हम में से हर आदमी को नमाज़ में विनम्रता न आने की शिकायत होती है, इसका  समाधान क्या है इसे जानने के लिए इस लेख का अवश्य अध्ययन करें
हम में से हर आदमी को नमाज़ में विनम्रता न आने की शिकायत होती है, इसका समाधान क्या है इसे जानने के लिए इस लेख का अवश्य अध्ययन करें

निम्न में हम उन संसाधनों की जानकारी प्राप्त करते हैं जो हमारी नमाज़ में विनम्रता पैदा करने में सहायक बन सकते हैं।

नमाज़ में विनम्रता के संसाधनः

नमाज़ में विनम्रता लाने वाले संसाधन दो प्रकार के हैं, एक का संबंध नमाज़ के बाहर से है और दूसरे का संबंध नमाज़ के अंदर से है।

जिनका संबंध नमाज़ के बाहर से है उन में जैसे अल्लाह को उसकी रुबूबियत, उलूहियत और उसके नामों और गुणों में एक जानना, दिल में एख़लास का वजूद, एकांत में भी अल्लाह की निगरानी का अनुभव, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अनुसरण की भावना, अल्लाह ने जिन कामों का आदेश दिया है उनका पालन करना और जिन कामों से रोक दिया है उन से रुक जाना, हराम आहार और हराम वस्त्र से बिल्कुल दूर रहना, विनम्रता के साथ नमाज़ पढ़ने वालों की संगत और अल्लाह से ज़्यादा से ज्यादा दुआ करना कि अल्लाह हमारी नमाज़ों में विनम्रता लाए।

और जिन संसाधनों का संबंध नमाज़ के अंदर से है वह निम्नलिखित हैं:

1- नमाज़की तैयारी करें:

*मुअज़्ज़िन की अज़ान सुनें तो पूरी खामोशी के साथ अज़ान के शब्द दोहराते रहें, फिर अज़ान के बाद की दुआ के पुण्य को अपने मन मस्तिष्क में बैठाए हुए उन्हें पढ़ें, जहाँ तक हो सके नमाज़ और इक़ामत के बीच दुआ करें।

*भली भांति वुज़ू करें, वुज़ू से पहले मिस्वाक कर लें, और बिस्मिल्लाह कहते हुए वुज़ू शूरु करें, हर अंग को धुलते समय अपने मन में यह बात बैठाएँ कि जान बूझकर या न जानते हुए आपसे जो पाप हुए थे वुज़ू के अंगों को धुलते हुए वह सारे पाप भी धुल जाएंगे, और उस पुण्य को भी ध्यान में जमाये रखें कि वुज़ू के कारण ईमान वालों की पेशानियां और हाथ पाँव रौशन होंगे और उसके कारण वे मैदाने मह्शर में दूसरी उम्मतों के बीच प्रमुख होंगे। जब आप वुज़ू के एक एक बिंदु को ध्यान में ताज़ा रखेंगे तो आपकी नमाज़ अवश्व विनम्रता से परिपूर्ण होगी।

*नमाज़ से पहले ज़ीनत अपना लें, कपड़े साफ हों, अगर खुशबू मिल सके तो खुशबू भी लगा लें, जरा विचार करें कि जब आपको किसी पार्टी में जाना होता है तो किस तरीके से तैयारी करते हैं…जब कि आप बादशाहों के बादशाह और ब्रह्मांड के निर्माता की सेवा  में उपस्थित हो रहे हैं। बल्कि सच्चाई यह है कि साफ वस्त्र पहनने से मानसिक रूप में भी राहत मिलती है और हृदय को शान्ति प्राप्त होती है।

*जब मस्जिद का रुख करें तो अपने मन में यह बात बैठालें कि आप अल्लाह के घर का क़स्द कर रहे हैं, जो उसे धरती की सारी जगहों में सबसे प्रिय है, और हबीब की आदत होती है कि यदि महबूब को न पा सके तो उसके घर का क़स्द करता है, और यह सम्मान क्या कम है कि अल्लाह ने आपको अपने घर में प्रवेश करने की तौफ़ीक़ प्रदान कर दी है।

*अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बशारतों को भी ध्यान में ताज़ा रखें  कि हर हर क़दम पर आपका एक पाप माफ हो रहा है और एक स्तर ऊंचा हो रहा है, मस्जिद की ओर जाते समय आप पर विनम्रता तारी हो, दुआ से पहले मस्जिद पहुंचें और वहां बैठकर नमाज़ का इंतजार करें, क्योंकि इतनी देर आपका प्रतीक्षा भी नमाज़ में शामिल कर लिया जाता है, फरिश्ते आप के लिए दुआ करते हैं कि “हे अल्लाह उस पर दया फरमा, हे अल्लाह उस पर मेहरबान हो जा”।

