रमजान के बाद क्या करेंअभी हम सब कुछ दिनों पूर्व रमज़ान का बड़े हर्ष व उल्लास से प्रतिक्षा कर रहे थे, रमज़ान आया और चला भी गया परन्तु हमें कुछ पाठ दे कर गया है जिन्हें रमज़ान के बाद जानना अति आवश्यक हैः

रमज़ान क्यों आया था?

रमज़ान का महीना हमारे ईमान की बैटरी को चार्ज करने के लिए आया था, अल्लाह ने रोज़ा का उद्देश यही बताया कि لعلكم تتقون ताकि तुम्हारे अन्दर अल्लाह का डर आ जाए, यह मानो रेफ्रेशर कोर्स था जिसका प्रभाव ग्यारह महीनों तक हम पर रहना था। हम ने ईमान की स्थिति में और अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने के लिए रमज़ान के रोज़े रखे, हम ने ईमान की स्थिति में और अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने के लिए रमज़ान का क्याम किया, हम ने ईमान की स्थिति में और अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने के लिए शबे क़दर का क्याम किया इस प्रकार हम अल्लाह की क्षमा के अधिकारी ठहरे, उस ने हमारे पिछले पापों को धुल दिया। बहुत सारी नेकियाँ प्रदान कीं…यह ऐसा ही हुआ जैसे कोई मालिक अपने सेवक को वर्ष के किसी एक दिन या महीने में बैतन के अतिरिक्त बहुत कुछ प्रदान करता है और विभिन्न प्रकार के उपहार देता है, या दूसरे शब्दों में यह समझें कि एक कम्पनी अपने कर्मचारी को वर्ष में एक महीना तक अपने व्यवसाय से सम्बन्धित ट्रैनिंग देती है तो अब इसके बाद सेवक अथवा कर्मचारी का क्या कर्तव्य बनता है…? उत्तर बिल्कुल सरल है कि सेवक के अन्दर मालिक के प्रति और कर्मचारी के अन्दर कम्पनी के प्रति वफादारी आनी चाहिए, सेवक को अपने मालिक का आज्ञाकार बन जाना चाहिए और कर्मचारी को कम्पनी के कर्तव्य पहले से उत्तम रूप में भली भांति अदा करने चाहिएं।

उसी प्रकार अल्लाह ने रमज़ान के रूप में हमें नेकियों का वसंत ऋतु प्रदान किया ताकि हमारे अन्दर अल्लाह के आदेशों के पालन की भावना पैदा हो सके और हम ग्यारह महीने तक ईमान की दृढ़ता के साथ जीवन बिता सकें।  

रमज़ान के बाद हमारा कर्तव्यः

जब बात यह ठहरी कि रमज़ान हमारे ईमान की बैटरी को चार्ज करने के लिए आया था तो प्रश्न यह है कि रमज़ान के बाद हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिएः

अल्लाह का शुक्र अदा करें: जिन को अल्लाह ने रमज़ान में रोज़ा रखने, तरावीह पढ़ने, क़ुरआन की तिलावत करने और दान देने की तौफ़ीक़ दी है उनको अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए कि यह सब कुछ अल्लाह की तौफ़ीक़ से हम कर सके हैं, यदि उसकी तौफ़ीक़ न होती तो निःसंदेह कुछ भी न कर सकते थे। इसी लिए अल्लाह ने रमज़ान की गिनती पूरी होने के बाद आदेश दियाः

 وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّـهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴿البقرة : 185﴾

और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो ( सूरः अल-बक़रा 185)

अल्लाह से दुआ करें कि वह हमारे नेक कामों को स्वीकार कर लेः हम ने जो कुछ नेकियों के काम किए हैं उनके प्रति हमें अल्लाह से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उन्हें स्वीकार कर ले। अल्लाह वाले 6 महीना तक यह दुआ करते थे कि हे अल्लाह हमें रमज़ान का महीना प्रदान कर, फिर जब रमज़ान का महीना गुज़र जाता तो इस बात की दुआ करते कि हे अल्लाह तूने जिन नेकियों की तौफ़ीक़ दी हैं उन्हें स्वीकार भी कर ले।

नेक बन्दों की मूल विशेषता होती है कि वह नेकी करने के बाद इतराते नहीं अपितु डरते रहते हैं कि कहीं अनकी इबादतें रद्द कर दी जाएं, अल्लाह तआला का आदेश हैः

وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ مَا آتَوا وَّقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَىٰ رَبِّهِمْ رَاجِعُونَ ﴿المؤمنون 60 ﴾

