स्वयं सेवक दिवसपांच दिसंबर को आज ही के दिन हर साल ” अंतर्राष्ट्रीय स्वयं सेवक दिवस ” मनाया जाता है,  स्वयं सेवा क्या है? हर वह शारीरिक, या मांनसिक या हार्दिक, या बौद्धिक या आर्थिक कोशिश जिसे मनुष्य अपने अधिकार से अंजाम देता है, उसे करना उसके लिए जरूरी नहीं होता। उदाहरण के रूप में शव को स्नान कराना, कब्र खोदना, रास्ते से कष्टदायक वस्तु को हटा देना, किसी भाई की मदद करना, किसी से परेशानी दूर कर देना, किसी को कुछ सिखा देना, आदि। तात्पर्य यह कि अपने क्षेत्र में काम करते हुए कुछ स्वैच्छिक सेवा करलें तो इसका बड़ा महत्व है, आप रास्ते से गुजर रहे हैं किसी को रोड पर पैदल चलते देखा उसे अपनी गाड़ी में बैठा लिया, आप टैक्सी चलाते हैं किसी गरीब व्यक्ति के पास किराया नहीं है उसे उसकी जगह तक छोड़ दिया। यह सब स्वैच्छिक सेवा है। इस काम का क्या महत्व है इसे जानना है तो कुरआन और हदीस का आध्ययन करके देखें कि विभिन्न स्थानों पर अल्लाह तआला ने इस पर उभारा गया है। अल्लाह तआला ने फरमाया:

 لَّا خَيْرَ فِي كَثِيرٍ مِّن نَّجْوَاهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَاحٍ بَيْنَ النَّاسِ ۚ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّـهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا  سورة النساء 114  

उनकी अधिकतर काना-फूसियों में कोई भलाई नहीं होती। हाँ, जो व्यक्ति सदक़ा देने या भलाई करने या लोगों के बीच सुधार के लिए कुछ कहे, तो उसकी बात और है। और जो कोई यह काम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए करेगा, उसे हम निश्चय ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेंगे । (सूरः अन्निसा 114)

सन्न अबी दाऊद की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

ألا أخبرُكم بأفضلِ  من درجةِ  الصيامِ والصلاةِ  والصدقةِ ؟  قالوا بلى، قالإصلاحُ ذاتِ البينِ ، وفسادُ ذاتِ البينِ الحالِقةُ. صحیح ابی داؤد  4919

क्या मैं तुझे उस प्रक्रिया के बारे में न बताऊँ जो तुम्हारे लिए (स्वैच्छिक) रोज़े, नमाज़ और दान के सवाब से भी बेहतर है? लोगों ने कहा: निश्चित बताइए, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: यह आपसी संबंध की सटीकता है, क्योंकि आपसी संबंधों को बिगाड़ना मूंडने वाली बात है।  (सही अबी दाऊद: 4919)

सुलह सफाई की कोशिश करना और इसके लिए समय निकालना इस्लाम की दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण काम और स्वैच्छिक प्रक्रिया है जिसकी ओर उपर्युक्त हदीस में संकेत किया गया कि यह स्वैच्छिक नमाज़, स्वैच्छिक रोज़ा और दान से भी बेहतर है। यहां तक कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दो मतभेद रखने वालों के बीच सुलह सफाई के लिए झूठ बोलने की भी गुंजाइश रखी है। (सही मुस्लिम: 2605)

फिर हम देखते हैं कि हर दौर में अल्लाह के नेक बंदों ने मानवता की सेवा की, सूरः अल-कहफ में हज़रत मूसा और ख़िज़्र अलैहिमुस्सलाम की घटना में वर्णित है कि हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम दो अनाथ बच्चों का घर सीधा कर देते हैं जो घर गिरने के करीब था हालांकि कि बस्ती के लोगों ने उनके भोजन से इनकार कर दिया था (सूरः अल-कहफ 60-82) उसी सूरः में जुल्करनैन का किस्सा भी आया है कि पृथ्वी की सैर करते करते ऐसे लोगों के पास पहुंचे जो उनकी बात नहीं समझे थे, उन से लोगों ने याजूज और माजूज के दंगों की शिकायत की और अनुरोध किया कि हमारे और याजूज माजूज के बीच एक बंद निर्माण कर दें, तो जुल्करनैन ने उनकी रक्षा के लिए दोनों के बीच एक लोहे की दीवार बनाई और फिर उसमें पिघला हुआ तांबे डाल कर एक मजबूत दीवार बना दिया, (सूरः अल-कहफ 83-98) मूसा अलैहिस्सलाम जब मदयन पहुंचते हैं तो वहां पर एक जगह दो महिलाओं को देखा जो अपने जानवर को पानी पिलाने का इंतज़ार कर रही थी कि मर्द हटेंगे तो पानी पिला लेंगे, मूसा अलैहिस्सलाम ने उनकी सेवा की और उनके जानवरों को पानी पिला दिया। (सूरः अल-कहफ 23-24)

