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इस्लाम, असल शब्द सिल्म से लिया गया है जिस का अर्थ होता है कि प्रत्येक मानव एक दुसरे के तक्लिफ से सुरक्षित रहे, जैसा कि अल्लाह के नबी ने मुसलमान की परिभाषा कि है।  मुसलमान उसे कहते हैं जिस के जीभ और हाथ की परेशानियों से दुसरे मुसलमान सुरक्षित रहे।     (सही मुस्लिम और सही बुखारी )

वास्तविक मुसलमान उसे कहते हैं जो नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बताए हुए तरीके के अनुसार जीवन बिताऐ और नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लाऐ हुए सन्देश को पूरी तरह से स्वीकार करे। जैसा कि अल्लाह तआला ने रसूल करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के कार्य की तारीफ किया है,

” وَإِنَّكَ لَتَدْعُوهُمْ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ ” ( سورة المؤمنون: 73)

” और बेशक आप सीधे रास्ते की ओर बुलाते हैं।”  (सूरः अल-मूमेनूनः 73)

वह रासता जिस की ओर रसूल करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लोगों को निमंत्रण किया। उसे दो महत्वपूर्ण भाग में विभाजन किया जा सकता है।

पहला भागः एक अल्लाह तआला की ईबादत और दुसरा भागः लोगों के साथ उत्तम व्यवहार जो इस्लाम की दयालुता और अमन-शांति को प्रकट करे। जिस विषय पर संछिप में कुछ बातें आप की सेवा में प्रस्तुत करता हूँ।

इस्लाम महत्वपूर्ण उत्तम आचरण पर उत्साहित करता है। जैसा कि धन-दौलत, जान और इज़्ज़त- आबरू की सुरक्षा की गारेन्टी देता है। मानव का आदर-सम्मान और उसके अधिकार की रक्षा करता है। समाज में न्याय और बराबरी को रेवाज देता है और लोगों के बीच प्रेम, मेल-मिलाप, एक दुसरे की सहायता पर उभारता है और अच्छे कर्म पर जन्नत में दाखिल होने का वादा और जहन्नम से मुक्ति का वचन देता है।

इस्लाम कुछ महत्वपूर्ण मूल्यों को अपनाने का आदेश देता है जिस के कारण समाज में अमन-शांति और सुःख चैन उत्पन्न होता है। जैसे कि समाज के लोग एकात्र हो कर जीवन गुजारे, एक दुसरे के साथ एहसान करे, गरीबों और मिस्किनों को दान दिया जाए, भाईचारा और मार्गदर्शन, सुधार और मान्यता, शांति के प्रकटीकरण और अच्छी बातें में एक दुसरे का सहयोग, धर्मपरायणता में सहयोग और अशुद्ध कार्यों की रोकथाम के लिए समर्थन किया जाए। आपस में प्रेम के संबंध को अधिकतम करने के लिए पड़ोसी के अधिकारों, विनम्रता, मध्यस्थता, सुविधा, धैर्य, करुणा, दया, शांति, क्षमा, न्याय, समानता, और न्यायशास्त्र का सम्मान को प्रचलन करता है।

निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण इस्लामिक मुल्यों के माध्यम से दुनिया और किसी भी देश में शांति, सुरक्षा, उन्नति और प्रगति स्थापित किया जा सकता है।

  • (1)  दो व्यक्ति या दो जमाअत के बीच का झगड़ा या विवाद में सुधार विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है। झगड़ा या विवाद के कारणों को दूर किया जाए, या एक दुसरे को अल्लाह के प्रसन्नता के लिए क्षमा करने पर उत्साहित किया जाए, या कुछ ले दे कर दोनो को सुलह पर सहमत कर लिया जाए, या किसी तरीके से दोनों के बीच समझोता करा दिया जाए, जैसा कि सर्वशक्तिमान अल्लाह का आदेश है।

