फुजूल-खर्ची से हम कैसे बचें इस विषय पर बात करने से पहले फुजूल-खर्ची के कारणों का चर्चा करना उचित मालूम होता है। सब से पहले फुज़ूलख़र्ची करने वाला अज्ञानता के कारण फुजूलखर्ची करता है, यदि उसके अंदर सही चेतना होती तो कभी फुजूलखर्ची नहीं करता। उसी प्रकार परिवार और वातावरण का भी प्रभाव होता है, आपका उठना बैठना अगर ऐसे लोगों के साथ होता है जिनको फुज़ूल-खर्ची की आदत है तो निश्चित रूप में आपके जीवन में भी फुजूलखर्ची आ जाएगी।  तंगी के बाद सुख और समृद्धि का आना भी फुजूलखर्ची का कारण बनता है, क्योंकि एक इंसान जब किसी नेमत से वंचित रहता है, फिर वही नेमत उसे मिलती है तो उसके अंदर फुजूलखर्ची की प्रवृत्ति आ जाती है। और सब से बड़ी बात यह है कि जब इंसान महाप्रलय के दिन के अंजाम से बेखबर होने के कारण नेमत का दुरुपयोग करता है।

अगर हमारे अंदर फुजूलखर्ची आ चुकी है, या हमारा जीवन सीमा से बाहर गुजर रहा है तो क्या किया जाए कि हमारे जीवन में संतुलन आ सके और फुजूलखर्ची से हम दूर हो सकें? तो इस बारे में कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं:

खर्च और उपयोग में संतुलन लाएं:

 हमें खुद कोशिश करनी होगी कि हम संतुलित जीवन गुज़ारें. उत्तम होगा कि हम अपने अतीत पर विचार करें कि कैसे हालात से हम गुज़रे हैं। कैसा संकट सहन करना पड़ा है।  फिर उन लोगों के जीवन में झांक कर देखें जो तंगी से गुजर रहे हैं। कितने हैं जो सुखी रोटी तक के मोहताज हैं। कितने हैं जिन्हें फटे कपड़े भी पहनने के लिए उपलब्ध नहीं। कितने हैं जो खुले आसमान के नीचे जीवन गुज़ारने पर मजबूर हैं, कितने हैं जो बीमारी से परेशान हैं लेकिन एक पैसा नहीं कि इलाज करा सकें। क्या खबर कि फिर हमारी वैसी ही स्थिति हो जाए जैसी उनकी है। अगर हम इस तरह से विचार करेंगे तो निश्चित रूप में हमारे जीवन में संतुलन आएगा।

फुजूलखर्ची करने वालों से दूरी अपनायें:

मनुष्य जिन लोगों के साथ उठता बैठता है उनके तरीक़े को आंख बंद करके अपनाना शुरू कर देता है, इस लिए आप अगर फुजूलखर्ची से छुटकारा प्राप्त करना चाहते हैं तो ऐसे लोगों की संगत छोड़नी होगी जो फुजूलखर्च हैं।

नेक लोगों की पवित्र जीवनी का अध्ययन करें:

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नायक, बादशाह और संदेष्टा होने के बावजूद बिल्कुल सरल और सादा जीवन गुज़ारा। आपकी पत्नी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं: मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी पेट भर कर खाना नहीं खाया, और न कभी भूख की शिकायत की, कभी ऐसा होता कि आपको भूख के कारण रात भर नींद नहीं आती, लेकिन अगले दिन फिर रोज़ा (उपवास) रख लेते। महीनों गुज़र जाता और आपके घर में आग नहीं जलती थी, पूछा गया फिर खाना क्या होता था? कहाः खुजूर और पानी।

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो आखिरी रात दुनिया में काटी, उस रात आपकी पत्नी आयशा ने दिया जलाने के लिए तेल एक पड़ोसन से उधार लिया था।

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ करते थे:

اللهم اجعل رزق آل محمد قوتا  – صحيح مسلم: 1055

“ऐ अल्लाह मुहम्मद के परिवार को इतनी रोज़ी दे कि वे जीवित रह सकें “। (सही मुस्लिमः 1055)

उनके बाद आपके सहाबा ने अति संतुलित जीवन बिताया। उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु एक दिन अपने बेटे अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के पास गये, तो मांस देखा, पूछा: यह मांस कहाँ से आया? कहा: मांस खाने की इच्छा हुई, इसलिए खरीद लिया। आपने कहा: जब जब किसी चीज की इच्छा होगी खाना शुरू कर दोगे ?  एक आदमी के व्यर्थ खर्च के लिए यही काफी है कि जिस चीज़ की इच्छा हो उसे खाने लगे।

