प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जात दयालुता और क्षमा का नमूना थी, आप ने कभी भी अपने नफ्स के लिए बदला नहीं लिया

प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जात दयालुता और क्षमा का नमूना थी, आप ने कभी भी अपने नफ्स के लिए बदला नहीं लिया

 

  1. प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जात दयालुता और क्षमा का नमूना थी, आप ने कभी भी अपने नफ्स के लिए बदला नहीं लिया, लेकिन अगर अल्लाह के आदेशों का उल्लंघन होता तो अल्लाह के लिए बदला लेते थे, वरना माफ कर देते थे, उहुद के युद्ध में काफिरों ने आप के दांत तोड़े, सिर फोड़ा, आप एक गुफा में गिर गए थे, साथियों ने कहा कि उन पर शाप दीजिए: नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मैं शाप देने के नहीं भेजा गया अल्लाह ने मुझे लोगों को दीन की ओर आकर्षित करने के लिए भेजा है, तब आपने यह दुआ फ़रमाई:  اللهم اهد قومي فإنهم لايعلمون ऐ अल्लाह मेरी कौम का निर्देश फरमा, वह मुझे जानती नहीं है।

  2. एक यात्रा में मुहम्मद सल्ल. एक पेड़ की छाया में आराम कर रहे थे थे और अपनी तलवार को पेड़ की शाखा पर लटका दिया था, एक दुश्मन गैरिस बिन अल-हर्रास आया, और अवसर पाकर तलवार शाखा से उठाया और आपको जगा कर गुस्ताखाना तरीके से बोलाः मुहम्मद!अब तुम्हें कौन बचाए होगाय़?, आपने बहुत इत्मीनान से कहा: अल्लाह। न जाने इसमें क्या शक्ति थी कि शत्रु थर थर कांपने लगा और तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर गई, अब मुहम्मद सल्ल. ने वह तलवार उठा लिया और कहाः अब तुम्हें मुझ से कौन बचा सकता है?  वह हैरान और परेशान दया याजना करने लगा, तो आप उस से कहा: जाओ में बदला नहीं लिया करता.

  3. उसी प्रकार हबार नामक एक व्यक्ति ने मुहम्मद सल्ल. की बेटी हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को भाला मारा, वह हौदज से नीचे गिर गईं और गर्भ गिर गया, हबार ने आप से क्षमा मांगी, तो मुहम्मद सल्ल. उसे माफ कर दिया,

  4. प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया और माफी के स्पष्टीकरण के लिए हम बनू हनीफा के सरदार सुमामा बिन उसाल हनफी की घटना का उल्लेख करना न भूलें जो मुसैलमा कज़्ज़ाब के आदेश से भेस बदल कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हत्या करने निकले थे लेकिन मुसलमानों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और मदीना लाकर मस्जिद के एक खंभे से बांध दिया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आये तो उस से कहाः सुमामा!तुम्हारे पास क्या है? उन्होंने कहा: हे मुहम्मद! मेरे पास भलाई है, अगर तुम हत्या करो तो एक खून वाले की हत्या करोगे और अगर एहसान करो तो एक कदरदां पर दया करोगे, और अगर माल चाहते हो तो जो चाहो मांग लो। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे इसी हालत में छोड़ दिया, दूसरी बार आप उस के पास से गुज़रे तो वही सवाल किया, और सुमामा ने फिर वही जवाब दिया, उसके बाद तीसरी बार गुज़रे तो फिर वही सवाल किया और सुमामा ने फिर वही जवाब दिया। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः इसे आज़ाद कर दो, सुमामा मैंने तुझे क्षमा कर दिया। जब सुमामा को आज़ाद कर दिया गया तो वह निकला और मदीना के एक बाग़ीचे में आया, वहाँ स्नान किया, पवित्रता प्राप्त की और अपने कपड़े को धुला फिर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, उस समय आप मस्जिद में बैठे हुए थे, उस ने कहाः ऐ मुहम्मद! आपके चेहरे से ज्यादा अप्रिय मेरी दृष्टि में कोई चेहरा नहीं था और आपके धर्म से अधिक अप्रिय मेरी दृष्टि में कोई धर्म नहीं था, और आपके शहर से अधिक अप्रिय कोई शहर नहीं था। अब स्थिति यह हो चुकी है कि आपके चेहरे से अधिक प्यारा कोई चेहरा नहीं, आपके धर्म से अधिक प्यारा कोई धर्म नहीं और आपके शहर से अधिक प्यारा कोई शहर नहीं। मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्ति कोई सत्य उपासना योग्य नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बन्दे और उसके दास हैं।

