3- जातिवाद तथा रंग और वंश के आधार पर भेद भाव का खंडनः 

अन्तिम हज के भाषण में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीसरी बात जो कही उसका सम्बन्ध जातिवाद तथा रंग और वंश के आधार पर भेद भाव को समाप्त करने से था। अतः आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने  रंग और वंश के अन्तर को मिटाते हुए कहॉः

يَا أَيُّهَا النَّاسُ، أَلا إِنَّ رَبَّكُمْ وَاحِدٌ، وَإِنَّ أَبَاكُمْ وَاحِدٌ، أَلاَ لاَ فَضْلَ لِعَرَبِيٍّ عَلَى أَعْجَمِيٍّ، وَلاَ لَعَجَمِيٍّ عَلَى عَرَبِيٍّ، وَلا لأَحْمَرَ عَلَى أَسْوَدَ، وَلا أَسْوَدَ عَلَى أَحْمَرَ إِلاَّ بِالتَّقْوَى

ऐ लोगो! तुम्हारा रब एक है, और तुम्हारे पिता आदम एक हैं, सुन लो कि न किसी अरबी को अजमी पर कोई प्राथमिकता प्राप्त है और न किसी अजमी को किसी अरबी पर, न काला गोरे से बेहतर है और न गोरा काले से, हाँ! श्रेष्ठता और सम्मान का कोई मापदंड है तो वह तक़वा (अल्लाह का भय) है “इंसान सारे ही आदम की संतान हैं और आदम की हक़ीक़त इसके अलावा क्या है कि वे मिट्टी से बनाए गए। अब प्राथमिकता के सारे दावे मेरे पांव तले रौंदे जा चुके हैं “-

इस्लाम ने इस कल्पना को इस कदर मिटाया कि वह अरब जो जातिवाद पर जीते थे, हर समुदाय दूसरे पर अपनी प्रधानता साबित करने में लगा रहता था, इस्लाम स्वीकार करने के बाद सब भाई भाई बन गए, हब्शा के बिलाल, रोम के सुहैब, फारस के सुलैमान और क़ुरैश के अबू-बकर सब एक झंडा तले इकट्ठा हो गए थे। ज़ाहिर है कि दुनिया के सारे इंसान आदम की संतान हैं तो फिर भेद-भाव क्यों?

4- अज्ञानता काल के रीति रिवाज के खंडनः

अन्तिम हज के भाषण में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चौथी बात जो कही उसका सम्बन्ध अज्ञानता काल के रीति रिवाज के खंडन से था, अतः आप ने अज्ञानता काल के रीति रिवाज का खंडन करते हुए कहा कि

ألا كُلُّ شَيْءٍ من أَمْرِ الْجَاهِلِيَّةِ تَحْتَ قَدَمَيَّ مَوْضُوعٌ

“अज्ञानता-काल का सब कुछ मैंने अपने पैरों से रौंद दिया, अज्ञानता काल के रक्त के सारे बदले अब समाप्त हैं। पहला बदला जिसे मैं समाप्त करता हूँ मेरे अपने परिवार का है, रबिया बन हारिस के दूध पीते बेटे का खून जिसे बनू हुज़ैल ने मार डाला था जिस का अब तक फैसला होना बाकी था, अब मैं माफ करता हूँ। उसी तरह ब्याज के व्यापार का खंडन करते हुए फरमाया कि अज्ञानता काल का ब्याज अब कोई हैसियत नहीं रखता। पहला ब्याज जिसे मैं समाप्त करता हूँ अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब के परिवार का ब्याज है, अब यह प्रतिबंधित हो गया।