देशों तथा समुदायों के विकास में स्वैच्छिक सेवा का बहुत महत्व है, किसी भी काम को ड्यूटी समझ कर करना उसको अपनी असली बर्कत से वंचित कर देता है, इस्लाम स्वैच्छिक सेवा पर आधारित एक सार्वभौमिक धर्म है जिसके मानने वालों ने इतिहास के हर दौर में इस रास्ते मैं निःस्वार्थ बलिदान दिया है, लेकिन जब से पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव मुस्लिम समाज पर पड़ा है तब से हमारे अंदर यह विचार पनपना शुरू हुआ कि जिस काम में हमारा भौतिक लाभ न हो उसमें समय लगाना बेफाइदा, मानव समाज में आज हित पूजा की प्रवृत्ति बहुत आम होने लगा है, इस सोच को फैलाने में पूरी दुनिया में प्रचलित syllabus का महत्वपूर्ण रोल है जिस पर पश्चिम की छाप पड़ी हुई है, अतः हमारा बच्चा ऐसे पाठ्यक्रम द्वारा शुरू से ही हित पूजा और स्वार्थ सीखता है। पश्चिम से उठी हित पूजा की इस लहर से हम प्रभावित हुए बिना न रह सके, इसलिए हर काम में हमारा पहला सवाल यह होता है कि इसमें हमारा भौतिक लाभ क्या है? लेकिन कभी हमने विचार किया कि जितना हम भौतिक दुनिया के सम्बन्ध में सोचते हैं उसकी तुलना में हमेशा रहने वाले जीवन महाप्रलय के दिन के सम्बन्ध में हम कितना सोचते हैं ? क्या भंडारण इकट्ठा किया है हमने उस दिन के लिए जिस दिन हम अल्लाह से मिलेंगे?

लेकिन हम अपने लोगों से निराश नहीं हैं आज भी इस दुनिया में ऐसे आदर्श मुसलमान पाए जाते हैं जो दूसरों की खातिर जीते हैं। दूसरों की सेवा करके गर्व महसूस करते हैं, हमारे एक नव-मुस्लिम भाई ईब्राहीम जी IPC में नेपाली भाषा में सहायक दाई के रूप में काम करते हैं, उनकी यह अदा मुझे बहुत पसंद आई कि वह हमेशा दूसरों की सेवा में लगे रहते हैं, कहीं से फोन आ गया कि ऐसी वैसी परेशानी है इब्राहीम भाई तुरंत उसकी सहायता के लिए चले जाते हैं, दिन हो कि रात हो, जिस समय बुलाएं वह सेवा के लिए मौजूद रहेंगे, इसी लिए उनके समुदाय में उनकी एक प्रतिष्ठा है, एक दिन उनके जान पहचान के एक कुवैती दोस्त ने अपनी बीमार बेटी के लिए उनसे किडनी मांगी, इब्राहीम भाई बिना किसी संकोच के फ्री में किडनी देने के लिए तैयार हो गए, मैं उस सभा में मौजूद था, मैंने सुझाव दिया कि किडनी देने का मामला है गंभीरता से मुद्दे पर विचार कर लीजिए, घर वालों से भी सलाह ले लें, लेकिन उनका फैसला अटल था, हालांकि वह इसका कोई बदला नहीं ले रहे थे, यह अलग बात है कि check up के बाद वह un fitt साबित हुए और किडनी डोनेट करने से रह गए। लेकिन जाहिर है कि उनको अपनी नीयत का पुण्य तो मिल गया।

प्यारे भाइयो! आज युवाओं से समाज और राष्ट्र के लिए काम लेने की जरूरत है, हमारे युवा समय देने के लिए तैयार हो सकते हैं, और युवाओं से ही कोई राष्ट्र विकास करता है लेकिन शर्त यह है कि इस काम के लिए उनके मन मस्तिष्क को जागरुक किया जाए। कुवैत में उर्दू भाषा के कितने ऐसे युवाओं को हम जानते हैं जो स्वैच्छिक सेवा के लिए हर समय तैयार रहते हैं, किनते युवा हैं जो Duty करने के बाद उलमा और दुआत के भाषणों को रिकॉर्ड करते हैं, यूट्यूब पर अपलोड करते हैं, और वाटस अप द्वारा इसे फैलाते रहते हैं, कितने नौजवानों ने वेबसाइट खोल रखा है जिस पर प्रामाणिक जानकारी प्रसारित करते रहते हैं, कितने युवा हैं जो धार्मिक पुस्तक तथा पत्रिका आदि बांटते रहते हैं। तात्पर्य यह कि हजारों ऐसे युवा हैं जो अपने क्षेत्र में रहते हुए समाज की सेवा कर रहे हैं, अल्लाह उन्हें अधिक बल प्रदान करे।

उसी तरह हमारी मातायें और बहनें जो घरों में होती हैं, उन्हें भी चाहिए कि समाजी कामों में बढ़-चढ़ कर भाग लें। अनुभव बताता है कि पुरुषों की तुलना में महिलायें स्वैच्छिक सेवा में आगे होती हैं और उन से काम भी अधिक निमटता है। हमारी जो बहनें कुरआन पढ़ना जानती हैं दूसरों को कुरआन सिखा कर समाज सेवा कर सकती हैं, जो बहनें इंटरनेट की जानकारी रखती हैं वे इंटरनेट द्वारा समाज सेवा का काम कर सकती हैं।

रही बात आपकी जो अभी हमें पढ़ रहे हैं, आपको खुद से सोचना है कि आपने लोगों के लिए और समाज के लिए अब तक क्या किया है? कोई यह न सोचे कि हमसे क्या हो सकता है, हममें से हर आदमी इस बात के लिए जिम्मेदार है कि वह अपने क्षेत्र में स्वैच्छिक सेवा करे, करने के काम बहुत हैं, हम नहीं जानते कि अल्लाह किससे कौन सा काम ले ले इसलिए स्वयं को उपेक्षित न समझें, आप अपने आप में एक संगठन बन सकते हैं, आप समाज के लिए जो भी सेवा प्रदान कर सकते हैं पहली फुरसत में इसके लिए खुद को तैयार करें, आप जिस क्षेत्र में काम कर रहे हों आप को सोचना होगा कि हम से हमारे देश, हमारे समाज तथा स्वयं हमारे दीन को क्या लाभ हो रहा है, ऐसी सोच हर मुसलमान की होनी चाहिए।

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