Safat Alam Taimi

दयालुतादया ऐसा शब्द है जिसे सुन कर हृदय को अपार शान्ति मिलती है, और इस्लाम मानव प्रकृति के अनुकूल धर्म है इस लिए अल्लाह ने इस धर्म को सम्पूर्ण संसार के लिए दयालुता बना कर उतारा है। इस्लाम की यह दयालुता सारी सृष्टि के लिए आम है, चाहे जिन्नात हों या इनसान, मुस्लिम हों या गैरमुस्लिम, पशु पक्षि हों या वनस्पति, सभी प्राणियों के साथ इस्लाम दया का आदेश देता है और क्यों ना दे कि यह धर्म उस अल्लाह का उतारा हुआ है, जिसका गुण ही “अर्रहमान” (बड़ा कृपाशील) और “अर्रहीम” (अति दयावान) है, जो अपने मानने वालों से ऐसी रहमत और दयालुता का मामला करता है कि वैसा मामला एक माँ भी अपने दूध पीते बच्चे के साथ नहीं करती। यह दीन आख़िर दया का धर्म क्यों न हो कि उसके अन्तिम संदेष्टा सारी प्राणियों के लिए रहमत बना कर भेजे गए थे, जिसकी गवाही खुद अल्लाह ने दी:

وما أرسلناک إلا رحمة للعالمین سورہ الانبیاء107

“(हे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हम ने आपको सारी दुनिया वालों के लिए रहमत बना कर भेजा है”.

जी हाँ! अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रहमत के दीप थे, आख़िर उस व्यक्ति से बढ़कर दयालु कौन हो सकता है, जिसे एक दो साल नहीं बल्कि लगातार 21 साल तक कष्ट पहुंचाया गया हो, जिस के रास्ते में कांटे बिछाए गए हैं, जिस के सिर पर ऊंट की ओझड़ियां डाली गई हों, जिसे पागल मजनून दीवाना कह कर पुकारा गया हो, जिसका सामाजिक बहिष्कार किया गया हो, जिस पर पत्थरों की बारिश बरसाई गई हो, जिसके मानने वालों को जानलेवा कष्ट पहुंचाया गया हो, जिसकी हत्या के षड़यंत्र किए गए हों, जिसे घर से बेघर किया गया हो, जिसे अपना प्यारा वतन छोड़ने पर भी चैन और शांति के साथ रहने न दिया गया हो, और लगातार आठ साल तक उन्हें कष्ट पहुंचाया गया हो, लेकिन वही व्यक्ति जब 21साल बाद अपने दुश्मनों पर विजय पाता है, तो प्रत्येक शत्रुओं की सार्वजनिक क्षमा की घोषणा कर देता है, दुनिया का इतिहास कोई ऐसा उदाहरण पेश कर सकता है कि जिस ने गालियां सुनकर दुआएं दी हों, पत्थर खा कर गुलदस्ता पेश किया हो और खून पीने वालों को जीवन रस पिलाया हो. अगर यह उदाहरण मिलसकता है तो रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र जीवनी में मिल सकता है.

इस्लाम की दृष्टि में दया का इतना महत्व है कि उसने इस विशेषता से सुसज्जित होने की बार बार प्रेरणा दी है, तथा दया और सहानुभूति करने वालों को विभिन्न प्रकार की बशारतों से नवाज़ा है, इसी लिए अल्लाह के रसूल सल्ल. का आदेश है:

إرحمو ا من فی الأرض یرحمکم من فی السماء (ترمذى 1924

  “तुम जमीन वालों पर रहम करो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा”

सहीह बुखारी की रिवायत है आप सल्ल. ने फरमाया:

من لایرحم لایرحم    بخاری 5997  

“जो रहम नहीं करता उस पर रहम नहीं किया जाता”

शर्त रख दी कि अगर तुम दया करोगे तो तुम पर भी दया की जाएगी, यदि दया नहीं करोगे तो तुम भी दया से वंचित कर दिए जाओगे। अल्लामा हाली ने कहा था:

करो मेहरबानी तुम अह्लि ज़मीन पर

ख़ुदा मेहरबान होगा अर्श बरीन पर

इस्लाम दया का धर्म है, जिस में दया नहीं वह दुर्भाग्य है, तभी तो कहा गया:

 لاتنزع الرحمة إلا من شقی (ترمذی  1923

  ” दुर्भागी से ही रहमत छीनी जाती है” अर्थात् तंग दिल, कठोर स्वभाव वाला और जल्द क्रोधित होने वाला व्यक्ति दया से वंचित कर दिया जाता है, क्योंकि मुसलमान की शान तो यह होती है कि वह रहम दिल होता है, दया करना उसकी आदत होती है।

रिश्तेदारों में हमारी दया के योग्य सब से पहले नंबर पर हमारे माता पिता हैं, चाहे वह मुसलमान हों या ग़ैर मुस्लिम ‘उनके साथ अच्छा व्यवहार होना चाहिए, उसके बाद मानव समुदाय में दूसरा दरजा पड़ोसी का है, जिनके अधिकार की अदायगी पर अपार बल दिया गया है, सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “अल्लाह की क़सम वह मोमिन नहीं है, अल्लाह की क़सम वह मोमिन नहीं है, अल्लाह की क़सम वह मोमिन नहीं है, सहाबा ने पूछा: कौन ऐ अल्लाह के रसूल! रहमते आलम सल्ल. ने कहा:

من لایأمن جارہ بوائقہ  (صحيح الترغيب 2550 

” जिसके कष्ट से उसके पड़ोसी सुरक्षित न हों. ”  (सहिहुत्तर्गीब 2550 )

कमज़ोरों और सेवकों के साथ दया देखें कि आप सल्ल. अपनी अन्तिम स्थिति में हैं, लेकिन आपको यह फिक्र खाये जा रही है कि लोग अपने सेवकों के साथ अच्छा व्यवहार करें, आप कह रहे हैं जैसा कि सुनन अबी दाऊद की रिवायत हैः

الصلاة الصلاة وماملکت أیمانکم  (السلسلة الصحيحة 2/525 

 “नमाज़ की पाबंदी करना, नमाज़ की पाबंदी करना और अपने सेवकों के साथ अच्छा व्यवहार करना “.