जरा विचार कीजिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने भाषण में अज्ञानता काल की दो प्रथाओं की चर्चा किया, ब्याज और ख़ून का बदला, और फरमाया कि जो कुछ हुआ सो हुआ…. अब उसे भूल जाओ, लेकिन आपने क़ानून बनाने पर संतोष नहीं किया बल्कि आपका न्याय देखें कि अपने परिवार पर सब से पहले इसे लागू किया, अपने परिवार की दियत को माफ किया, अपने चाचा के ब्याज पर प्रतिबंध लगाया। आज के बादशाह और कानून बनाने वाले जब कानून बनाते हैं तो सब से पहले उनकी कोशिश होती है कि अपने रिश्तेदारों को मूक्त कर लें लेकिन ज़रा दया के प्रतीक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का न्याय देखें कि जब क़ानून बनाते हैं तो सबसे पहले अपने परिवार के लोगों पर उसे लागू करते हैं।

रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ब्याज पर प्रतिबंध इस लिए लगाया कि यह समाज का केंसर है। हमारे निर्माता और मालिक ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि ब्याज का व्यापार करने वालों का माल बढ़ता नहीं बल्कि घटता हैः

يَمْحَقُ اللَّـهُ الرِّبَا وَيُرْبِي الصَّدَقَاتِ (سورة البقرة: 276 

  “अल्लाह ब्याज को मिटाता और दान को बढ़ाता है। “- (सूरः अल-बक़राः 276)

 अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ब्याज खाने वाले से युद्ध की घोषणा की:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّـهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ ﴿٢٧٨﴾ فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا فَأْذَنُوا بِحَرْبٍ مِّنَ اللَّـهِ وَرَسُولِهِ ۖ   سورة البقرة: 278-279

ऐ ईमान लाने वालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमान वाले हो (278) फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए ख़बरदार हो जाओ।   (सूरः अल-बक़राः 278-279)

ब्याज का एक दिरहम खाना मानो अपनी माँ से  व्यभीचार करने के समान है, मुस्तदरक हाकिम की रिवायत के अनुसार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु असैहि व सल्लम ने फरमाया:

الربا ثلاثة وسبعون بابا أيسرھا مثل أن ينکح الرجل أمہ

“ब्याज के तिहत्तर दरवाजे हैं उनका सबसे हल्का पाप ऐसा है जैसे कोई आदमी अपनी माँ के साथ निकाह करे”।

और मुस्नद अहमद की रिवायत में अल्लाह के रसूल ﷺ ने ये भी फरमाया:

درهم ربا يأكله الرجل وھو يعلم أشد عند اللہ من ستة وثلاثين زنية 

“ब्याज का एक दिरहम जिसे एक आदमी जानते बूझते खाता हो अल्लाह तआला के पास 36 बार व्यभिचार से भी बदतर है।”

इससे आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि ब्याज का लेने और देने वाला शरीअत की नज़र में कितना बड़ा अपराधी है। ब्याज का मामला चाहे किसी साहूकार से हो या ब्याज देने वाले बैंकों से, दोनों बराबर है।

5- सामाजिक जीवन की स्थीरताः

अन्तिम हज के भाषण में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पांचवीं बात जो कही उसका सम्बन्ध सामाजिक जीवन की स्थीरता से था, अतः आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सामाजिक और वैवाहिक जीवन में स्थिरता की ओर ध्यान दिलाते हुए कहाः

فاتقوا اللہ فی النساء فإنکم أخذتموھن بأمان اللہ واستحللتم فروجھن بکلمة اللہ ولکم عليھن أن لا يوطئن فرشکم أحد تکرھونہ۔ فان فعلن ذلک فاضربوھن ضربا غيرمبرح ولھن رزقھن وکسوتھن بالمعروف.

“देखो! महिलाओं के संबंध में अल्लाह का डर रखना, क्योंकि तुमने उन्हें अल्लाह की सुरक्षा के साथ प्राप्त किया है, और तुमने अल्लाह के कलिमा के द्वारा उनकी इज़्ज़त को अपने लिए हलाल किया है। और महिलाओं पर भी तुम्हारा यह अधिकार है कि वह अपने पास किसी ऐसे व्यक्ति को न बुलाएं जिसे तुम पसंद नहीं करते और वह कोई विश्वासघात न करें, कोई काम खुली अश्लीलता का न करें और अगर वह ऐसा करें तो अल्लाह की ओर से उसकी अनुमति है कि तुम उन्हें मामूली शारीरिक सजा दो और वह बाज़ आ जाएं। और उनका तुम पर यह अधिकार है कि तुम उन्हें भलाई के साथ खिलाओ और पहनाओ”।

