healthविश्व स्वास्थ्य  दिवस के अवसर पर यह लेख अपने पाठकगण की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं, हमें आशा है कि इस से लाभ उठायेंगे।

शरीर मानव प्रकृति की अनमोल कारीगरी है, यह आंख जिस से हम देखते हैं, यह ज़बना जिस से हम बोलते हैं, यह पाँव जिस से हम चलते हैं और यह हाथ जिस से हम पकड़ते हैं, यह सब जहाँ एक ओर अल्लाह की महान नेमत हैं तो दूसरी ओर बहुत बड़ी अमानत भी। नेमत पर अल्लाह का शुक्र बजा लाना और अमानत की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है, स्वास्थ्य की आवश्यकताओं से ला परवाही बरतना और उसकी सुरक्षा में कोताही करना असंवेदनशील भी है और अल्लाह की नाशुकरी भी, स्वास्थ्य का सही महत्व तभी मालूम होती है जब इंसान बीमारी का शिकार हो जाता है और स्वास्थ्य धीरे धीरे गिरने लगती है, इसी लिए प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:

نِعْمَتَانِ مَغْبُونٌ فِيهِمَا كَثِيرٌ مِنَ النَّاسِ الصِّحَّةُ وَالْفَرَاغُ   صحيح البخاري 6412   

दो प्रसन्न ऐसी हैं जिनके संबंध में अक्सर लोग घाटे में हैं स्वास्थ्य और अवकाश।  (सही बुख़ारीः 6412)

सवाल यह है कि हम अपने स्वास्थ्य और शरीर की रक्षा कैसे कर सकते हैं। निम्न में इस सम्बन्ध में  कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं:

खानपान की सामग्री में मध्यमः

मानव शरीर में पेट एक नाजुक अंग है, जो खाने पीने में असंतुलन को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता, और इसका असर मानव शरीर पर विभिन्न रोगों के रूप में प्रकट होने लगता है, इसी लिए अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया:

وَكُلُوا وَاشْرَبُوا وَلَا تُسْرِفُوا ۚ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْمُسْرِفِينَ   سورہ الأعراف 31

“और खाओ पियो और पार मत करो, अल्लाह हद से बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता।” (सूरःआराफ 31)

हाफिज इब्न कसीर रहिमहुल्लाह  कहते हैं: कुछ सलफ़ कहते हैं अल्लाह ने وَكُلُوا وَاشْرَبُوا وَلَا تُسْرِفُوا इस आधी आयत में सारी चिकित्सा जमा कर दी है।

और प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वस्थ जीवन बिताने का दो टोक तरीके यूं बयान किया:

ما ملأ آدميٌّ وعاءً شرًّا من بطنٍ، بحسبِ ابنِ آدمَ أكلاتٍ يُقمنَ صُلبَهُ، فإن كان لا محالةَ : فثلُث لطعامِه، وثُلُثٌ لشرابِه وثُلُثٌ لنفَسِه  سنن الترمذي 2380

 

“एक आदमी के लिए पेट को भरने से अधिक बुरा कोई बर्तन नहीं, आदम की संतान के लिए कुछ लुकमें काफ़ी हैं, जिन में से अपने शरीर को सीधा रख सके, यदि खाना ही चाहता हो तो एक तिहाई भाग में खाए, एक तिहाई हिस्सा पिए और एक तिहाई हिस्सा सांस लेने के लिए रहने दे “।(सुन्न तिर्मिज़ी 2380)

और उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:

إياكم والبطنة في الطعام والشراب، فإنها مفسدة للجسد، مورثة للسقم، مكسلة عن الصلاة، وعليكم بالقصد فيهما، فإنه أصلح للجسد، وأبعد عن السرف۔  کنزالعمال:8/48 

“अधिक मात्रा में खान-पान से बचो! क्योंकि यह शरीर के लिए हानिकारक है, बीमारी पैदा करने का कारण है, और नमाज़ में सुस्ती लाने का कारण है, इसलिए खानपान में मध्यम बरतो क्योंकि इस में शरीर की तनदुरुस्ती और फुज़ूलखर्ची से बचाव है “। कंज़ुलउम्माल (8/48)

कम ख़ोरी की प्रेरणा देते हुए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी कहा कि एक आदमी का खाना दो आदमी के लिए पर्याप्त है। (सहीहुल जामिअ 2099)

इस तरह इस्लाम ने खाने पीने में मध्यम का आदेश देकर मनुष्य को कई बीमारियों का शिकार होने से बचा लिया।