” وَإِنْ طَائِفَتَانِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ اقْتَتَلُوا فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا فَإِنْ بَغَتْ إِحْدَاهُمَا عَلَى الْأُخْرَى فَقَاتِلُوا الَّتِي تَبْغِي حَتَّى تَفِيءَ إِلَى أَمْرِ اللَّهِ فَإِنْ فَاءَتْ فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَأَقْسِطُوا إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ “( سورة الحجرات: 9 )

“ और अगर ईमानवालों में से दो गिरोह आपस में लड़ जाएँ तो उनके बीच सुलह कराओ। फिर अगर उन में से एक गिरोह दुसरे गिरोह पर ज़्यादती करे तो ज़्यादती करने वाले से लड़ो यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट कर आए। फिर अगर वह पलट आए तो उनके बीच इनसाफ के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ करो, बेशक अल्लाह इन्साफ करने वालों को पसन्द करता है। ” (सूरः अल-हुजरातः 9)

عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” أَلَا أُخْبِرُكُمْ بِأَفْضَلَ مِنْ دَرَجَةِ الصِّيَامِ وَالصَّلَاةِ وَالصَّدَقَةِ؟ قَالُوا: بَلَى، يَا رَسُولَ اللَّهِ قَالَ:” إِصْلَاحُ ذَاتِ الْبَيْنِ، وَفَسَادُ ذَاتِ الْبَيْنِ الْحَالِقَةُ”  ( سنن أبي داؤد , رقم الحديث:4919 )

अबू दर्दा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) से फरमायाः ” रोज़ा और नमाज़ और सद्का (दान) से ज़्यादा दर्जे वाले चीज़ों की सूचना नहीं दूँ, तो उन लोगों ने उत्तर दिया कि, क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: लोगों के बीच सुधार का प्रयास किया जाए और लोगों के बीच का बिगाड़ बरबादी है।”  (सुनन अबी दाऊदः हदीस क्रमांकः 4919)

  • (2)  प्रत्येक मुस्लिम को सलाम किया जाए: जहाँ भी कोई मुस्लिम मिले सब से पहले सलाम (स्वागत) करे, क्योंकि सलाम करने से आपस में प्रेम और मेल मिलाप अधिकतम होता है, आपस के संबंध मज़बूत होते हैं।

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” لَا تَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ حَتَّى تُؤْمِنُوا، وَلَا تُؤْمِنُوا حَتَّى تَحَابُّوا أَوَلَا أَدُلُّكُمْ عَلَى شَيْءٍ إِذَا فَعَلْتُمُوهُ تَحَابَبْتُمْ؟ أَفْشُوا السَّلَامَ بَيْنَكُمْ ” ( صحيح مسلم , رقم الحديث: 93)

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: ” जन्नत (स्वर्ग) में तुम उस समय तक प्रवेश नहीं कर सकते जब तक कि अल्लाह पर ईमान नहीं लाओ, और तुम्हारा ईमान उस समय तक पूर्ण नहीं होगा जब तक तुम एक दुसरे से प्रेम नहीं करो। क्या मैं तुम्हें उस वस्तु के प्रति न बताऊँ जिस के करने से तुम एक दुसरे से प्रेम करने लगोगे, आपस में ” सलाम ” को भैलाओ, ” (सही मुस्लिमः हदीस क्रमांकः 93)

  •  (3)   अच्छाइ की ओर लोगों को निमन्त्रण करना और बुराई और पाप के कार्यों से मना करना वह कार्य है।

जिस के करने से समाज में अच्छाइ और उन्नति उत्पन्न होती है।  लोगो का व्यवहार और आचरण उत्तम होता है। लोगों के स्वभाव में परिवर्तन होता है। अल्लाह तआला का आदेश है।

وَلْتَكُنْ مِنْكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ ” (سورة آل عمران: 104)

“ और तुम में एक दल ऐसा हो जो भलाई की ओर निमन्त्रण करे और अच्छी चीज़ें के करने पर लोगों को उत्साहित करे और बुरी वस्तुओं से रोके और ऐसे कर्तव्य करने वाले लोग सफल होंगे।” ( सूरः  )

