخَيْرِ وَمَا مَسَّنِيَ السُّوءُ ۚ إِنْ أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ وَبَشِيرٌ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ – سورة الأعراف: 188

अनुवाद: “हे मुहम्मद, उनसे कहो” मैं अपनी जाति के लिए एक लाभ और हानि का अधिकार नहीं रखता, अल्लाह जो कुछ चाहता है वह होता है और अगर मैं अनदेखी का ज्ञान होता तो कई लाभ अपने को प्राप्त कर मैं किसी को कभी नुकसान नहीं पहुँचाऊंगा, मैं केवल उन लोगों के लिए एक चेतावनी और एक अच्छी खबरदार हूं जो मेरी आज्ञा मानते हैं। ” (क़ुरआनः 7: 128)

किसी के दिल में यह अनुभव पैदा न होने पाए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें महा-प्रलय के दिन बचा लेंगे। हां! उनकी सिफारिश निश्चित रूप में प्राप्त होगी, लेकिन उसे जिसके अमल से अल्लाह प्रसन्न हो और सिफारिश करने की अनुमति भी देः

يَوْمَئِذٍ لَّا تَنفَعُ الشَّفَاعَةُ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرَّحْمَـٰنُ وَرَضِيَ لَهُ قَوْلًا – سورة طه : 109

उस दिन सिफ़ारिश काम न आएगी। यह और बात है कि किसी के लिए रहमान अनुज्ञा दे और उसके लिए बात करने को पसन्द करे। (क़ुरआनः 20:109)

ऐसा नहीं कि वह स्वर्ग के द्वार पर बैठ कर जिसे चाहें स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति दे दें। या नरक के द्वार पर बैठ कर जिसे चाहें नरक में प्रवेश होने से बचा लें।

जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर यह आयत उतरीः और अपने निकटतम नातेदारों को सचेत करो। (क़ुरआनः 26: 214) तो आपने (सम्बोधित करते हुए) कहाः ऐ क़ुरैश! या आपने उस जैसा कोई शब्द कहाः कि मैं अल्लाह के समक्ष तुम्हारा कोई अधिकार नहीं रखता अपनी जानों को (नरक से बचाने के लिए) ख़रीद लो। मैं अल्लाह के पास तुम्हारा कुछ एख़तियार नहीं रखता। ऐ बनी अवब्द मनाफ! मैं अल्लाह के पास तुम्हारा कोई अधिकार नहीं रखता ( और न ही उसकी यातना से बचा सकता हूं।) ऐ अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब! मैं अल्लाह के पास आपके लिए कोई अधिकार नहीं रखता। और ऐ सफिय्या रसूलुल्लाह की मौसी! मैं अल्लाह के पास आपके लिए भी कोई अधिकार नहीं रखता। और ऐ फातिमा बिन्त मुहम्मद! तुम मेरे माल में से जो चाहो मांग लो परन्तु अल्लाह के पास मैं तुम्हारे लिए कोई अधिकार नहीं रखता। (सही बुख़ारीः2753 सही मुस्लिमः206 )

हमारा यह विश्वास है कि अल्लाह के अलावा कोई हवा नहीं चला सकता, अल्लाह के अलावा कोई वर्षा नहीं बरसा सकता, अल्लाह के अलावा कोई आकाश और धरती की चीजों का ज्ञान नहीं रहता, अल्लाह के अलावा कोई प्रावधान नहीं दे सकता, अल्लाह के अलावा कोई प्रदान नहीं कर सकता, अल्लाह के अलावा कोई बिगड़ी नहीं नहीं बना सकता। अल्लाह के अलावा कोई बच्चा नहीं दे सकता है, अल्लाह के अलावा कोई शिफा नहीं दे सकता। अल्लाह को छोड़कर कोई कठिनाई दू नहीं कर सकता।

 एक मुसलमान का दिल अल्लाह की महिमा के अलावा किसी अन्य की महिमा में अटका नहीं होना चाहिए, अल्लाह ही से मांगे, अल्लाह ही से मदद तलब करे, अल्लाह ही पर विश्वास और भरोसा करे, अल्लाह से ही उमीद बांधे।

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