हज़रत अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु की मृत्यु से पहले हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ियल्लाहु अन्हु उनसे मिलने गए, हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु से अनुरोध किया कि हमें कुछ नसीहत कीजिए।  तो आप ने कहा:

إنَّ الله فاتح عليكم الدنيا فلا تأخذنَّ منها إلا بلاغًا۔( احیاء علوم الدین 4/476

“अल्लाह तुम्हें दुनिया में समृद्धि प्रदान करने वाला है इस लिए उससे इतना ही प्राप्त करना जितना जीने के लिए काफी हो सके।” (इह्याओ-उलूमिद्दीन 4/476)

फुज़ूलख़र्ची के परिणाम पर विचार करें:

इतिहास में कितने ऐसे लोग गुजरे हैं जिनके जीवन में जब ऐश आराम आया और फुजूलखर्ची पर उतर आए तो सारी नेमतें जाती रहीं, गरीबी को अपने माथे की आँखों से देखा और अफ़सोस करने लगे कि काश जीवन में संतुलन रखा होता। अश्बीलिया का अमीर मुतमद बिन अब्बाद ऐश और आराम की जींदगी गुज़ारता था,  और उसके अंदर फुज़ूल ख़र्ची ऐसी आई कि  एक दिन की बात है उसकी पत्नी ने अपने महल के आसपास दरिद्र महिलाओं को देखा कि पानी बेच रही हैं और भीगी मिट्टी वाली भूमि में खड़ी हुई हैं। अमीर की पत्नी की इच्छा हुई कि अपनी बेटियों के साथ इन महिलाओं के जैसे भीगी ज़मीन की मिट्टी में खड़ी हों। मुतमद ने अपनी पत्नी की गुज़ारिश पूरी की लेकिन बहुत अजीब तरीके से। उसने आदेश दिया कि अंबर, मुश्क और काफूर को गुलाब के पानी में मिला दिया जाए और उसमें थोड़ा सा ज़ाफरान डाल दिया जाए ताकि भिगी मिट्टी की शक्ल का बन जाए। फिर उसे महल के आंगन में बिछा दिया जाए ताकि उसकी पत्नी और उसकी बेटियों उसमें दाख़िल होकर भीगी मिट्टी का आनंद प्राप्त कर सकें। लेकिन फिर क्या हुआ ?  हालात बदले, मुतमद का राज्य जाता रहा, उसे अश्बीलिया से निकाल दिया गया, उसकी गिरफ्तारी के बाद उसके माल ज़ब्त कर लिए गये, एक दिन ईद के अवसर पर उसकी बेटियाँ फटे पुराने कपड़े पहनी हुईं जेल में उससे मिलने आईं तो अपनी और अपने परिवार की ऐसी स्थिति देखकर भावनाओं से बेकाबू हो गया और फूट फूट कर रोने लगा।

शायद ऐसे ही लोगों के हालात की ओर इशारा करते हुए अल्लाह ने फरमाया:

وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ بَطِرَتْ مَعِيشَتَهَا فَتِلْكَ مَسَاكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَنْ مِنْ بَعْدِهِمْ إِلَّا قَلِيلًا وَكُنَّا نَحْنُ الْوَارِثِينَ  (القصص:58

“हमने कितनी ही बस्तियों को विनष्ट कर डाला, जिन्होंने अपनी गुज़र-बसर के संसाधन पर इतराते हुए अकृतज्ञता दिखाई। तो वे है उनके घर, जो उनके बाद आबाद थोड़े ही हुए। अन्ततः हम ही वारिस हुए “।(सूरः अल-क़सस: 58)

मौत और मरने के बाद उठाये जाने वाले दिन पर विचार करें:

जब मनुष्य यह विचार करेगा कि यह दुनिया नष्ट होने वाली है, एक दिन हमें अपने प्रभु के पास पहुंचना है, अपने एक एक प्रक्रिया का हिसाब किताब चुकाना है तो यह उसके लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन बनेगा कि वह ऐश पसंदीदा जींदगी को अलविदा कहे।  फुजूलखर्ची से बचे,  संतुलित जीवन के आदी बन जाए और नेक रास्तों में अपना धन खर्च करे।

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