यदि एक लड़की परदा में सड़क से गुजर रही हो, जब कि उसी के पीछे दूसरी लड़की बेपरदा और तंग कपड़े पहन रखी हो तो बदमाश लड़के घोड़ घोड़ कर किसे देखेंगे? पहली लड़की को या दूसरी लड़की को, आपका जवाब यही होगा कि दूसरी लड़की को, बल्कि उससे छेड़खानी भी कर सकते हैं जब कि पहली लड़की की तरफ निगाह उठाकर भी न देखेंगे, क्यों? इसलिए कि वह परदे में है. लेकिन जब महिला का परदा उठता है तो जानते हैं क्या होता है, अमेरिका में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार हर पांच मिनट में एक महिला का यौन शोषण होता है और भारत की एक ताजा सर्वेक्षण में हर 20 मिनट बाद किसी महिला का का यौन शोषण होता है.

इस मुद्दे को लेकर सारी दुनिया परेशान है और समाधान किसी के पास नहीं, यदि कोई मुझ से पूछे तो मैं कहूंगा कि इसका समाधान इस्लाम में है और केवल इस्लाम में, यह प्रकृति से विद्रोह का परिणाम है, कदम कदम पर सेक्स को हवा देने के सामान देखने को मिलते हैं, खुद लड़कियां भड़कदार और तंग कपड़े पहनी वासना के पुजारियों को आमंत्रित कर रही होती हैं.

ऐसे में अगर कोई कहे कि हम आग जलाएंगे लेकिन चारों ओर की वस्तुयें नहीं जलनी चाहिएं, सोना और हीरे आदि पब्लिक प्लेस में रखे रहेंगे उनकी चोरी नहीं होनी चाहिए, घर का दरवाजा खुला रहेगा घर का सामान सुरक्षित रहना चाहिए, मिठाइयां खुली रहेंगी उन पर मक्खियाँ नहीं लगनी चाहिए, तो ऐसा विचार पागलपन तो हो सकता है, बुद्धि रखने वाले की पहचान नहीं हो सकती.

इस्लाम महिलाओं की सुरक्षा के लिए ऐसी उत्तम शिक्षा देता है कि यदि इनसान उसे व्यावहारिक जीवन में जगह दे तो समाज शांति का केंद्र बन जाए और हर प्रकार का अपराध स्वतः समाप्त हो जाए. इस संबंध में इस्लाम ने तीन नियम दिए हैं

पहला नियमः हृदय में अल्लाह की निगरानी का एहसासः

दिल में अल्लाह पाक पर दृढ़ विश्वास बहाल करता है जो सुनने वाला और देखने वाला है, जो दिल में छिपे रहस्यों और आंखों के विश्वासघात से भी अवगत है, जिसकी निगरानी से आदमी एक क्षण के लिए भी निकल नहीं सकता, हमें यह एहसास दिलाता है कि हमारे दायें बायें कंधों पर निर्धारित किये गए फरिश्ते हमारी एक एक हरकत का रिकॉर्ड तैयार कर रहे हैं, यह एहसास भी दिलाता है कि कल क़यामत के दिन हमारी ज़बान पर महर डाल दी जाएगी और हमारे वह अंग भी हमारे खिलाफ गवाही देंगे जिन्हें सुख पहुंचाने के लिए दुनिया में पाप किया करते थे, और यह एहसास पैदा करता है कि वह जमीन जहां पर पाप किया था महा प्रलय के दिन हमारे खिलाफ गवाही देगी।

 यह एहसास पैदा होने के बाद मनुष्य एक जिम्मेदार हस्ती बन जाता है, उसके दिल में एक पुलिस चौकी बैठ जाती है, जो हर समय उसकी निगरानी करती रहती है, ऐसे में वह पाप का साहस नहीं कर सकता, और अगर कभे इंसान होने के नाते उससे गलती हो जाती है तो उस का अंतरात्मा उसे तुरंत मलामत करता है, अंततः वह तौबा कर के अपने अल्लाह से माफी मांगता है, यही वह भावना थी कि माइज़ अस्लमी और गामदिया जैसे लोग जिन से एकांत में व्यभिचार हो गया था, किसी ने उन्हें देखा तक नहीं था लेकिन उसके बावजूद खींचे खींचे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में  उपस्थित होते हैं और अपना पाप स्वीकार करके अपने लिए सज़ा की मांग करते हैं, यहां तक ​​कि उन्हें पत्थर से मार मार कर खत्म कर दिया जाता है. अल्लाह का शुक्र है कि ऐसे नमूने आज भी पाए जाते हैं