فَقَالَ أَبُو سَعِيدٍ: سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ:” مَنْ رَأَى مِنْكُمْ مُنْكَرًا فَلْيُغَيِّرْهُ بِيَدِهِ، فَإِنْ لَمْ يَسْتَطِعْ فَبِلِسَانِهِ، فَإِنْ لَمْ يَسْتَطِعْ فَبِقَلْبِهِ، وَذَلِكَ أَضْعَفُ الْإِيمَانِ” ) صحيح مسلم , رقم الحديث: 49)

अबू सईद (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने कहा कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुना: ” तुम में से जो कोई किसी बुराई को देखे तो उसे हाथ से रोके, यदि वह उसकी क्षमता नहीं रखता तो उस बुराई को बातों और जीभ से रोके, यदि वह उस बुराई को जीभ से रोकने क्षमता नहीं रखता तो उस बुराई को हृदय में बुरा समझे और यह ईमान का सब से कमज़ोर वर्ग है।”  (सही मुस्लिमः हदीस क्रमांकः 49)

  • (4)  सूचना और खबर की सच्चाइ को जाँच परख करने के बाद उस बर विश्वास करना चाहिये, क्यों कि बिना जाँच प्रताल के कुछ खबरों पर विश्वास के कारण मानव परेशान हो जाता है और खबर देने वाले व्यक्ति के खलत फहमी के कारण नुकसान उठाना पड़ता है,

” يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنْ جَاءَ كُمْ فَاسِقٌ بِنَبَأٍ فَتَبَيَّنُوا أَنْ تُصِيبُوا قَوْماً بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوا عَلَى مَا فَعَلْتُمْ نَادِمِينَ” (سورة الحجرات: 6)

“ ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अगर कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो छानबीन कर लिया करो, कहीं ऐसा न हों कि तुम किसी गिरोह को बेखबरी में हानि पहुँचा बैठो और फिर अपने किये पर तुम्हें पछतावा हो। ” (सूराः हुजरातः 6)

  • (5) धर्म और धर्मपरायणता में एक दुसरे का सहयोगः प्रत्येक मुस्लिम पर अनिवार्य है कि वह दुसरे मुस्लिम भाई का पुण्य और अच्छे कार्य में सहयोग और समर्धन करे और पाप और अशुद्ध व्यवहार के कार्य में समर्धन नहीं करे जैसा कि सर्वशक्तिमान अल्लाह का आदेश है।

وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلا تَعَاوَنُوا عَلَى الْأِثْمِ وَالْعُدْوَانِ  (سورة المائدة: 2)

“ जो काम नेकी और अल्लाह- भक्ति  के हैं उनमें सब को सहयोग दो और जो गुनाह और ज़्यादती के काम हैं, उनमें किसी को सहयोग न दो, अल्लाह से डरो, उसकी सजा बहुत सख्त है।”  (सूरः अल-माईदाः 2)

 عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: “مَنْ نَفَّسَ عَنْ مُؤْمِنٍ كُرْبَةً مِنْ كُرَبِ الدُّنْيَا، نَفَّسَ اللهُ عَنْهُ كُرْبَةً مِنْ كُرَبِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ، وَمَنْ يَسَّرَ عَلَى مُعْسِرٍ، يَسَّرَ اللهُ عَلَيْهِ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ، وَمَنْ سَتَرَ مُسْلِمًا، سَتَرَهُ اللهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ، وَاللهُ فِي عَوْنِ الْعَبْدِ مَا كَانَ الْعَبْدُ فِي عَوْنِ أَخِيهِ، وَمَنْ سَلَكَ طَرِيقًا يَلْتَمِسُ فِيهِ عِلْمًا، سَهَّلَ اللهُ لَهُ بِهِ طَرِيقًا إِلَى الْجَنَّةِ، وَمَا اجْتَمَعَ قَوْمٌ فِي بَيْتٍ مِنْ بُيُوتِ اللهِ، يَتْلُونَ كِتَابَ اللهِ، وَيَتَدَارَسُونَهُ بَيْنَهُمْ، إِلَّا نَزَلَتْ عَلَيْهِمِ السَّكِينَةُ، وَغَشِيَتْهُمُ الرَّحْمَةُ وَحَفَّتْهُمُ الْمَلَائِكَةُ، وَذَكَرَهُمُ اللهُ فِيمَنْ عِنْدَهُ، وَمَنْ بَطَّأَ بِهِ عَمَلُهُ، لَمْ يُسْرِعْ بِهِ نَسَبُهُ ” )صحيح مسلم , رقم الحديث: 2699)