*नमाज़ शुरू करने से पहले उन सभी कामों से छुटकारा पा लें जो नमाज़ में चिंता का कारण बन सकते हैं, जैसे नमाज़ के लिए शांत जगह की तलाश करें जो शोर और हंगामा से बिल्कुल दूर हो, सामने के पर्दे या जाए नमाज़ पर ऐसा पर्दा न हो जो आपकी विनम्रता में खलल पैदा करे।

खानपान की इच्छा हो या शौचालय की आवश्यकता हो तो नमाज़ से पहले उन से फारिग़ हो जाएं। अल्लाह के रसूल सल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

لا صلاةَ بحضرةِ الطعامِ ، ولا هو يُدافِعُه الأخبثان مسلم 560

“जब खाना उपस्थित हो और शौचालय निकलने पर ज़ोर दे रहा हो तो नमाज़ नहीं होती”।  (मुस्लिम 560)

अतः विनम्रता में जो चीजें बाधा बन सकती हों उन से छुटकारा पा कर क़िबला रुख हो कर खड़े हो जाएं, सफें सीधी कर लें, अगर सफों के बीच खाली जगह हो तो उसे भर लें कि ऐसा न हो कि शैतान बीच में आ जाए।

*हाथ बांधने से पहले मिस्वाक कर लें क्योंकि मिस्वाक मुंह की सफाई का स्रोत और  अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने का कारण है।

 2- अल्लाह की महानता को ध्यान में बैठायें

 नमाज़ शुरू करने से पहले उस अल्लाह की महानता पर विचार करें जिसकी इबादत करने जा रहे हैं।

*आप के दिल में अपने रब के प्रति प्रेम की भावना हो, जिसने आपको बहुमूल्य शरीर प्रदान किया और हर तरह की खुशी से समृद्ध किया।

*आपके दिल में हया की भावना पैदा हो कि उस अल्लाह की नेमतों में दिन रात पलने के बावजूद उसी के सामने हरदम उसकी अवज्ञा का साहस करते हैं, अगर वह चाहता तो जमीन को आदेश देता जो हमें निगल लेती अथवा आकाश को आदेश देता जो हमें उचक लेती लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह बड़ा दयावान है।

*आप के दिल में उसके भय की भावना पाई जाती हो, आकाशीय दूत जिब्रीले अमीन की अल्लाह के भय से यह स्थिति थी कि मेराज की रात बोसीदा टाट के समान हो चुके थे।

अतः हाथ बांधते हुए “अल्लाहु अकबर” कहें तो उसके अर्थ पर विचार करें कि अल्लाह सब से बड़ा है, जिसके क़ब्ज़े में सारा विश्व है। जब यह स्थिति आपके मन में बैठेगी तो क्या यह सच नहीं कि आप विनम्रता के प्रतीक बने अपनी नमाज़ की ओर लपकेंगे?

3- मौत की याद ताजा कर लें

नमाज़ में प्रवेश करते ही मौत की याद ताजा कर लें और यह सोचें कि शायद इसके बाद आपको कोई नमाज़ अदा करने का मौका न मिल सके और यह नमाज़ मेरी अंतिम नमाज़ साबित हो। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:

 أذكرِ الموتَ في صلاتكَ ، فإن الرجلَ إذا ذكرَ الموتَ في صلاتهِ لحرِيّ أن يحسنَ صلاتهُ، وصَلّ صلاةَ رجلٍ لا يظنّ أنه يصلّي صلاةُ غيرها  السلسلة الصحیحة 1421 

“नमाज़ में मौत को याद करो, क्योंकि जब एक व्यक्ति अपनी नमाज़ में मौत को याद करता है तो ज़्यादा उचित है कि वह अपनी नमाज़ को ठीक-ठाक अदा कर सके, और ऐसे आदमी की तरह नमाज़ अदा करो जिसे उम्मीद न हो कि वह दूसरी नमाज़ पढ़ सके”। (सिलसिला सहीहा 1421)

और एक दूसरी हदीस में कहा गया है कि

 إذا أنتَ صلَّيتَ فصَلِّ صلاةَ مُوَدِّعٍ السلسلۃ الصحیحۃ 4/545

 जब तुम नमाज़ पढ़ो तो ऐसे इंसान की तरह नमाज़ पढ़ो जो अलविदा कहने वाला हो।  (सिलसिला सहीहा 4/545)

