आज अरफ़ा का दिन है, अर्थात् 9वीं ज़िलहिज्जा जो सम्मान वाले दिनों में से एक दिन है, हज के दिनों में से एक दिन है, गिनती के कुछ दिनों में से एक दिन है, साल के बेहतर दिनों में से एक दिन है, जिस दिन इस्लामी जीवन प्रणाली की पूर्ति की गई, इस दिन की महानता का एहसास एक यहूदी को होता है तो अमीरुल मोमिनीन उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से बोल उठता है कि ऐसा दिन अगर हमारे पास होता जिस में धर्म की पूर्ति हुई है तो हम यहूदी समुदाय उसे ईद का दिन बना लेते।

यौमे अरफ़ा हज का दूसरा दिन है। आज के दिन फजर की नमाज़ मिना में अदा करने के बाद हाजी लोग कुछ देर ज़िक्र में बिताते हैं, जब सूरज उदय हो जाता है तो जोर ज़ोर से हज का स्लोगन तल्बिया पुकारते हुए मिना से अरफात जाते हैं, सूर्योदय से पहले अराफात के लिए प्रस्थान करना सुन्नत के खिलाफ है, अराफात पहुंचकर सूर्य ढ़लने से पहले तक यदि सम्भव हो सके तो नमिरा घाटी में ठहरते हैं वरना अराफात के मैदान में चले जाते हैं। वैसे अरफ़ा में ठहरने का समय सूर्य ढलने के बाद शुरू होता है। सूर्य ढलने के बाद सारे हाजी अरफ़ा में जमा हो चुके होते हैं।

अरफ़ा में ठहरना हज का मूल स्तंभ है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः

الحج عرفة – صحيح النسائی 3016

अर्थात् अरफ़ात के मैदान में ठहरने का नाम ही हज है। (सही निसाईः 3016)

मानो यदि किसी से यह रह गया तो उसका हज ही नहीं हुआ, अराफात में जमा होने के बाद सबसे पहले इमाम का लंबा और प्रभावशाली संबोधन होता है, जिसे सारे हाजी सुनने की कोशिश करते हैं, जब इमाम ख़ुत्बा (धर्मोपदेश) समाप्त करता है तो अज़ान दी जाती है, और ज़ुहर और असर की नमाज़ एक अज़ान और दो इक़ामत के साथ दो दो रकअतें कर के ज़ुहर ही के समय अदा की जाती है, अगर इमाम की आवाज़ कानों तक न पहुंच रही हो तो अपने अपने ख़ीमे में दो दो रकअत कर के उन्हें अदा कर लेना भी काफी है।

अरफा के दिन हाजियों के लिए रोज़ा रखना सुन्नत के खिलाफ है, (मुस्नद अहमद: 15/180) हां! जो लोग मैदाने अराफात में उपस्थित नहीं हैं अपने-अपने देशों और घरों में हैं, उनके लिए अरफ़ा का रोज़ा अपार पुण्य का कार्य है, सही मुस्लिम की रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

صيامُ يومِ عرفةَ، أَحتسبُ على اللهِ أن يُكفِّرَ السنةَ التي قبلَه. والسنةَ التي بعده – صحیح مسلم: 1162 

मुझे अल्लाह से उम्मीद है कि अरफा के दिन का रोज़ा एक साल अगले और एक साल पिछले पापों का प्रायश्चित हो जाए।

अरफा का दिन बहुत महत्व और फ़ज़ीलत रखने वाला दिन है, इस दिन का पुण्य बयान करते हुए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः

ما من يوم أكثر من أن يعتق الله فيه عبدا من النار من يوم عرفة – صحیح مسلم: 1348

कोई ऐसा दिन नहीं जिसमें अल्लाह अरफ़ा के दिन से अधिक अपने दासों को नरक से मुक्ति प्रदान करे।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी कहा:

إنَّ اللهَ يُباهي بأهلِ عرفاتٍ أهلَ السَّماءِ، فيقولُ لهم: انظروا إلى عبادي جاءوني شُعثًا غُبرًا . صحيح ابن خزيمة 2839

अल्लाह तआला फरिश्तों (स्वर्गदूतों) के सामने अरफ़ा वालों के प्रति गर्व करते हुए कहता है: मेरे दासों को देखो! वह कैसे गर्द और ग़ुबार में लिपटे और बिखरे बालों के साथ मेरे लिए आए हैं। अल्लाह की यह माफी देखकर शैतान आज के दिन सबसे अपमानित और घृणा का पात्र होता है।

अरफा का दिन विशेषकर हाजियों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा ज़िक्र, दुआ और क्षमा मांगने का दिन है, अरफ़ा में मांगी गई दुआयें बेहद मूल्यवान हैं। सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत के अनुसार हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमर बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:
“उत्तर प्रार्थना वह है जो अरफ़ा में मांगी जाए, मैं और मेरे से पहले नबियों ने जो दुआएँ की हैं उन में से बेहतर दुआ यह है

لا الہ الا اللہ وحدہ لا شريک لہ، لہ الملک ولہ الحمد وھوعلی کل شيیء قدير

” अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूजा योग्य नहीं और उसका कोई साझी नहीं, सारे जहां का राज्य और हर प्रकार की प्रशंसा उसी के लिए है और वह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है “।

इस दुआ की शुरुआत कलमा-ए-तैय्येबा ला इलाहा इल्लल्लाह से होती है, जिसको ज़ुबान से बोले बिना एक आदमी मुसलमान नहीं हो सकता, लेकिन खेद की बात है कि सारे मुसलमान इस शब्द को पढ़ते हैं लेकिन कितने लोग इसके अर्थ से भी अनभिज्ञ हैं और कुछ लोग इसके अर्थ से परिचित तो हैं पर इसके अनुसार उनका जीवन गुजर नहीं रहा है। कलमा-ए-तैय्येबा का सीधा मतलब होता है अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूजा योग्य नहीं, यानी इबादत (पूजा) का अधिकार रखने वाला मात्र अल्लाह की महिमा है, इबादत क्या है? नमाज़, रोज़ा, हज, बलिदान, दुआ, व्रत और नियाज़, रुकूअ (झुकना) और सज्दा (साष्टांग) यह सब पूजा की श्रेणी में आते हैं जो केवाल अल्लाह के लिए विशेष होने चाहिए।

अरफ़ा में ठहरने का समय सूर्य ढलने से लेकर दसवीं की रात को फजर उदय होने से पहले तक रहता है, इस दौरान हाजी एक घंटे के लिए भी अरफात में चला जाए तो हज का यह स्तंभ पूरा हो जाता है। कुछ विद्वानों ने कहा कि मग्रिब से पहले अगर अरफात से निकल गए और फ़जर उदय होने से पहले तक लौट कर न आए तो उसका हज जरूर हो जाएगा लेकिन उसे दम देना अनिवार्य होगा।
#जानिए_हज_में_क्या_होता_है

लेखः सफात आलम तैमी

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