अर्थात् आपने फ़रमाया कि इन महिलाओं के संबंध में अल्लाह से डरना, और उनके अधिकार अदा करना, जरा विचार करो वह औरत तुम पर हराम थी, अल्लाह ने उसे तुम्हारे लिए वैध ठहराया, तो अब उनके अधिकारों की अदाएगी तुम पर आवश्यक है। उन्हें वही खिलाओ जो तुम खाते हो, उन्हें वही पहनाओ जो आप पहनते हो और उन से अच्छा व्यवहार करो। अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِن كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰ أَن تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّـهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا (سورة النساء: 19 

और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। फिर यदि वे तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे। (सूरः अल-निसाः 19)

और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः

لا يفرَكْ مؤمنٌ مؤمنةً، إن كرِهَ منْها خُلقًا رضِيَ منْها آخرَ   ( صحيح مسلم: 1469 

एक मोमिन अपनी पत्नी को नापसंद न करे कि अगर उसकी एक चीज़ नापसंद है तो दूसरी चीज पसंद होगी।

जी हाँ! यह है मापदंड सूखी वैवाहिक जीवन के लिए कि सहन करने की भावना पैदा होनी चाहिए, गुणों पर नजर रहनी चाहिए, कमियों को नजरअंदाज करना चाहिए।

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पुरुषों का अधिकार महिलाओं पर क्या है उसे बताया, कि तुम अपने घर में जिसेके प्रवेश करने को पसंद नहीं करते तुम्हारी पत्नियों की जिम्मेदारी है कि उसे बरतने की कोशिश करें और ऐसे व्यक्ति को अपने घर में प्रवेश न होने दें जिसे तुम पसंद न करते हो, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि महिला की गर्दन में रस्सी डाल दी जाये और किसी से मिलने जुलने पर प्रतिबंध लगाया जाए। रिश्तेदारों से मिलने की अनुमति होनी चाहिए, हाँ! गैर-मरदों के घर में आने जाने पर पाबंदी अच्छी चीज है।

वैवाहिक जीवन ही वह इकाई है जिससे समाज का गठन होता है, अगर यहाँ मतभेद आ गया तो जीवन अजेरन बन जाता है, पारीवारिक व्यवस्था खराब हो जाता है और बच्चों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पति पत्नी दोनों के अधिकार और कर्तव्य बयान किया ताकि लोग उन शिक्षाओं के आधार पर सुखी वैवाहिक जीवन बिता सकें।

6- अमानत की अदाएगीः

अन्तिम हज के भाषण में आप ने छट्टी बात जो कही उसका संबंध अमानत की अदाएगी से था, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अमानत की अदाएगी के महत्व पर जोर देते हुए कहाः

فمن کان عندہ أمانة فليؤدھا إلی من ائتمن عليہا

“अगर किसी के पास अमानत रखवाई जाए तो वह इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि अमानत रखने वाले को अमानत पहुंचा दे”।

अमानत का अमलदख़ल दीन की सारी चीज़ों में है। तौहीद अमानत है, इबादात अमानत हैं, नैतिकता अमानत हैं, सत्यता, निष्ठा, अच्छाई, बंधुत्व यह सब अमानत हैं और उनके विपरीत झूठ, धोखा, ईर्ष्या, जलन और संबंध काटना यह सब विश्वासघात हैं। कारोबारी मामले अमानत हैं, ड्यूटी अमानत है, ज्ञान अमानत है, शरीर के सारे अंग अमानत हैं: आँख अमानत है, हाथ अमानत है, पैर अमानत है, ज़बान अमानत है, सम्मान और मर्यादा अमानत है, संतान अमानत है, धन अमानत है, राज़ और भेद यह सब अमानत हैं।