अबू हुरैरा (रज़ीयल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: “ जो किसी मुस्लिम से दुनिया के कष्टो में से किसी कष्ट को दूर करेगा तो अल्लाह तआला उस के क़ियामत के दिन के कष्टों में से किसी कष्ट को दूर करेगा और जो व्यक्ति किसी परिशान हाल व्यक्ति से उसकी परेशानी को खत्म करेगा तो अल्लाह दुनिया और आखिरत में उस की परेशानी को समाप्त करेगा, और जिसने किसी मुस्लिम भाई के खामी को छुपाया अल्लाह क़ियामत के दिन उस के खामियों को गुप्त रखेगा और अल्लाह बन्दों की सहायता करता रहता है जब तक बन्दा दुसरे भाईयों की सहायता करता है और जो (धार्मिक) ज्ञान प्राप्त करने के लिए घर से निकल जाता है तो अल्लाह उस के लिए जन्नत (स्वर्ग) का रास्ता सरल कर देता है और जब कोई दल और टोली अल्लाह के घरों में से किसी घर में बैठ कर अल्लाह की पुस्तक पढ़ते और पढ़ाते हैं तो उन पर अल्लाह की ओर से कृपा की वर्षा होती है और अल्लाह की दया तथा रहमतें उसे घेर लेती हैं और फरिश्ते उन्हें अपनी रक्षा में ले लेते हैं और अल्लाह तआला इन समूह की प्रशंसा अपने पास उपस्थित बन्दों के पास करते हैं और जिसका कर्तव्य और कर्म अच्छा नहीं हो तो उसका वंश उसे लाभ नहीं पहुंचाऐगा।” (सही मुस्लिमः हदीस क्रमांकः 2699)

  • (6)  लोगों के साथ अच्छा स्वभावः

इस संसार में लोगों के बीच रह कर लोगों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। लोगों से मिल जुल कर रहते हुए और उन की अशुद्ध व्यवहार पर सब्र करते हुए उत्तम स्वभाव पेश किया जाए। ताकि समाज के उन्नति की गति अधिक से अधिकतम हो और समाज में सुधार का चलन हो।

  • (7)   संयम और सरलीकरण का रास्ता इख्तियार किया जाए। किसी भी कार्य में बीच का रासता चयन करेः

वह रासता चुने जो सरल हो, हमेशा अतिवाद से दूर रहें।

عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:” يَسِّرُوا وَلاَ تُعَسِّرُوا وَبَشِّرُوا وَلاَ تُنَفِّرُوا “ (صحيح البخاري ,رقم الحديث,69)

अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: ” लोगों के साथ आसानी करो और लोगों के साथ सख्ती न करो और लोगों को शुभ सूचना दे कर खुश करो और दूर तथा घृणा नहीं करने दो” (सही बुखारीः हदीस क्रमांकः69)

  • (8) न्याय और समानताः

न्याय और समानता प्रगति और उन्नति के लिए बहुत महत्वपूर्ण चाबी है। जिस समाज में न्याय और समानता का चलन हो, वह समाज के पूर्ण व्यक्ति हर्षा के साथ जीवन बीताते हैं। इस लिए अल्लाह तआला ने अपने दासों को प्रत्येक स्थिति में हर एक के साथ न्याय करने का आदेश दिया है,