इसलिए जब हाथ बांधें तो मौत को याद कर लें और यह सोचें कि शायद यह हमारी अंतिम नमाज़ है इसके बाद मुझे नमाज़ पढ़ने का मौका नहीं मिलने वाला है, जब मन में यह भावना पैदा होगी तो नमाज़ में अजीब तरीके से विनम्रता आ सकेगी।

4- एहसान की स्थिति पैदा करें

 नमाज़ के लिए हाथ उठाते ही अपने नंदर यह तसव्वुर पैदा करें कि हम अल्लाह को देख रहे हैं और उस से सरगोशी कर रहे हैं, और यह एहसान का सबसे उच्चतर दर्जा है। या कम से कम स्वयं में यह विचार पैदा करें कि अल्लाह हमें देख रहा है और हमारी निगरानी कर रहा है। हम उस से एक क्षण के लिए भी ओझल नहीं हैं। अल्लाह पूरे जलाल के साथ हमारे सामने हो और हमें नमाज़ पढ़ने का आदेश दे तो आखिर उस समय हमारी स्थिति कैसी होगी। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:

الإحسانُ : أنْ تعبدَ اللهَ كأنكَتراهُ ، فإنْ لم تكنْ تراهُ فإنَّهُ يراكَ   صحیح البخاری: 4777، صحیح مسلم:  8

यानी अल्लाह की इबादत इस प्रकार करो मानो कि तुम उसे देख रहे हो, अगर ऐसा न हो सके तो कम से कम इस तरह कि वह तुम्हें देख रहा है। (सही बुखारी: 4777, सही मुस्लिम: 8)

लेकिन यह स्थिति कब पैदा होगी? जबकि दिल सांसारिक आलाईशों से मुक्त हो, दिल में अल्लाह की निगरानी और उसके प्रति जवाबदेही का एहसास हो और मन में आख़िरत की चिंता रची बसी हो।

5- मन में मुनाजात की कल्पना पैदा करें

इस तसव्वुर को ध्यान में बैठाएँ कि आप अल्लाह से बात कर रहे हैं, अपना वांछित अपने अल्लाह को सुना रहे हैं, अल्लाह तआला भी इसका जवाब दे रहा है। अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश है:

  إنَّ أحدَكم إذا قام يُصلِّي إنما يُناجي ربَّه ، فلْينظرْ كيف يُناجيه ؟  صحیح الجامع 1538

“जब एक व्यक्ति नमाज़ अदा करने के लिए खड़ा होता है तो वह अपने रब से बातें  करता है तो देख ले कि उस से कैसे बात कर रहा है”। सहीहुल जामिअ 1538

 एक दूसरी हदीस में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इरशाद है अल्लाह फरमाता है:

“मैं ने नमाज़ को अपने और अपने बंदे के बीच दो भागों में बांट दिया है, आधा हिस्सा मेरा है और आधा हिस्सा मेरे बंदे का, और मेरे बन्दे के लिए वह सब कुछ है जो सवाल करे, तो जब बंदा  الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ  कहता है तो अल्लाह फरमाता है: حمِدَني عبدي मेरे बंदे मेरी बुज़ुर्गी बयान की, जब बंदा الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ कहता है तो अल्लाह फरमाता है: أثنى عليَّ عبدي मेरे बंदे ने मेरी तारीफ की, जब बंदा مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ  कहता है तो अल्लाह तआला कहता है مجَّدني عبدي  मेरे बंदे ने मेरा सम्मान किया, और जब बंदा إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ   कहता है तो अल्लाह फरमाता है: هذا بينى وبينَ عبدي ولعبدي ما سألَ यह मेरे और मेरे बंदे के बीच है मेरे बंदे के लिए वह सब कुछ है जो उसने मांगा। और जब बंदा  اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ कहता है तो अल्लाह फरमाता है:  هذا لعبدي ولعبدي ما سأل यह मेरे बंदे के लिए है और मेरे बंदे के लिए वह सब कुछ है जो उसने मांगा।” (सही मुस्लिम 395)

 इसलिए हाफिज इब्न क़य्यिम रहिमहुल्लाह कहते हैं: हर आयत के बाद ज़रा ठहरो मानो अपने रब का जवाब सुन रहे हो…। यही नहीं बल्कि एक दूसरी हदीस में आता है कि जब बंदा नमाज़ में होता है तो अल्लाह तआला अपना चेहरा अपने बंदे के चेहरे की ओर गाड़ देता है। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

فإذا صلَّيتم فلا تلتَفِتوا ، فإنَّ اللَّهَ يَنصِبُ وجهَه لوجهِ عَبدِه في صلاتِه ما لَم يلتَفِتْ  الترغیب و الترھیب 1/253 و صححہ الألبانی فی صفۃ الصلاۃ 89  

