हमारी सुरक्षा करने वाले कुछ काम

हमारी सुरक्षा करने वाले कुछ काम

आमतौर पर हमें शिकायत होती है कि किसी की नजर लग गई है, किसी ने जादू कर दिया है, प्रेत आदि का असर हो गया है। वास्तव में कभी-कभी ऐसा होता भी है, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो ऐसी शिकायत होने से पहले सुरक्षा का उपाय करते हैं। इस्लाम ने हमें ऐसे उपाय बता दी हैं कि अगर हम उन्हें अपनायें तो बहुत हद तक ऐसे प्रभाव से सुरक्षित रह सकते हैं। उनका आयोजन करने से न सिर्फ हमारी हर तरह से सुरक्षा होती है बल्कि हम बहुत सारे पूण्य के हकदार भी ठहरते हैं। इस लिए आइए हम आपकी सेवा में कुछ ऐसे काम पेश करते हैं जिन से हमारी सुरक्षा हो सकती है।

1- पाँच समय की नमाज़ों की समय पर पाबंदीः

इस संबंध में सब से पहला काम यह है कि पाँच समय की नमाज़ों की समय पर पाबंदी करें। पुरुषों के लिए आवश्यक है कि वे उनकी अदायगी मस्जिद में जाकर करें, सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

 مَن سمِع النِّداءَ فلم يُجِبْ فلا صلاةَ له إلَّا مِن عذرٍ ( صحیح ابن حبان 2064 

“जिसने अज़ान सुनी और मस्जिद नहीं आया तो उसकी नमाज़ नहीं होती सिवाय इसके कि उसके पास कोई शरई उज़्र (बहाना) हो।”

यही कारण है कि सही मुस्लिम की रिवायत के अनुसार एक अंधा (नेत्रहीन) सहाबी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आते हैं और निवेदन करते हैं कि या रसूलल्लाह! मेरे पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो मुझे मस्जिद पहुंचा सके। क्या मेरे लिए अनुमति है कि घर में नमाज़ पढ़ लूँ? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे छूट दे दी, लेकिन जब जाने लगा तो आपने उससे पूछा: क्या तुम अज़ान की आवाज़ सुनते हो? उसने कहा: हाँ। (यह सुनकर) आपने कहाः فأجب  तुम्हारे लिए मस्जिद आना ज़रूरी है। इस लिए स्वयं की सुरक्षा के लिए पहला बिंदु यही है कि हम पाँच समय की नमाज़ों की पाबंदी  करें।

2- अल्लाह का स्मरणः

 दूसरा काम जिस से हमारी सुरक्षा होती है अज़कार की पाबंदी है। जो व्यक्ति अल्लाह के स्मरण से असावधान होता है शैतान उस पर लागू हो जाता है, अल्लाह तआला का फरमान है:

وَمَن يَعْشُ عَن ذِكْرِ الرَّحْمَـٰنِ نُقَيِّضْ لَهُ شَيْطَانًا فَهُوَ لَهُ قَرِينٌ     -سورہ الزخرف:36  

  ” जो रहमान के स्मरण की ओर से अंधा बना रहा है, हम उस पर एक शैतान नियुक्त कर देते हैं तो वही उसका साथी होता है “। (सूरः ज़ुख़रुफ 36)

इसलिए हमेशा और हर हालत में अल्लाह का स्मरण करते रहना चाहिए, उठते बैठते, सोते जागते, खाते-पीते तात्पर्य यह कि हर समय स्मरण से अपनी ज़ुबान को तर रखना चाहिए।

नमाज़ के बाद के अज़कार का एहतमाम करना चाहिए, साथ ही सुबह और शाम के अज़कार का एहतमाम करना चाहिए। आज हमारी अजीब स्थिति हो चुकी है कि कुछ लोग तो नमाज़ के तुरंत बाद उठकर चले जाते हैं, कुछ लोग अज़कार का एहतमाम किए बिना हाथ उठाकर दुआ करने लगते हैं, कुछ लोग फर्ज़ नमाज़ के तुरंत बाद सुन्नत के लिए खड़े हो जाते हैं, हालांकि बेहतर तरीका यह है कि फर्ज़ नमाज़ के बाद के जो मसनून अज़कार हैं उन का एहतमाम करें। उसी तरह सुबह और शाम के अज़कार का एहतमाम करें, ऐसा करेंगे तो हमारी सुरक्षा होती रहेगी और हर तरह के बुरे प्रभाव से हम सुरक्षित रह सकेंगे।