क्या आपने सुना नहीं कि मदीना हिजरत के अवसर पर कुरैश के काफिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हत्या का नापाक इरादा किए आपके घर की घेराबंदी कर चुके हैं और सब तलवार न्याम से बाहर किए आपके निकलने की प्रतिक्षा कर रहे हैं, लेकिन आपको ऐसी गंभीर स्थिति में भी अमानत की चिंता सिता रही है। और अमानत भी शत्रुओं की थी, एक तरफ शत्रु खून के प्यासे हैं तो दूसरी ओर आपको उन्हीं की अमानत की चिंता खाए जा रही है यहाँ तक कि अपने चचेरे भाई हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने बिस्तर पर सुला कर उन्हें बता देते हैं कि फ़लाँ फ़लाँ की अमानतें हमारे पास हैं, उन्हें सुबह में उनके हवाले कर देना, फिर वहाँ से निकलते हैं।

अल्लाह के रसूल ﷺ ने अमानत का महत्व बताया ताकि लोग उसका ख्याल रखें और ज़ींदगी के हर व्यवहार में विश्वासघात से बचें।

उसके अलावा भी आपने बहुत सारी बातों की नसीहत की, अतः आपने फरमाया: “लोगो! हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और सारे मुसलमान परस्पर भाई भाई हैं, अपने दासों का ख्याल रखो, हाँ! दासों का ख़्याल रखो, उन्हें वही खिलाओ जो तुम खाते हो, ऐसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो”।

लोगो! अल्लाह ने हर हकदार को उसका हक़ ख़ुद दे दिया, अब किसी वारिस के अधिकार के लिए वसीयत न करे। “बच्चा उसी की ओर मंसूब किया जाएगा जिसके बिस्तर पर वह पैदा हुआ, और जिस पर हरामकारी साबित हो उसकी सजा पत्थर है। फैसला अल्लाह के यहाँ होगा, जो कोई अपना वंश बदलेगा, उस पर अल्लाह की लानत है।”

“कर्ज की अदाएगी होनी चाहिए, आरियत ली हुई चीज़ को वापस करना चाहिए, उपहार का बदला देना चाहिए और जो कोई किसी का ज़ामिन बने वह फिरौती का भुगतान” “किसी के लिए वैध नहीं कि वह अपने भाई से कुछ ले, सिवाय इसके जिस पर उसका भाई राज़ी हो और खुशी दे। खुद पर और एक दूसरे पर ज़्यादती न करो “-

7- किताब और सुन्नत को जीवन के हर क्षेत्र में मज़बूती से थामने का आदेशः 

अन्तिम हज के भाषण में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सातवीं बात जो कही उसका संबंध किताब और सुन्नत को जीवन के हर क्षेत्र में मज़बूती से थामे रहने से है। आपने सहाबा के सामने वह नियम पेश किया जिस पर चलकर वे लोक और प्रलोक दोनों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। अतः आप ने फरमाया:

قد تركت فيكم ما إن اعتصمتم به فلن تضلوا أبدا، كتاب الله وسنة نبيه

“मैं तुम्हारे बीच एक ऐसी चीज छोड़े जा रहा हूं कि तुम कभी गुमराह न हो सकोगे यदि उस पर जमे रहे और वह अल्लाह की किताब है।”

अल्लाह के रसूल ﷺ का यह अन्तिम भाषण था इस लिए आपने उनके सही मार्ग पर जमे रहने का नियम बता दिया कि न्याय के दिन तक यदि तुम कुरआन और हदीस को थामे रहे तो किसी स्थिति में तुम्हारे अंदर गुमराही नहीं आएगी। अब आप पूछ सकते हैं कि मुसलमानों में आज जो इतने संप्रदाय पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ की मात्र निस्बत है इस्लाम की तरफ, और कुछ गुमराही में पड़े हुए हैं, फिर भी वे दावा करते हैं कि हम किताब और सुन्नत को मानते हैं, अल्लाह और उसके रसूल का अनुसरण करने वाले हैं।