अनाथों और विधवाओं के साथ अच्छा व्यवहार की ताकीद करते हुए रहमते आलम सल्ल. ने कहा:

أنا وکافل الیتیم فی الجنة کھاتین ( صحيح الأدب المفرد  101  

“अनाथ बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करने वाला जन्नत (स्वर्ग) में मुझ से इतना करीब होगा जैसे यह दो उंगलियां”.(तिर्मिज़ी)

सही बुखारी की रिवायत के अनुसार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

 الساعی علی الأرملة والمسکین کالمجاھد فی سبیل اللہ ( صحيح البخاری 5353   

“विधवाओं तथा निर्धनों के लिए दौड़ धूप करने वाला उस व्यक्ति के समान है, जो अल्लाह के रास्ते में जिहाद करता है”. (बुखारी 5353)

इस्लाम बच्चों के साथ भी दया का हुक्म देता है: बुखारी और मुस्लिम की रिवायत के अनुसार हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि एक देहाती अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, उसने अपको देखा कि आप बच्चे को लाड प्यार कर रहे हैं तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ, आप से कहने लगा कि आप लोग अपने बच्चों को चूमते हैं, हम तो उन को कभी नहीं चूमते। यह सुन कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

أو أملک لک إن نزع اللہ من قلبک الرحمة (صحيح البخارى 5998

“अगर अल्लाह ने तेरे दिल से दया और प्यार निकाल दिया है तो मैं क्या करूं “.

आज बाल अधिकार की संगठनें बच्चों पर हो रहे अत्याचार और ज़्यादती का अन्त करना चाहती हैं तो उन्हें शान्ति दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बच्चों के प्रति ​​शुद्ध शिक्षाओं को अपनाना होगा।

इस्लाम में दया का दायरा केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं बल्कि इस्लाम पशु पक्षियों, वनस्पति और जमादात के साथ भी दयालुता और सज्जनता का आदेश देता हैः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने छायादार पेड़ को काटने या उसके नीचे गंदगी फैलाने वाले को लानत के योग्य बताया, और कांटेदार पेड़ जो रास्ता चलने वालों को कष्ट पहुँचाता था, उसे काट देने वाले को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वर्ग की नेमत से समृद्ध होते हुए देखा (मुस्लिम 1914)

जानवरों के साथ अच्छा व्यवहार की ताकीद करते हुए सही बुखारी की की रिवायत के अनुसार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: एक व्यक्ति बहुत प्यासा था, कुवें से पानी पी कर जब बाहर निकला तो देखा कि एक कुत्ते की प्यास से बुरी हालत है, वह प्यास के मारे ज़मीन के कचड़े को चाट कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश कर रहा है, वह व्यक्ति कुवें में उतरा, अपने मोज़े में पानी भरकर लाया और कुत्ते को पिला दिया, अल्लाह को यह अदा इतनी पसंद आई कि अल्लाह ने उसकी माफी फरमा दी. लोगों ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हमें चौपायों (के साथ अच्छा व्यवहार करने) में भी पुण्य मिलता है? तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “हर जानदार पर दया करने में पुण्य है”. (बुखारी 6009)

उसी तरह एक यात्रा में किसी सहाबी ने पक्षी के घोंसले से बच्चे उठा लिया, चिड़िया ने सिर पर आकर फरफराना शुरू किया, जब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी सूचना दी गई तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

من فجع هذه بولدها ردوا ولدها إليها (سنن أبى داؤد 2675

 “इस बच्चे को उठाकर उसे किसने तकलीफ पहुंचाई है, उसके बच्चे तुरंत उसके हवाले कर दो. ” (सुनन उबी दाऊद 2675)

जानवरों के साथ कठोरता का प्रदर्शन करने के कारण एक महिला नरक की हकदार ठहरी, बुखारी की रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “एक औरत एक बिल्ली के कारण नरक में डाली गई, उसने उसे बांध रखा था, न तो उसे कुछ खाने को दिया  और ना उसे मुक्त किया कि वह चल फिर कर कीड़े मकूड़े खा लेती यहां तक ​​कि मर गई. ” ( बुख़ारी 3318 )

तातपर्य यह कि इस्लामी शिक्षा का सारांश बस इतना है कि हमारी बात से, हमारी जान से, हरकत से यहाँ तक कि हमारी इबादत से भी किसी को हल्की चोट और कष्ट न पहुंचे, इस्लाम की यही शान है और इसी से उसकी पहचान होती है.

जो लोग इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ते हैं वास्तव में वह इस्लामी शिक्षाओं से अवगत नहीं हैं? आज जरूरत है कि इस्लाम के मानने वाले दुनिया को इस्लाम की दयालुता से अवगत करायें ताकि उनकी शंकायें  दूर हो सकें।

 

[ica_orginalurl]

Similar Posts