“जब आप नमाज़ पढ़ रहे हो तो उदासीन मत बरतो क्योंकि प्रार्थना में अल्लाह तआला अपना चेहरा अपने नौकर के चेहरे पर गाड़ देते हैं जब तक बंदा उदासीन नहीं बरतते”।(अत्तरग़ीब वत्तरहीब 1/253 इस हदीस को अल्लामा अलबानी ने सिफतुस्सलात पृष्ठ 89 में सही कहा है)

 एक असर में आता है कि जब बंदा नमाज़ में सुस्ती बरतता है तो अल्लाह कहते हैं “إلى خير مني، إلى خير مني ؟ ”  क्या मुझ से बेहतर की ओर, क्या मुझ से बेहतर की ओर ?

सुब्हानल्लाह! अगर हर नमाज़ी अपनी नमाज़ में इस अवधारणा को अपने मन में बैठाए रहेगा तो निःसंदेह उसे बड़ी विनम्रता मिलेगी और क्यों न मिले कि अल्लाह तआला से संबोधित है और उसे उसका वांछित पूरा कर रहा है।

6- नमाज़ की सूरतों और अज़कार के अर्थ पर ग़ौर करें

नमाज़ में पढ़ी जाने वाली सूरतों और उसके अज़कार जैसे सना, सूरः फातिहा, रुकूअ, सज्दा की तस्बीहात और दरूद शरीफ आदि के अर्थ और अभिप्राय पर भी विचार करें। अर्थात् आप नमाज़ की जिस स्थिति में हों उस स्थिति के अज़कार के अर्थ और अभिप्राय को अपने मन में बैठाने की कोशिश करें। अगर अरबी न जानते हों तो कम से कम उनका मतलब और अर्थ याद कर लें और उन्हें पढ़ते समय यह ध्यान रखें कि उनके द्वारा अपने रब से क्या निवेदन कर रहे हैं। मतलब यह कि आप रटी रटाई और बे ख़्याली में तिलावत न करें बल्कि नमाज़ के अमल को सोच सोच कर अदा करें कि आप अमुक अमल करने जा रहे हैं जैसे जब आप क़्याम में हों तो क़्याम की सूरतों और दुआओं पर ग़ौर करें, उनके अर्थ को ध्यान में बैठायें, रुकूअ में जाएं तो “सुब्हान रब्बियल अज़ीम” कहते हुए अपने रब की महिमा को दिल पर तारी करें, फिर जब सज्दा में जाएं तो “सुब्हान रब्बिय आला” कहते हुए अपने अपने रब की बड़ाई को ध्यान में ताज़ा करें और अपने अंदर यह भावना पैदा करें कि मैं अपने सिर को अल्लाह के सामने रखे हुआ हूं और ज़ुबान से उसकी पाकी बयान कर रहा हूँ। जब आपका ध्यान आयतों और दुआओं के अर्थ पर केंद्रित होगा तो आपके विचार यक्सू हो जाएंगे।

7- अल्लाह की जनाब में शैतान से पनाह मांगें

ऊपर्युक्त बयान किए गए प्रत्येक माध्यम को अपनाने के बावजूद यदि आपकी नमाज़ में विनम्रता नहीं आ रही हो तो नमाज़ की स्थिति में अपने बायें ओर तीन बार थूक दें और अल्लाह की ज़ात से शैतान की बुराई से पनाह मांगें।

एक बार हज़रत उस्मान बिन अबिल आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास शिकायत की कि

يا رسولَ اللهِ . إنَّ الشيطانَ قد حال بينى وبين صلاتي وقراءَتي . يُلَبِّسُها عليَّ . فقال رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ ” ذاك شيطانٌ يُقالُ له خَنزَبٌ . فإذا أحسستَه فتعوَّذْ بالله منه . واتفُل على يسارِك ثلاثًا ” فقال : ففعلتُ ذلك فأذْهَبَه اللهُ عني   مسلم 2203

ऐ अल्लाह के रसूल शैतान मेरे और मेरी नमाज़ और क़िरत के बीच हाइल हो जाता है और वस्वसे पैदा करता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः वह शैतान है जिसे ख़िंज़ब कहा जाता है, जब तुम्हें ऐसा अनुभव हो तो अल्लाह की जनाब में उस से पनाह मांगो और अपने बायें ओर तीन बार थूक दो। कहते हैं कि मैं ने ऐसा ही किया, अतः अल्लाह ने इसे मुझ से दूर कर दिया। सहीह मुस्लिम 2203

 

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