सवाल यह है कि किताब और सुन्नत का दावा करने के बावजूद वह एक क्यों न हो सके, यह बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। तो याद रखें इसका उत्तर आज से साढ़े चौदह सौ पर्ष पहले कुरआन ने दे दिया था कि केवल कुरआन और हदीस को मानने का दावा पर्याप्त नहीं है बल्कि उसे वैसे ही समझना होगा जैसे सहाबा ने समझा था। क़ुरआन ने कहाः

فَإِنْ آمَنُوا بِمِثْلِ مَا آمَنتُم بِهِ فَقَدِ اهْتَدَوا وَّإِن تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا هُمْ فِي شِقَاقٍ – سورة البقرة: 137 

 फिर यदि वे उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो उन्होंने मार्ग पा लिया। और यदि वे मुँह मोड़े, तो फिर वही विरोध में पड़े हुए है।   )सूरतुल बक़राः 137(

बात स्पष्ट है यदि जमाअतबंदी और ग्रुपबंदी को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें कुरआन और हदीस को वैसे ही समझना होगा जैसे सहाबा ने समझा था। जी हाँ! सफलता का मापदंड सहाबा हैं, यदि हमने अपनी समझ से, अपनी राय से किसी इमाम के कथनानुसार कुरआन और हदीस को समझने की कोशिश की तो कभी हमारे अंदर एकता नहीं आ सकती, आज कुरआन सूरक्षित है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों प्रमाणित रूप में सुरक्षित हैं, उन दोनों को जैसे सहाबा ने समझा था वैसे ही हमें भी समझना होगा। यदि ऐसा किया, तो हमारे सभी मतभेद समाप्त हो जाएंगे।

8- शैतान के बहकावे से सावधानः

अन्तिम हज भाषण में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आठवीं बात जो कही उसका संबंध शैतान के बहकावे से सावधान करना था। “शैतान को अब इस बात की कोई उम्मीद नहीं रह गई है कि अब उसकी इस शहर में पूजा की जाएगी, लेकिन सम्भव है कि ऐसे कामों में जिन्हें तुम कम महत्व देते हो उसकी बात मान ली जाए और वह उसी में संतुष्ट है, इस लिए तुम उससे अपने दीन और ईमान की सुरक्षा करना।”

हर दौर में इंसान ने शैतान के बहकावे में आकर अल्लाह की अवज्ञा की है, शैतान इंसान का अज़्ली दुश्मन है, वह कभी नहीं चाहता कि बंदे को सही रास्ते पर चलता देखे, इस लिए वह विभिन्न तरीके से लोगों को गुमराह करता है।

शैतान सब से पहले यह चाहता है कि इंसान को कुफ्र और शिर्क में फंसा दे, यदि ऐसा नहीं कर पाता तो उसे बिदअत में फंसाने की कोशिश करता है, अगर उससे आजिज़ आता है तो बड़े बड़े गुनाहों पर उकसाता है, अगर उसमें उसे सफलता नहीं मितली है तो छोटे छोटे गुनाहों में फंसा देता है, अगर उस पर भी शक्ति नहीं पाता तो महत्वपूर्ण कार्यों से फेर कर महत्वहीन कार्यों में फंसा देता है और इंसान को उसका अनुभव भी नहीं हो पाता। इस लिए शैतान के फंदे से सावधान रहना चाहिए।

 

9- अन्य कुछ उपदेशः

अंतिम हज के भाषण में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने और भी बहुत सारी बातें कहीं, जैसे आपने कहाः  “और हाँ! देखो दीनी कामों में ग़ुलू से बचना कि तुम से पहले के लोग उन्हीं बातों के कारण नष्ट कर दिए गए।”

उसी तरह आप ने फरमाया: “ऐ लोगो! अपने रब की इबादत करो, पांच समय की नमाज़ें अदा करो, महीने भर के रोज़े रखो, अपने मालों की ज़कात खुशदिली के साथ देते रहो, अपने रब के घर का हज करो और अपने अमीर का अनुसरण करो, अपने रब की जन्नत में दाख़िल हो जाओगे।”