और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है; (सूरः अल-मूमिनून 60)

इस आयत में मोमिनों की यह विशेषता बयान की गई है कि वह इबादत करते हुए अल्लाह से डरते रहते हैं कि वह रद्द न कर दी जाएं, हज़रत आईशा रज़ि. बयान करती हैं कि उन्हों ने रसुल सल्ल. से उपर्युक्त आयत के सम्बन्ध में पूछा कि क्या इस से अभिप्राय वह लोग हैं जो शराब पीते हैं चोरी करते हैं? तो आप सल्ल. ने फ़रमायाः

لا يا بنت الصديق ولكنهم الذين يصومون ويصلون ويتصدقون وهم يخافون أن لا يقبل منهم (الترمذي : 3175، ابن ماجة 4198 وصححه الألباني )

 सिद्दीक़ की बेटी! नहीं इस से अभिप्राय वह नहीं अपितु इस से मुराद वह लोग हैं जो रोज़ा रखते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं और सदक़ा करते हैं तो उनके दिलों में भय होता है कि कहीं यह इबादतें रद्द न कर दी जाएं। (तिर्मिज़ीः3175, इब्ने माजा 4198, अल-बानी ने इसे सहीह कहा है)

इबादत का कर्म जारी रखें:हमने रमज़ान के रब की इबादत की है रमज़ान की इबादत नहीं की है इस लिए रमज़ान के जाने के बाद भी उसकी इबादत जारी रहनी चाहिए, कि जिस अल्लाह की इबादत हमने रमज़ान में की है उसी का आदेश है किः

 وَاعْبُدْ رَبَّكَ حَتَّىٰ يَأْتِيَكَ الْيَقِينُ ﴿الحجر 99 ﴾  

और अपने रब की बन्दगी में लगे रहो, यहाँ तक कि जो यक़ीनी है, (अर्थात् मृत्यु) वह तुम्हारे सामने आ जाए (सूरः अल- हिज्र 99)

इस आयत से ज्ञात यह हुआ कि इबादत का कर्म मृत्यु तक निरंतर जारी रहना चाहिए, और अल्लाह के रसूल सल्ल. को वही अमल प्यारा था जिस पर हमेशगी बरती जाए, हज़रत आइशा रज़ि. बयान फ़रमाती हैं:

“अल्लाह के रसूल सल्ल. को वही दीन प्रिय था जिसके मानने वाले उस पर हमेशगी बरतें’’। (बुख़ारी, मुस्लिम)

अल्लाह से हिदायत पर दृढ़ता की दुआ करते रहें:अल्लाह से हमें हमेशा यह दुआ करते रहनी चाहिए कि उसने हमें जो नेकियों की तौफ़ीक़ दी है और हिदायत का रास्ता दिखाया है तो उस पर क़ाइम रखे कि दिलों का मालिक अल्लाह है वह चैसे चाहता है उसे फ़ेरता रहता है, इस लिए हमें यह दुआ करनी चाहिए किः

 رَبَّنَا لَا تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ ﴿8﴾ آل عمران

 हमारे रब! जब तू हमें सीधे मार्ग पर लगा चुका है तो इसके पश्चात हमारे दिलों में टेढ़ न पैदा कर और हमें अपने पास से दयालुता प्रदान कर। निश्चय ही तू बड़ा दाता है (सूरः आले इमरान 8)

उसी प्रकार इस दुआ का बार बार इहतमाम करना चाहिएः

يا مقلب القلوب ثبت قلبي على دينك

ऐ दिलों को फेरने वाले मेरे दिल को अपने दीन पर जमा दे।

अल्लाह के रसूल सल्ल. जिनके अगले पिछले प्रत्येक पाप क्षमा कर दिए गए थे वह यह दुआ हमेशा पढ़ते रहते थे जैसा कि उम्मे सल्मा रज़ि. बयान करती हैं कि आप सल्ल, मेरे पास होते तो यह दुआ बार बार करते थे , मैं ने एक बार आप से पूछ दिया कि आखिर क्या बात है कि आप यह दुआ हमेशा पढ़ते रहते हैं:  आप सल्ल. ने फ़रमायाः

يا أم سلمة، إنه ليس آدمي إلا وقلبه بين أصبعين من أصابع الله فمن شاء أقام ومن شاء أزاغ  ( الترمذي 3522 وصححه الألباني )

ऐ उम्मे सल्मा! प्रत्येक व्यक्ति का दिल अल्लाह की ऊंगलियों में से दो ऊंगलियों के बीच है अतः वह जिसको चाहे सीधा रखे और जिस को चाहे टेड़ा कर दे।

रमज़ान के बाद अपनी पहली स्थिति की ओर पलट आनाः

यदि कोई किसी काम को शुरू करे और उस में अपना बहुमूल्य समय औऱ माल लगाए, जब काम पूर्ण होने के क़रीब हो तो उस पर ऐसी स्थिति आ जाए कि वह उसका परिणाम न देख सके, अथवा लगाए हुए पौधे का फल न खा सके तो कल्पना कीजिए कि ऐसी स्थिति में उस पर क्या गुज़रेगी…?