उसी तरह घर से निकलते समय और घर में प्रवेश करते समय की जो दुआएं हैं उनका भी एहतमाम करना चाहिए।

 सुनन अबी दाऊद की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “जब एक दास घर से निकलते हुए कहता है:

بِسمِ اللَّهِ ، توَكَّلتُ علَى اللَّهِ ولاحولَ ولا قوَّةَ إلَّا باللَّهِ 

तो उस से कहा जाता है कि तुम्हें हिदायत मिली, तुम्हारे लिए अल्लाह काफ़ी हो गया और तुम बचा लिए गये फिर शैतान उस से दूर हो जाता है। ” अब एक शैतान दूसरे शैतान से कहता है:

كيفَ لَكَ برجُلٍ هديَ وَكُفيَ ووقيَ ؟ 

“उस आदमी का क्या कर सकते हो जिसको सीधे मार्ग की हिदायत दे दी गई हो।” उसके लिए अल्लाह काफ़ी हो गया हो और उसे शैतान की बुराई से सुरक्षित कर दिया गया हो। (तख़रीज मिश्कातुल मसाबीहः 2377)

आज हम घर से निकलते हुए यह ज़िक्र नहीं करते जिसकी वजह से हम शैतानों के फंदे में फंस जाते हैं।

सोने से पहले के अज़कार का भी एहतमाम करके सोना चाहिए, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की आदत थी कि जब आप बिस्तर पर आते तो दोनों हथेलियों को जमा करते, उन में फूंकते और उनमें सूरः इख़लास, सूरः अल-फ़लक़ और सूरः अन्नास पढ़ते, फिर हाथ शरीर के जिस हिस्से तक पहुंच पाता फेर लेते थे, सिर, चेहरा और शरीर के सामने वाले हिस्से से शुरू करते। इस प्रकार तीन बार करते थे।

उसी तरह हमें चाहिए कि सोने से पहले आयतुलकुर्सी पढ़ लें क्योंकि सही बुखारी की रिवायत में आता है कि हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु रात में सद्क़तुलफित्र की निगरानी पर तै किए गए थे, लगातार शैतान तीन रात तक उनके पास आता रहा और उस में से चोरी करता रहा, हर रात अपनी मजबूरी व्यक्त करता और हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु उसे छोड़ देते, तीसरी रात पकड़ लिया और कहा कि यह तीसरी बार है, कहते हो नहीं आएंगे फिर आ जाते हो, तब शैतान ने कहा: मुझे माफ कर दो मैं तुझे ऐसे शब्द सिखाता हूं जिनके द्वारा अल्लाह तुझे लाभ पहुंचाएगा, अबु हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू ने कहा: वह शब्द क्या हैं: उसने कहा: जब तुम बिस्तर पर लेटने के लिए आओ तो आयतुलकुर्सी पढ़ लो, तेरे ऊपर अल्लाह द्वारा एक निगराँ बराबर रहेगा, और शैतान तुम्हारे पास नहीं आ सके होगा, यहां तक कि सुबह हो जाए। जब सुबह में हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से इसका जिक्र किया तो यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

أما إنه قد صدَ قَك وهو كَذوبٌ (صحيح البخاري: 2311

उसने तुझ से सब सच बता हालांकि वह झूठा है।

इस लिए यदि आपकी चाहत है कि सोते समय शरिश्तों की निगरानी में रहें और शैतान की बुराई से आप सुरक्षित रह सकें तो सोने से पहले आयतुलकुर्सी पढ़ना न भूलें।

 उसी तरह सूरः अल-बक़रा की तिलाब शैतान से बचाव का मुख्य स्रोत है, सही मुस्लिम में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:

 لا تجعلوا بيوتَكم مقابرَ . إنَّ الشيطانَ يِنْفِرُ من البيتِ الذي تُقرأُ فيه سورةُ البقرةِ ( صحيح مسلم: 780

“यानी अपने घरों को कब्रिस्तान मत बनाओ, बेशक शैतान उस घर से भाग निकलता है जिस में सूरः बक़रा पढ़ी जाती हो”। (सही मुस्लिमः 780)

विशेष रूप में सूरः बक़रा की अंतिम दो आयतों की तिलावत शैतान से बचाव के लिए बहुत महत्व रखती है, बुखारी और मुस्लिम की रिवायत के अनुसार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

 مَن قَرَأَ بِالآيَتَينِ مِن آخِرِ سُورَةِ البَقَرَةِ فِي لَيلَةٍ كَفَتَاهُ   رواه البخاري (5009) ومسلم (2714

“जो व्यक्ति रात में सूरःअल-बक़रा की अंतिम दो आयतें पढ़ ले उसके लिए यह दोनों काफी हैं।”  (सही बुख़ारीः 5009 सही मुस्लिमः 2714)

रात में किसी जगह पड़ाव डालते समय चाहे आबादी हो या रेगिस्तान हर जगह इस दुआ का विर्द करना चाहिए:

أعوذُ بكلماتِ اللهِ التاماتِ من شرِّ ما خلقَ   مسلم  2708

सही मुस्लिम की रिवायत है जो व्यक्ति किसी जगह उतरता है और यह दुआ पढ़ता है तो उसे कोई चीज नुकसान नहीं पहुंचा सकती, यहाँ तक वह सुरक्षित उस जगह से कूच न कर जाए। (सही मुस्लिमः 2708)

बच्चों की सुरक्षा के लिए उन पर भी दम करना चाहिए, सही बुख़ारी (3371) की रिवायत है, इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा को दम करते और कहतेः तुम्हारे बाप इस्माईल और इस्हाक़ तो इस दुआ से दम करते थेः   

أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّةِ مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ وَهَامَّةٍ وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لَامَّةٍ . رواه البخاري :3371

3- क़ुरआन की तिलावतः

तीसरा काम जिस से हमारी सुरक्षा होती है कुरान की तिलावत है। अल्लाह की किताब के कुछ अंश ही सही अगर हम उन की तिलावत की प्रतिदिन आदत बना लेते हैं, तो क्या मजाल हम बुरे प्रभाव के शिकार हो सकें। कुरआन में मार्गदर्शन है, उसके एक एक अक्षर पर दस नेकियां मिलती हैं, यह महा-प्रलय के दिन हमारा सिफारशी बनने वाला है। लेकिन आज सोशल मीडिया ने हमें कुरआन से बिल्कुल दूर कर दिया है। जरूरत है कि हम क़ुरआ से अपने रिश्ते को फिर से बहाल करें। अगर हम छोटा सा मुस्हफ अपने जेब में रखें और ड्यूटी पर जाते और आते समय या फुरसत के समय में उसे खोलकर पढ़ने की आदत बना लें तो उसके तुफ़ैल हम पर और हमारे घर पर अजीब तरह से खैर और बरकत की छाया होगी और बुरे प्रभाव से हम बचे रहेंगे।

4- सुबह सवेरे सात खजूर खाना

चौथा काम जिस से हमारी सुरक्षा होती है सुबह सवेरे सात खजूर खाना है। सही बुखारी और मुस्लिम की रिवायत के अनुसार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

من تصبّح كل يوم سبع تمرات عجوة لم يضره في ذلك اليوم سم ولا سحر۔( البخارى: 5445، مسلم: 2047

“जिसने सुबह सात सवेरे सात अजवा खुजूर खाया उसे उसे दिन कोई जहर और जादू नुकसान नहीं पहुंचाएगा।   (सही बुख़ारीः 5445, सही मुस्लिमः 2047)

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया कि यह विशेषता मात्र अजवा खुजूर के उपयोग में नहीं बल्कि उमीद है कि सारी खुजूरों में पाई जाती है”।   (मजमूअ फतावा इब्न बाज़ः 8/109)

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