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी कहा: “अब अपराधी खुद ही अपने अपराध का ज़िम्मेदार होगा और अब न बाप के बदले बेटा पकड़ा जाएगा, न बेटे का बदला बाप से लिया जाएगा। सुनो! जो लोग यहां उपस्थित हैं उन्हें चाहिए कि यह आदेश और यह बातें उन लोगों को बता दें जो यहाँ नहीं हैं शायद कोई और ज़्यादा याद रखने वाला और सुरक्षा करने वाला हो सकता है।”-

10-अल्लाह अर्श पर हैः

आप ने भाषण के अंत में कहा:

 وأنتم تسألون عنی فما أنتم قائلون؟    

“लोगो! तुम से मेरे प्रति अल्लाह के हाँ पूछा जाएगा, बताओ तुम क्या जवाब दोगे? लोगों ने कहा:

 نشھد أنک قد بلغت وأديت ونصحت 

” हम इस बात की गवाही देंगे कि आपने अमानत (दीन) पहुंचा दी, और आपने रिसालत का हक़ अदा कर दिया, हमारे शुभ-चिंतक बने रहे। यह सुनकर आपने अपनी उंगली आकाश की ओर उठाई और लोगों की ओर संकेत करते हुए तीन बार कहा:

 اللھم اشہد ، اللھم اشہد ، اللھم اشہد  

ऐ अल्लाह तू गवाह रहना। ऐ अल्लाह तू गवाह रहना। ऐ अल्लाह तू गवाह रहना।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उंगली आसमान की ओर उठाई इसमें इस बात का प्रमाण है कि अल्लाह सातों आसमान के ऊपर अर्श पर मुस्तवी है, न वह हर जगह है और न ही हमारे दिल में है जैसा कि कुछ लोग समझते हैं बल्कि अल्लाह अर्श पर है, कुरआन में अल्लाह तआला ने फरमाया:

ثم استوی علی العرش

“फिर अर्श पर स्थापित हो गया”

यह वाक्य कुरआन में छः स्थान पर आया है, सूरः आराफ़ 54, सूरः हदीद 4, सूरः अल-सजदा 4, सूरः अल-फ़ुरक़ान 59, सूरः अर्राद 2 , सूरः यूनुस 3 और सातवें स्थान पर सूरः ताहा आयत नंबर 5 में अल्लाह तआला ने फरमाया:

الرحمن علی العرش استوی  

“रहमान अर्श पर मुस्तवी है।”

और सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व  सल्लम ने एक दासी के ईमान की जांच करने के लिए उस से पूछा किः “अल्लाह कहां है? ” तो जवाब दिया: अल्लाह आसमान के ऊपर है, पूछा: मैं कौन हूँ? उसने कहा: आप अल्लाह के रसूल (दूत) हैं, तब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

أعتقھا فإنھا مؤمنة

इसे आज़ाद कर दो, यह मोमिना है।

पता यह चला कि अल्लाह हर जगह नहीं और न ही हमारे दिल में है, लेकिन अल्लाह अर्श पर है, हाँ! उसका ज्ञान हर जगह हैं, अर्थात् अर्श पर होते हुए वह हर चीज़ पर नज़र रखे हुआ है।

यह था अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अन्तिम भाषण जिस पर चिंतन मनन करने का उद्देश्य मात्र यह था कि हम अल्लाह के रसूल के अन्तिम हज के इस सार्वजनिक भाषण को जान सकें जिसमें आपने सब से बड़ी संख्या को संबोधित किया था तथा एक विश्वव्यापी शिक्षा दी थी। जिसमें इस्लाम का परिचय कराया था और मानव अधिकार प्रस्तुत किया था।
अन्त में हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हम सबको प्यारे नबी की विश्वव्यापिक शिक्षाओं को व्यवहारिक जीवन में स्थान देने की तौफ़ीक़ प्रदान करे। आमीन

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