हमने रमज़ान में अल्लाह को वचन दिया कि हमने जो कुछ वादा किया है उस पर साल भर जमे रहेंगे, यही था रमज़ान का सेदेश लेकिन यदि इस वचन को भंग कर दें, नेकियों के बाद बुराइयां करने लगें तो मानो नेकियों को स्वयं अपने हाथ से हम ने नष्ट कर दिया, जो कुछ नेकियां की थीं उन पर पानी फ़ेर दी। इस लिए अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

 وَلَا تَكُونُوا كَالَّتِي نَقَضَتْ غَزْلَهَا مِن بَعْدِ قُوَّةٍ أَنكَاثًا  سورة النحل : 92

तुम उस स्त्री की भाँति न हो जाओ जिसने अपना सूत मेहनत से कातने के पश्चात टुकड़-टुकड़े करके रख दिया। )सूरः अल- नहल 92)

आप स्यवं विचार करें कि वह महिला जो सुबह से शाम तक अपना सूत मेहनत से कातती है, जब शाम होती है तो अपने हाथों से काते हुए मज़बूत धागों को टूकड़े टुकड़े कर देती है तो ऐसी महिला विदित है कि पागल ही होगी, और सब लोग उसे बुद्धिहीन ही कहेंगे, अल्लाह ने अपने बन्दों को यह आदेश दिया है कि वह उस महिला के समान न बनें और नेकियां करने के बाद बुराइयां करके अपनी नेकियों को नष्ट न करें ।

इस लिए आइए रमज़ान के संदेश को सुनिए और उस पर अमल करने का वादा कीजिएः

“ हे अल्लाह के बन्दो!  जिस प्रकार इस महीने में अल्लाह तआला की आज्ञाकारी प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम किया भविष्य में भी नेकियां कमाने में प्रयत्नशील रहना, देखना तुम्हारी नमाज़ें न छूटने पाए, सदैव क़ुरआन का पठन करते रहना, सोमवार और गुरुवार के रोज़े रखने रहना, अल्लाह की याद करते रहना, दान-ख़ैरात का कर्म बन्द न हो, मानव के अधिकारों का ख्याल रखना, अपनी ज़बान, नफ़्स और हृदय पर संतुलन रखना, इस महीने में संयम, उत्तम आचरण और सद्व्यवहार का जो अभ्यास किया है आने वाले ग्यारह महीनों में अपने जीवन में उन्हें लागू करने का वादा कर लो।

याद रखो! अल्लाह की जन्नत कोई गिरी पड़ी चीज़ नहीं कि निःशुल्क माल समझ कर हम उसे उठा लें, वह कोई घटिया माल नहीं कि औने पौने दे कर उसे ख़रीद लें, वह संसार की सब से महंगी और बहुमूल्य चीज़ है, उसे हम केवल रमज़ान के रोज़े और वर्ष की कुछ विशेष रातों में इबादतों के द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इस्लाम हम से वर्ष के कुछ दिनों का नहीं अपितु पूरे जीवन की मांग करता है, क़ुरआन की यही घोषणा हैः

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ادْخُلُوا فِي السِّلْمِ كَافَّةً وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ ﴿ سورة البقرة 208﴾ 

ऐ ईमान लानेवालो! तुम सब इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान के पदचिन्ह पर न चलो। वह तो तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है (सूरः अल-बक़रा 208)

قُلْ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّـهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴿١٦٢﴾ لَا شَرِيكَ لَهُ ۖ وَبِذَٰلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ ﴿١٦٣﴾ سورة الأنعام

कहो, “मेरी नमाज़ और मेरी क़ुरबानी और मेरा जीना और मेरा मरना सब अल्लाह के लिए है, जो सारे संसार का रब है (162) “उसका कोई साझी नहीं है। मुझे तो इसी का आदेश मिला है और सबसे पहला मुस्लिम (आज्ञाकारी) मैं हूँ।” (163) सूरः अल- अनआम 

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