कम ख़ोरी की आदत डालने के साथ संतुलित और विविध आहार का प्रयोग भी आवश्यक है, हमेशा एक तरह का भोजन स्वस्थ जीवन के लिए उपयोगी नहीं है, यदि संभव हो सके तो सब्जियों और फलों का उपयोग प्रतिदिन किया करें, खाने का तेल पर्याप्त मात्रा में उपयोग न करें क्योंकि यह मोटापे का कारण है, खाद्य पदार्थों में नमक कम डालें, मीठी सामग्रियों का उपयोग सीमित मात्रा में करें। तरल पदार्थों विशेषकर पानी का उपयोग अधिक से अधिक करें, प्रतिदिन कम से कम डेढ़ लीटर पानी पीना चाहिए।

शारीरिक व्यायाम की व्यवस्था:

एक मनुष्य को हमेशा मेहनत और परिश्रम करते रहना चाहिए, आराम तलबी, नज़ाकत पसंदी और ऐश कूशी ईमान वालों का शेवा नहीं, प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी हमारे लिए नमूना है, जो हमेशा परिश्रम का जीवन गुज़ारते थे, आप तैरने से भी रुची रखते थे, क्योंकि तैरने से शरीर का सबसे अच्छा व्यायाम होता है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रुकाना बिन ज़ैद के साथ कुश्ती खेला और उन्हें पछाड़ दिया, उसी तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ यात्रा में दौड़ का प्रतियोगिता किया।

इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि अपने शरीर उम्र और सामूहिक पर्यावरण के लिहाज से कोई ऐसी शारीरिक व्यायाम जरूर अपनाए जिससे उसके शरीर में फुर्ती, शक्ति और ताज़गी पैदा हो। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है:

المؤمنُ القويُّ خيرٌ وأحبُّ إلى اللَّهِ منَ المؤمنِ الضَّعيفِ  صحيح مسلم 2664

“शक्तिशाली मोमिन अल्लाह के नज़दीक कमजोर मोमिन से बेहतर और प्रिय है।” (मुस्लिम 2664)

सुबह में टहलने की आदत डालनी चाहिए क्योंकि सुबह के समय बग़ीचे में टहलने और मनोरंजन से सुबह की ताजा हवा स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालती है।

नशा लाने वाली सामग्रियों के उपयोग से बचें:

सच्चाई यह है कि शराब, नशीली दवायें, हशीस और तम्बाकू आदि का प्रयोग शरीर के लिए एक नासूर की हैसियत रखता है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं: अल्लाह का पक्का वादा है कि जो दुनिया में नशीली वस्तु उपयोग करेगा उसको आख़िरत में طينة الخبال  पिलाया जाएगा, पूछा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! طينة الخبال क्या है? कहाः यह नरक के पात्र के ज़ख्मो के पीप या उनका पसीना है (सही अबूदाउद: 3680)

जहां तक ​​उनके कारण पैदा होने वाली आर्थिक, शारीरिक और बौद्धिक विनाश का प्रश्न है तो यह मोहताजे बयान नहीं, आज काफिर कौमें जिन्हें वैध और अवैध में कोई भेद नहीं वे भी उनके नुकसान के कारण उनके खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

सच्चाई यह है कि सिगरेट धूम्रपान, हुक्का, नसवार, बीड़ी और चरस आदि मनुष्य के सभी शक्तियों को निलंबित करके उनके शरीर और बुद्धि को सुन कर देते हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ सहमत हैं कि नशा कई बीमारियों को जन्म देता है जिन में से सब से ख़तरनाक कैंसर, टीवी और खांसी आदि हैं, जिनके कारण रोगी के पास बैठने वाले अधिक प्रभावित होते हैं।

चिकित्सकों का कहना है कि कैंसर के 90 प्रतिशत रोगी सिगरेट नोश होते हैं, धूम्रपान से फेफड़ों के छेद जिनके माध्यम से इंसान सांस लेता है बंद हो जाते हैं, और यही बात उसकी मौत का कारण बन जाती है।

 

दोस्तो! स्वास्थ्य अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत और महान अमानत है, इस से किसी भी तरह विश्वासघात न करें और इस बुरी आदत से आज ही तौबा कर लें वरना स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद पछतावा से कोई फायदा नहीः

फिर काहे को पछतावा जब चिड़िया चुग गई खेत।

सोने में सुंतुलन:

मानव शरीर में आंख का अधिकार है कि उसे आराम पहुंचाया जाए, लेकिन सोने में संतुलन को ध्यान में रखना चाहिए, न इतना कम सोएँ कि शरीर को पूरी तरह से आराम और राहत न मिल सके, और अंगों में तकान और शीकस्तगी बाक़ी रहे, और न इतना अधिक सोएँ कि सुस्ती और आलस्य पैदा हो जाए। इमाम गज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने बहुत पते की बात कही है वह कहते हैं

मानव को चाहिए कि वे आठ घंटे से अधिक न सोए क्योंकि अगर उसे साठ साल की उम्र मिलती है, और आठ घंटे ही सोता है तो मानो वह 20 साल तक सोया रहा।

सोने के अलावा हर काम में संतुलन रखना चाहिए, शारीरिक श्रम में, मानसिक कार्य में, पारिवारिक संबंध में, खाने-पीने में, चिंतन मनन और हंसने में, मनोरंजन और इबादत में, गति और गुफतार में तात्पर्य यह कि हर चीज में संतुलन शरीर के लिए उपयोगी है।

दो पहर का खाना खाने के बाद थोड़ी देर के लिए क़ैलूला करना और रात का खाना खाने के बाद थोड़ी देर चहलकदमी करना सेहत के लिए अति लाभदायक है।

दांतों की सुरक्षा पर भी जोर देना चाहिए क्योंकि दांतों को साफ रखने से ख़ूशी प्राप्त होती है, हाज़मे पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और दांत मजबूत रहते हैं, जबकि दांत गंदे रहने से तरह तरह की बीमारियां पैदा होती हैं।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अमल था कि जब नींद टूटती तो मिस्वाक से अपना मुंह साफ कहते थे, जब आप सोने लगते तो हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा आप के लिए मिस्वाक और वुज़ू का पानी तैयार करके रख देती थीं। उसी तरह जब आप घर में प्रवेश करते तो सब से पहले मिस्वाक करते थे, क्योंकि मिस्वाक एक तरफ मुंह की सफाई और पवित्रता का स्रोत है, तो दूसरी ओर अल्लाह की आज्ञाकारी का कारण और साधन भी, इसी लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया:

 لولا أن أشقّ على أمّتِي لأمرتُهم بالسواكِ عند كلّ صلاةٍ سنن أبي داود 47 ، سنن الترمذي 22   

“अगर मैं अपनी उम्मत के लिए कष्टदायक न समझता तो हर नमाज़ के समय मिस्वाक करने का आदेश देता”। (सुनन अबी दाऊद 47, सुन्न अत्तिर्मीज़ी 22)

कुछ सलफ के हाँ मिस्वाक से रुचि का यह आलम था कि वह उसे कानों पर लटकाए रहते थे, अफ़सोस कि आज हम इस सुन्नत को बिल्कुल भूल चुके हैं, सच्चाई यह है कि वर्तमान युग के सारे तूथ पेस्ट इसका विकल्प नहीं बन सकते।

उसी तरह आंख कुदरत का अनमोल वरदान है उसकी सुरक्षा का भी पूरा आयोजन करना चाहिए, स्वच्छ और हल्के प्रकाश में अध्ययन करना चाहिए, अधिक मद्धम या तेज रोशनी में अध्ययन करने से परहेज करना चाहिए।

पेशाब पाख़ाना की ज़रूरत हो तो तुरंत पूरी करनी चाहिए उन जरूरतों को रोकने से मेदे और दिमाग़ पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

शरीर और कपड़े की सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए, सच्चाई यह है कि शरीर, कपड़े और जरूरत की सारी चीज़ों की सफाई और पवित्रता से रूह को निशात मिलता है, और शरीर को भी फरहत और ताज़गी मिलती है और मानव स्वास्थ्य पर इसका बहुत ही सुखद प्रभाव पड़ता है।

लेकिन अफसोस कि आज अक्सर लोग अपने शरीर और कपड़ों की सफाई पर कण बराबर भी ध्यान नहीं देते, गंदे कपड़े और गंदे चप्पल पहने हुए मस्जिदों और मज्लिसों में चले जाते हैं। साथियों को बदबू से तकलीफ देते हैं और फरिश्तों को कष्ट पहुँचाने का कारण बनते हैं।

इस लिए जरूरत है कि हम अपने शरीर और कपड़ों की सफाई का विशेष ख़्लाल रखें, ताक़त के मुताबिक़ खुशबू भी उपयोग करें। याद रखें! इस्लाम अपने मानने वालों को पुकार पुकार कर कहता है कि इस्लाम साफ़ सुथरा धर्म है, इसलिए सफाई का ध्यान रखें।

[ica_orginalurl]

Similar Posts