मनुष्य स्वाभाविक रूप में समाजी होता है, जब वह दुनिया में आंखें खोलता है तो वह अपने सामने अपने परिवार और वंश

मनुष्य स्वाभाविक रूप में समाजी होता है, जब वह दुनिया में आंखें खोलता है तो वह अपने सामने अपने परिवार और वंश के विभिन्न लोगों को देखा है, माता-पिता, भाई बहन, दादा दादी, नाना नानी, चचा फूफी और मामू मौसी, सब उसे लाड प्यार से पालते हैं। सारे उसकी खुशी और ग़म में बराबर सहभागी रहते हैं। यही वह रिश्तेदारी है जिसे इस्लाम बरतने पर बहुत बल देता है। और रिश्ता कोटने से सख्ची के साथ मना करता है।

रिश्तेदारों के साथ अच्छे व्यवहार का महत्वः

 यह दुनिया की रित है कि जब इंसान की आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है तो वह अपने कमज़ोर रिश्तेदारों की परवाह नहीं करता। इसी लिए  इस्लाम ने अपने मानने वालों प्रशिक्षण दिया कि तुम चाहे ऊंचाइई के शिखर पर क्यों न पहुंच जाओ, अपने अतीत को मत भूलना और अपने रिश्तेदारों के साथ हर समय अच्छा व्यवहार करना। यह तेरा अनिवार्य कर्तव्य है। क़ुरआन ने कहा:

وآت ذالقربی حقہ – بنی اسرائیل آیت نمبر24 

“और रिश्तेदारों को उनका हक़ दे दो।” नोट करने की बात यह है कि अल्लाह ने अधिकांश स्थानों पर कहा कि “रिश्तेदारों को उनका हक़ दे हो” जिससे पता चलता है कि रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करना और उनके साथ सहायता का मामला करना उन पर एहसान नहीं है बल्कि वह हक़ है जो सर्वशक्तिमान अल्लाह ने मालदारों पर रिश्तेदारों का रखा है यदि वह इस अधिकार के भुगतान में कोताही करेंगे तो वह अल्लाह दोषी करार पाएँगे।

तब ही तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः

 الرحمُ معلَّقةٌ بالعرشِ تقولُ : من وصلني وصله اللهُ . ومن قطعني قطعه اللهُ – صحيح مسلم: 2555 

“रिहम अर्थात् सिला रहमी का संबंध अर्श से है। कहता हैः जो मुझे मिलाए अल्लाह उसे अपने साथ मिलाए और जो मुझे काटे अल्लाह उसे काट दे।”

 

रिश्तेदारों के साथ अच्छे व्यवहार का लाभः

रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करने से लोक और प्रलोक में बहुत सारे लाभ बताए गए हैं। सही मुस्लिम की रिवायत है हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

 مَنْ أحبَّ أنْ يُبْسَطَ لهُ في رِزْقِهِ ، و أنْ يُنْسَأَ لهُ في أَثَرِهِ ، فَلْيَصِلْ رحمَهُ . – صحيح بخاري: 5986 صحيح مسلم: 2557 

“जिसे यह पसंद हो कि उसकी रोज़ी में बढ़ोतरी कर दी जाए और उसकी उम्र तम्बी हो जाए तो उसे चाहिए कि वह रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करे।”

इस दुनिया में ही नहीं बल्कि महाप्रलय के दिन भी रिश्तेदारी निभाने का अच्छा से अच्छा बदला मिलने वाला एक व्यक्ति ने रसूले सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहाः मुझे कोई ऐसा नुस्खा बताइए जो मुझे स्वर्ग में दाख़िल कर दे और नरक से बचा दे। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

تَعبدُ اللهَ ولا تُشركُ بهِ شيئًا ، و تقيمُ الصَّلاةَ ،و تُؤتِي الزَّكاةَ ، و تصِلُ الرَّحِمَ  – صحيح الأدب المفرد: 35 

“अल्लाह की उपासना करो, उसके साथ किसी अन्य को भागीदार मत बनाओ, और नमाज़ स्थापित करो और ज़कात दो और रिश्तेदारों का हक़ अदा करो।”

 