قال تعالى: “ إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُ بِالْعَدْلِ وَالْأِحْسَانِ وَإِيتَاءِ ذِي الْقُرْبَى وَيَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ وَالْبَغْيِ يَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ” (سورة النحل:90)

अल्लाह तआला का कथन हैः “ बेशक अल्लाह न्याय और इह्सान और नातेदार के हक़ अदा करने के आदेश देता है और बुराई और अश्लीलता और अत्याचार व ज़्यादती से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम शिक्षा लो।”    (सूरः अन-नहलः 90)

قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” إِنَّ الْمُقْسِطِينَ عِنْدَ اللهِ عَلَى مَنَابِرَ مِنْ نُورٍ عَنْ يَمِينِ الرَّحْمَنِ عَزَّ وَجَلَّ، وَكِلْتَا يَدَيْهِ يَمِينٌ، الَّذِينَ يَعْدِلُونَ فِي حُكْمِهِمْ وَأَهْلِيهِمْ وَمَا وَلُوا ” )صحيح مسلم , رقم الحديث: 1827)

रसूल करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” बैशक न्यायी लोग अल्लाह के पास नूर (प्रकाश) के मिम्बर (चबूतरे) पर अल्लाह के दायें दिशा में होंगे और अल्लाह तआला के दोनों हाथ दाये हैं और जो लोग अपने फैसले में न्याय करते हैं जिसका उनको जिम्मेदार बनाया गया है और  घर वालों के बीच भी न्याय करते हैं।  ”  (सही मुस्लिमः हदीस क्रमांकः 2699)

  • (9)  क्षमा और दरगुज़रः

 अल्लाह तआला ने इस्लाम के अनुयायियों को लोगों की खलती – भूल चूक होने पर माफ करने का आदेश दिया है। यदि कोई मानव किसी दुसरे मानव को अल्लाह की प्रसन्नता के कारण माफ कर देता है तो अल्लाह तआला ऐसे व्यक्तियों को क़ियामत के दिन उसे क्षमा करेगा जैसा कि अल्लाह तआला ने पवित्र क़ुरआन में लोगों को एक दुस रे के क्षमा करने पर उत्साहित किया है। अल्लाह का फरमान है।

” وَإِنْ تَعْفُوا وَتَصْفَحُوا وَتَغْفِرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ ”  (التغابن: 14)

“ और अगर तुम माफ करो, दरगुज़र  करो और क्षमा करो तो  बेशक अल्लाह क्षमा करने वाला और दयालु है।” (सूरः अत-तग़ाबुनः 14)

” وَلْيَعْفُوا وَلْيَصْفَحُوا أَلَا تُحِبُّونَ أَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ ”   (النور: 22)

“ और उन्हें माफ कर देना चाहिये और दरगुज़र करना चाहिये । क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें माफ करे ? और अल्लाह का गुण यह है कि वह क्षमाशील और दयावान है। ” (सूरः अन-नूरः 14)

  • (10)   बड़ों का आदर तथा सम्मान और छोटों से प्रेमः

قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” لَيْسَ مِنَّا مَنْ لَمْ يَرْحَمْ صَغِيرَنَا وَيَعْرِفْ شَرَفَ كَبِيرِنَا ” ( سنن الترمذي , رقم الحديث: 1920(

रसूल करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” जो हम में से छोटों पर कृपा न करे और बड़ों के स्थान का सम्मान न करे तो वह हमारे रास्ते पर नहीं।”  (सुनन तिर्मिज़ीः हदीस क्रमांकः 2699)

قَالَ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” مَنْ لَمْ يَرْحَمْ صَغِيرَنَا، وَيَعْرِفْ حَقَّ كَبِيرِنَا فَلَيْسَ مِنَّا “ (سنن أبي داؤد , رقم الحديث: 4943)

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः  ” जो हम में से छोटों पर दया न करे और बड़ों के अधिकार को तस्लीम न करे तो वह हमारे रास्ते पर नहीं।” (सुनन अबी दाऊदः हदीस क्रमांकः 2699)   “

  • (11)   हाणिकारण वस्तुओं से दूरी और उस से घृणाः जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।

” يأمرهم بالمعروف وينهاهم عن المنكر ويحل لهم الطيبات ويحرم عليهم الخبائث”  )  الأعراف (157.