  5. अबू सुफयान बिन हर्ब उमवी वह व्यक्ति था जिसने उहुद और अहज़ाब युद्ध आदि में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर निरंतर आक्रमण किया था, और सेनापति बना रहता था। मक्का विजय के समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से बहुत दयालुता से बात की “हे अबू सुफयान! अभी भी समय नहीं आया कि तुम इतनी बात समझ लो कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं। अबू सुफयान बोलाः मेरे माता पिता आप पर कुर्बान! आप कितने विवेक, कितने सम्बन्ध का हक़ अदा करने वाले और कितने दुश्मनों पर दया करने वाले और क्षमाशील हैं।

  6. मुहम्मद सल्ल. की पवित्र जीवनी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उनके जैसा दयालू इनसान इस धरती पर पैदा नहीं हुआ, 21 वर्ष तक कष्ट सहन करने के बाद वह दिन भी आया कि आप वह जन्म-भूमि (मक्का) जिस से आपको निकाल दिया गया था उस पर विजय पा चुके थे। प्रत्येक विरोद्धी और शत्रु आपके कबज़ा में थे, यदि आप चाहते तो हर एक से एक एक कर के बदला ले सकते थे और 21 वर्ष तक जिन्हों ने उन्हें चैन की साँस तक लेने नहीं दिया था सब्हों का सफाया कर सकते थे लेकिन आपको तो सम्पूर्ण मानवता के लिए दयालुता बना कर भेजा गया था। ऐसा आदेश देते तो कैसे? उनका उद्देश्य तो पूरे जगत का कल्याण था इस लिए आपने लोगों की सार्वजनिक क्षमा की घोषणा कर दी।

  7. मुहम्मद सल्ल. की पवित्र जीवनी में आता है कि एक बार उन्हों ने लोगों को सत्य मार्ग बताने के लिए ताइफ की यात्रा की और वहाँ पहुंच कर समुदाय के लीडरों से बातें कीं परन्तु किसी ने आपकी बात पर ध्यान नहीं दिया बल्कि अपने लफंगों को उनके पीछे लगा दी जिन्हों ने आप पर पत्थर बरसाए, पूरा शरीर लहूलहान हो गया, आप एक स्थान पर बेहोश होकर गिर पड़े, वहीं आकाशीय दूत जिब्रील पधारते हैं जिनके साथ पहाड़ों के दूत थे वे अनुमति चाहते हैं कि यदि आप आदेश दें तो मैं ताइफ निवासियों को दो पहाड़ों के बीच पीस दूं। परन्तु मुहम्मद सल्ल. की दयालुता देखिए कि वहाँ भी कहते हैंः नहीं उन्हें रहने दिया जाए, मुझे आशा है कि अल्लाह उन्हीं के वंश से ऐसे लोगों को पैदा करेगा जो मात्र एक अल्लाह की पूजा करने वाले होंगे बहुदेववादी नहीं होंगे। (सहीह बुख़ारी)

  8. मुहम्मद सल्ल. ने किसी युद्ध में देखा कि किसी ने एक महिला की हत्या कर दी है तो आप क्रोधित हुए और बच्चों और महिलाओं को युद्ध में भी मारने से रोक दिया। (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)

  9. इस्लाम के विश्व शान्ति का अनुभव करें कि शान्ति दूत ने फरमायाः ” जिसने किसी (इस्लामी देश में रहने वाले) अमुस्लिम की हत्या कर दी वह स्वर्ग की सुगंध भी न पा सकेगा हालांकि स्वर्ग की सुगंध चालीस वर्ष की दूरी तक पहुंच रही होगी।” (सहीह बुख़ारी)

  10. एक बार मुहम्मद सल्ल. से कहा गयाः आप बहुदेववादियों को शाप दीजिए, तो मुहम्मद सल्ल. ने कहाः ” मैं शाप देने के लिए नहीं भेजा गया, लेकिन दयालुता बनाकर भेजा गया हूं,” (सहीह मुस्लिम)

  11. मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दयालुता का एक उदाहरण यह भी है कि यदि आप नमाज़ पढ़ा रहे होते और उसी समय बच्चों के रोने की आवाज़ आपके कानों तक पहुंचती तो नमाज़ हल्की कर देते थे। हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः मैं नमाज़ के लिए खड़ा होता हूं और मेरी नियत यह होती है कि मैं उसे तम्बी करूंगा लेकिन जब किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनता हूं तो नमाज़ हल्की कर देता हूं, क्यों कि मुझे पता है कि उसके रोने के कारण उसकी माँ उस पर तर्स खाती है। (सहीह बुख़ारी, सहीह मुस्लिम)

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