दैनिक अल-अरबिया के अनुसार मई 2012 की घटना है, अमेरिकी राज्य एरिज़ोना में एक कॉलेज में पढ़ रही पांच लड़कियां अपनी कक्षा के एक यमनी छात्र के निवास स्थान में घुस गईं, अंदर से ताले लगा दिए और अपने कपड़े उतार कर उसके कमरे में प्रवेश कर गईं. लेकिन वह खिड़की से छलांग लगा कर बाहर निकलने में सफल हो गया और निकलते ही तुरंत पुलिस को फोन लगाया, पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर पांचों लड़कियों को कैद कर लिया, अनुसंधान के बाद पांचों लड़कियों ने अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने उसे कई बार सेक्स की पेशकश की थी, लेकिन उसने यह कहकर उनकी पेशकश अस्वीकार कर दिया थी कि वह एक देनदार मुस्लिम युवा है और उसका दीन उसे अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी औरत के साथ यौन संबंध की अनुमति नहीं देता.

दूसरा नियमः व्यभिचार तक पहुंचाने वाले कामों पर प्रतिबंधः

इस्लाम महिलाओं की सुरक्षा के लिए दूसरा नियम यह दिया कि व्यभिचार के कारणों पर भी रोक लगा दी और ऐसा एहतियात प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि व्यभिचार तक पहुँचने की नौबत ही न आए, इस लिए इस्लाम ने पुरुषों और महिलाओं दोनों को नज़रें नीची रखने का आदेश दिया, महिलाओं के लिए विशेष आदेश यह दिया गया कि वे घर में ठरी रहें, अगर बाहर निकलने की ज़रूरत पड़ जाए तो परदे का पूरा ध्यान रखें, अपने श्रृगार का इज़हार न करें, किसी गैर-महरम आदमी से बात करते समय स्वर में लचीलापन न हो बल्कि रुखापन पाया जाए ऐसा न हो कि कोई बीमार दिल गलत उम्मीद कायम कर ले, न अजनबी मर्द के साथ एकांत में बैठा जाए, फिर इस्लाम ने निकाह की प्रेरणा दिलाई और उसके रास्ते में पैदा होने वाली बाधाओं को दूर करते हुए ऐसी शादी को धन्य घोषित किया जिस में लागत कम हो, वैवाहिक जीवन में प्रेम से भरा वातावरण बने इसके लिए शादी से पहले लड़की को देख लेने का आदेश दिया गया, और शादी के बाद सुखद वैवाहिक जीवन के लिए ऐसी शुद्ध शिक्षा दी गई कि वैवाहिक जीवन स्वर्ग का उदाहरण बना रहे. और पत्नी के अलावा किसी दूसरी महिला की ओर बिल्कुल उसका ध्यान न जाए।

तीसरा नियमः अपराधियों के लिए सज़ायें:

इन सारे उपायों के बावजूद चूंकि अश्लीलता में स्वयं तज़्ज़त है, और समाज में बीमार स्वभाव रखने वाले पाए जाते हैं जिनके लिए सलाह और प्रस्ताव कोई काम नहीं देता, ऐसे समय यदि इस्लाम बस दिल के प्रशिक्षण और सावधानी पर संतोष किया होता और बुरा स्वभाव रखने वालों के लिए सजा निर्धारित न की होती तो इस्लामी शिक्षा विश्वव्यापी नहीं हो सकती थी, इसलिए मानव प्रकृति के अनुकूल इस धर्म ने सीमा का हनन करने वालों के लिए सख्त से सख्त शारीरिक दंड तै किया,  अतः व्यभीचार करने वाले पुरुष एवं स्त्री अगर शादीशुदा हों तो उनके लिए रजम का आदेश दिया गया, यदि अविवाहित हों तो 100 कूड़े और एक साल के लिए निर्वासन की सजा प्रस्तावित किया गया. और उसे व्यवहारिक रूप देने के सम्बन्ध में आदेश यह दिया गया कि रंग और नस्ल, अमीरी गरीबी के भेदभाव के बिना हर अपराधी को ईमान वालों के एक दल की मौजूदगी में सजा दी जाए ताकि दर्शकों के लिए पाठ हो और बाद में किसी ऐसी शर्मनाक गतिविधि का साहस न हो सके।

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