इस धरती पर पाये जाने वाले अधिकांश धर्मों में कुछ लोगों को अल्लाह और दासों के बीच माध्यम बना लिया गया है जो क्षमा प्रदान करने, परोक्ष का ज्ञान रखने और दोसों को अल्लाह तक पहुंचाने का दावा करते हैं।

इस धरती पर पाये जाने वाले अधिकांश धर्मों में कुछ लोगों को अल्लाह और दासों के बीच माध्यम बना लिया गया है जो क्षमा प्रदान करने, परोक्ष का ज्ञान रखने और दोसों को अल्लाह तक पहुंचाने का दावा करते हैं। लेकिन इस्लाम डाइरेक्ट हमें ऊपर वाले से मिलाता है, यहाँ किसी मिडिल-मैन की ज़रूरत नहीं। इस्लाम ने इंसानी सुख और शान्ति को किसी देवी देवता से नहीं जोड़ा बल्कि डाइरेक्ट ऊपर वाले से सम्पर्क करने का आदेश दिया। मुसलमानों की इबादत में अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य को Middle Man नहीं समझा जाता। अल्लाह अपने दासों से निकट है वह प्रत्येक सृष्टि की बातें सुनता है कि उसका एक नाम है “अस्समीअ”। वह प्रत्येक सृष्टि को जानता है कि उसका एक नाम है “अल-अलीम”। वह प्रत्येक सृष्टि को देख रहा है कि उसका एक नाम है “अल-बसीर”। वह प्रत्येक सृष्टि की निगरानी कर रहा है कि उसका एक नाम है “अर्रक़ीब”। इस्लाम में कोई मनुष्य माफी जारी करने का अधिकार नहीं रखता, ब्रह्माण्ड पर अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य का प्रभाव नहीं, सारा अधिकार अल्लाह के पास है।

यदि किसी के मन में यह प्रश्न पैदा हो कि इस्लाम में प्रवेश करने के लिए अल्लाह की इबादत की गवाही देने के साथ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को संदेशवाहक मानना आवश्यक होता है तो क्या यह ऊपर वाले और दोसों के बीच Middle Man मानना नहीं ? तो इसका उत्तर यह है कि मुसलमान मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को Middle Man या माध्यम नहीं मानते बल्कि मानव मात्र और अन्तिम संदेष्टा मानते हैं। क्यों कि एक व्यक्ति जब अल्लाह की पहचान प्राप्त करने के बाद उसकी दासता को पूर्ण रूप में स्वीकार कर लेता है तो स्वयं यह प्रश्न पैदा होता है कि उसकी दास्ता बजा लाने का नियम कौन बतायेगा? विदित है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ही नियम बताया, उन पर इस्लामी शास्त्र उतरा, उन्हों ने मानव का मार्गदर्शन किया, हम मुसलमान उनका सम्मान करते हैं, उनसे अपनी जान से अधिक प्रेम करते हैं लेकिन उनको अल्लाह तक पहुंचने के लिए Middle Man नहीं समझते, यदि किसी ने पूजा का कोई काम उनके लिए भी किया तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा।

इस्लाम ने मुसलमान की बुद्धि को भी आज़ाद किया, धर्म के मामले में भी बुद्धि विवेक से काम लेने पर बल दिया और मतभेद की स्थिति में क़ुरआन और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों को निर्णायक सिद्ध किया, कि सृष्टा ही सृष्टि के हित को बेहतर तरीक़े से समझ सकता है।

यह है इस्लाम की महानता जो सादा, स्पष्ट, बुद्धि-संगत, समझ में आने वाला और मानव स्वभाव से लगता हुआ धर्म है। जिस में अंधविश्वास नहीं, अक़ल से परे कोई बात नहीं, पैत्रिक प्रथाएं नहीं। न किसी इंसान की जागीरदारी है न पुजारियों का अधिकार चलता है। हर इंसान बुद्धि से काम लेकर सच्चाई को अपना सकता है, स्वयं क़ुुरआन और हदीस समझकर उसे अपने व्यवहारिक जीवन में बरत सकता है।

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