रिश्तेदारों के साथ दुर्व्यवहार की हानिः

 जो लोग रिश्तेदारों से कट कर जीवन बिताते हैं, उन से किसी प्रकार का नाता नहीं रखते अल्लाह के लिए वह अपने परिणाम से बेखबर न हों। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

إنَّ أعمالَ بَني آدمَ تُعْرَضُ كلَّ خميسٍ ليلةَ الجمعةِ ، فلا يُقْبَلُ عملُ قاطعِ رحمٍ – صحيح الترغيب: 2538 

“आदम की संतान के अमल हर जुमरात अर्थात् जुमा की रात को उठाए जाते हैं , उनमें ऐसे लोगों के अमल स्वीकार नहीं किए जाते जो रिश्तेदारों से संबंध काटे हुए होते हैं।”

दूसरी सज़ा यह है कि जिस क़ौम में रिश्तेदारों के संबंध काटने वाले हों उन पर अल्लाह की दया नहीं उतरती। इमाम बुख़ारी रहिमहुल्लाह ने अल-अदबुल-मुफ्रद में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबी औफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः निःसंदेह दया उस कौम पर अवतरित नहीं होती जिसमें कोई रिश्तेदारों से संबंध काटे हुए हों।   (अस्सिलसिला अज़्ज़ईफाः 1456)

सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में इंसान संबंध काटने की तत्काल सज़ा पा कर रहता है। सुन्न अबी दाऊद और सुनन तिर्मिज़ी में हज़रत अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

ما من ذنبٍ أجدرُ أن يُعجِّلَ اللهُ لصاحبِه العقوبةَ في الدُّنيا مع مايدَّخِرُ له في الآخرةِ من البَغْيِ ، وقطيعةِ الرَّحِمِ  – سنن الترمذي: 2511 

 “अत्याचार और रिश्तेदारों से संबंध काटना दो पाप ऐसे हैं कि अल्लाह महाप्रलय की सज़ा के साथ दुनिया ही में उसकी सज़ा देकर हरता है।

यह तो दुनिया की सज़ा हुई और महाप्रलय के दिन यही रिश्ता काटना उसे स्वर्ग में प्रवेश करने से रोक देगा। सही बुखारी में हज़रत ज़बैर बिन मुत्इम रज़ियल्लाहु अन्हु से रवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

لا يدخلُ الجنةَ قاطعٌ – صحيح بخاري: 5984 صحيح مسلم: 2556 

“रिश्ता काटने वाला स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा “

 

रिश्तेदारी कैसे निभाई जाए ?

रिश्तेदारों के साथ अच्छे व्यवहार में यह बात आती है कि यदि हमारा रिश्तेदार की आर्थिक स्थिति ठीक है तो उससे संपर्क रखा जाए उसकी खबर रखी जाए और मौका मिलने पर उसकी ज़ियारत भी की जाए, और यदि हमारे रिश्तेदार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो उसके साथ अच्छा व्यवहार करने के साथ उसकी आर्थिक सहायता भी की जाए। अल्लाह ने हमें माल दिया है तो उसमें निर्धनों का भी हक़ रखा है। और निर्धन रिश्तेदार पर खर्च करने का पुन्य भी अधिक बताया गया हैः

الصدَقَةُ على المِسكينِ صَدقةٌ ، و هِيَ على ذِي الرَّحِمِ اثْنتانِ : صَدَقةٌ و صِلَةٌ – صحيح الجامع:  3858 

निर्धन पर दान करने से दान का सवाब मिलता है लेकिन यही दान अगर कमजोर रिश्तेदारों पर किया जाए तो उसका सवाब दोहरा हो जाता है, एक दान का और दूसरा रिश्ता निभाने का”। (सुनन तिर्मिज़ी)

 

अगर रिश्तेदार ग़ैर मुस्लिम हों ?