“ और वह (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के आदेश से) उन्हें नेकी की हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं और उनके लिए पाक चीजें हलाल और नापाक (अपवित्र) चीज़ें हराम करते हैं ”… (सूराः अल-आराफः 157)

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” مَنْ يَأْخُذُ عَنِّي هَؤُلَاءِ الكَلِمَاتِ فَيَعْمَلُ بِهِنَّ أَوْ يُعَلِّمُ مَنْ يَعْمَلُ بِهِنَّ ؟ فَقَالَ أَبُو هُرَيْرَةَ: فَقُلْتُ: أَنَا يَا رَسُولَ اللَّهِ، فَأَخَذَ بِيَدِي فَعَدَّ خَمْسًا وَقَالَ: ” اتَّقِ المَحَارِمَ تَكُنْ أَعْبَدَ النَّاسِ، وَارْضَ بِمَا قَسَمَ اللَّهُ لَكَ تَكُنْ أَغْنَى النَّاسِ، وَأَحْسِنْ إِلَى جَارِكَ تَكُنْ مُؤْمِنًا، وَأَحِبَّ لِلنَّاسِ مَا تُحِبُّ لِنَفْسِكَ تَكُنْ مُسْلِمًا، وَلَا تُكْثِرِ الضَّحِكَ، فَإِنَّ كَثْرَةَ الضَّحِكِ تُمِيتُ القَلْبَ ”  ( سنن الترمذي وحسنه الشيخ الألباني , )رقم الحديث: 2305)

अबू हुरैरा (रज़ीयल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: ” कौन मुझ से यह कुछ शिक्षा प्राप्त करता है तो वह उस शिक्षा के अनुसार अमल करता या उस आदमी को यह शिक्षा देता है जो इस के अनुसार अमल करे, तो अबू हुरैरा (रज़ीयल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि मैं ने कहाः मैं ऐ अल्लाह के रसूल ! तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मेरा हाथ पकड़ कर  पांच गिनवाया और फरमायाः अल्लाह की ओर से अवैध की हुई वसेतुओं से दूर रहो, तुम सब से ज़्यादा अल्लाह के पुज्य बन्दे होगे और अल्लाह ने जितना तुम्हें दिया है उस से खुश रहो, सब से सन्तुष्ट लोगों में से होगे और अपने पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करो, तुम्हारे मूमिन होने की निशानी है और तुम वास्तविक मुस्लिम उसी समय रहोगे जब तुम लोगों के लिए वही चीज़ पसन्द करो जो अपने लिए पसन्द करते हो और बहुत ज़्यादा न हँसो, बैशक अधिक हँसी हृदय को मृत्यु कर देती है।” (सुनन तिर्मिज़ीः हदीस क्रमांकः 2305)  ­­

  • (12)  अप्राधियों को सजा दिया जाए और अत्याचार करने वालों को उनके अत्याचार के अनुसार बदला दिया जाएः

 अप्राध और अप्राधियों पर अंकुश उसी समय लगेगा जब अप्राधियों को उस के अप्राध के अनुसार सज़ा दिया जाए, अत्याचार करने वाले व्यक्तियों को उस के अत्याचार के अनुसार सज़ा दिया जाए। ताकि अप्राधि अप्राध करने से पहले भयभित हो और डर के कारण अप्राध और दुसरों पर ज़ुल्म न करे। जैसा कि अल्लाह तआला ने एक शक्तिशाली नियम लगाया है। अल्लाह का इर्शाद है।

” و لكم في القصاص حياة يا اولي الألباب لعلكم تتقون ”  (سورة البقرة: 179)

अक्ल और समझवालों, तुम्हारे लिए किसास में जिन्दगी है, ताकि तुम इस कानून के उल्लंघन से बचोगे।

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