रिश्ता निभाने के लिए रिश्तेदार का धर्म में सहमती होना ज़रूरी नहीं। अर्थात् यदि किसी का रिश्तेदार मुसलमान नहीं है फिर भी उसके साथ अच्छा व्यवहार करना आवश्यक है। यहाँ तक कि माता पिता जो बहुदेववाद की ओर बुला रहे हों उनकी बात नहीं मानी जाएगी परन्तु दुनिया में उनके साथ अच्छा व्यवहार करना ज़रूरी है। क़ुरआन ने कहाः

 وَإِن جَاهَدَاكَ عَلَىٰ أَن تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا ۖوَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا . سورة لقمان 15

“किन्तु यदि वे (माता-पिता) तुझ पर दबाव डाले कि तू किसी को मेरे साथ साझी ठहराए, जिसका तुझे ज्ञान नहीं, तो उसकी बात न मानना और दुनिया में उसके साथ भले तरीके से रहना।”- (सूरः लुक़मान 15)

बुख़ारी और मुस्लिम की रिवायत है हज़रत अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं किः

 قَدِمَتْ عليَّ أمي وهي مشركةٌ ، في عهدِ رسولِ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ ، فاستفتيتُ رسولَ اللهِ صلَّىاللهُ عليهِ وسلَّمَ ، قلتُ : إنَّ أمي قَدِمَتْ وهي راغبةٌ ، أَفَأَصِلُ أمي ؟ قال : (نعم ، صِلِي أمَّكِ) – صحيح بخاري: 2620 صحيح مسلم: 1003 

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में मेरी माँ मेरे पास आई वह मुस्लिमा नहीं थीं। मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछाः मैंने कहा कि मेरी माँ मेरे पास आई है, वह मेरे माल की इच्छा रखती है क्या मैं अपनी माँ के साथ अच्छा व्यवहार करूं। आपने कहाः हाँ! अपनी माँ के साथ अच्छा व्यवहार करो। (सही बुख़ारीः2620 सही मुस्लिमः 1003)

असल रिश्तेदारी कटने वाले से जुड़ना हैः

इस्लाम यह नहीं कहता कि जो रिश्तेदार अच्छा व्यवाहार करते हैं उनके साथ ही अच्छा व्यवहार करो बल्कि इस्लाम कटने वाले रिश्तेदार से जुड़ने का आदेश देता है और इसी को असल रिश्तादारी निभाना क़रार देता है। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः

ليسَ الواصِلُ بالمُكافِئِ ، ولَكنِ الواصلُ الَّذي إذا قُطِعتْ رَحِمُه وصلَها – صحيح البخاري: 599 

“सिला रहमी करने वाला वह नहीं है जो एहसान का बदला एहसान से दे। बल्कि सिला रहमी करने वाला वह है कि जब उससे रिश्ता तोड़ने की कोशिश की जा रही हो तो वह जाड़ेने की कोशिश करे।” (सही बुख़ारीः 599)

कुछ लोग यह शिकायत करते हैं कि हमारे रिश्तेदार हम से जलते हैं, ऐसे लोगों से हम कहेंगे कि आप मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस प्रवचन को ध्यान में रखें:

सही मुस्लिम की रिवायत है एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा कि मेरे कुछ रिश्तेदार हैं मैं उनसे अच्छा व्यवहार करता हूं और वे मुझ से बुरा व्यवहार करते हैं। मैं उनसे मिलता हूं और वे मुझ से कटते हैं, यह सुनकर करआप ने कहा:

” لئن كنتَ كما قلتَ، فكأنما تُسِفُّهمُ المَلَّ . ولا يزال معك من اللهِ ظهيرٌ عليهم ، ما دمتَ على ذلك ” . صحيح مسلم: 2558 

“अगर तुम वास्तव में ऐसा ही हो जैसा कि तुम बयान कर रहे हो तो मानो तुम उनके मुंह में राख डाल रहे हो, और जब तक तुम्हारा व्यवहार उनके साथ ऐसा ही रहेगा अल्लाह की ओर से उनके मुकाबले में एक सहायक तुम्हारे साथ रहेगा”।

इस लिए यदि रिश्तेदारों से कोई ग़लती हो जाए और वे क्षमा मांगें तो तुरंत माफ कर दें, उन से अच्छा गुमान रखें, उनके साथ विनम्रता का मामला करें, उनकी भावनाओं का सम्मान करें, उनकी ख़ुऱी और ग़म में बराबर के शरीक रहें और हर व्यक्ति को उनके पद के अनुसार सम्मान दें।

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