आज मई की प्रथम तिथि है, पहली मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है, मई का महीना आते ही मजदूरों के अधिकारों और कर्तव्यों की बातें होने लगती हैं, वे मजदूर जिनके परिश्रम से दुनिया में रंगीनियां हैं, वे मजदूर जिनके सहारे हम ऐश और इशरत की जींदगी गुज़ार रहे हैं, वह मजदूर जो खून पसीना एक करके हम तक आहार पहुंचा रहे हैं, लेकिन अजीब विडंबना है कि आज भी मजदूरों का यह तबका बहुत दुखद जीवन गुज़ार रहा है, वह हमारे लिए मेहनत करते हैं, हमारे आराम के लिए अपने आराम को त्याग देते हैं, लेकिन वे आर्थिक जीवन में अभी भी बहुत पीछे हैं, बहुत पीछे बल्कि अधिक पीछे होते चले जा रहे हैं, और उनकी कड़ी मेहनत के फलस्वरूप पूंजीपति आगे बढ़ते जा रहे हैं।

आइए आज हम देखते हैं कि इस्लाम ने मज़दूरों का क्या महत्व बयान किया है, मज़दूरों के क्या अधिकार रखे हैं, और उनके क्या कर्तव्य होते हैं।

इस्लाम ने जीवन के दूसरे विभाग की तरह मजदूरी के सम्बन्ध में भी विस्तृत हिदायत दी हैं,  श्रम अधिकार बयान किए हैं, फिक्ह की पुस्तकों में इजारा के नाम से फ़ुक़्हा ने मजदूरों के अधिकार और कर्तव्य गिनाए हैं, आम तौर पर इस्लाम अपने मानने वालों को मेहनत करने पर प्रेरित करता है, बेकारी, काम चोरी, तन आसानी और दूसरों के लुकमों पर पलने को घृणित समझता है।

इस धरती पर मानवता की सबसे बेहतर जमाअत अंबिया अलैहिमुस्सलाम हैं, उन पवित्र व्यक्तित्व ने अपने हाथ की कमाई पर गुजर-बसर किया, हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम लिखने और सीने का काम करते थे, हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने नाव बनाया और नाविकों का काम किया, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने ससुर के पास आठ दस साल तक मजदूरी की, इब्राहीम कपड़े बेचने का काम करते थे, हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम भी कपड़ा बनकर व्यापार करते थे, हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम तीर बनाते और बेचते थे, यह्या अलैहिस्सलाम जूते सीते और जूते का व्यापार करते थे, और हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम बढ़ई गिरी करके जीने का प्रबंधन करते थे।

जब नुबूवत का सिलसिला अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर समाप्त हो गया तो आप ने व्यवसाय और व्यापार को दीन का एक हिस्सा ठहराया और और उसे इबादत की श्रेणी में शामिल किया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बचपन में कुछ सिक्कों के बदले मक्का वालों की बकरियां चराईं। (सही बुख़ारी: 2262)

आपने लोगों को आजीविका कमाने पर उभारा, काम करने की ताकीद की, सुस्ती और बेकारी से मना किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “जो अपने हाथ की कमाई से कमा कर खा लेते हैं वह सबसे पवित्र रोज़ी है” (सहीहुल जामिअ़: 1566)

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “अपनी मेहनत से कमा कर खाना सबसे अच्छा भोजन है”। (सही बुख़ारी: 2072)

किसी ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा या रसूलल्लाह कौन सी कमाई शुद्ध कमाई है तो आप ने फरमाया:

“अपने हाथ की कमाई और हर वह सच्ची तिजारत जिस में धोखा न हो”। (सहीहुल जामिअ़: 1033)

इन हदीसों से मालूम होता है कि इस्लाम में मजदूरों को बहुत सम्मानित स्थान प्राप्त है।

मजदूरों के अधिकार:

बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है, मारूर बिन सुवैद रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि मैंने अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हू को देखा कि वह एक पोशाक पहन रखे थे, और उनके दास के बदन पर भी वैसी ही पोशाक थी, मैंने इसके बारे में उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि नबी सल्ल. के युग में एक दिन उन्होंने एक आदमी से गालम गलोच कर लिया, और उसे उसकी माँ की गाली दे दी, वह आदमी अल्लाह के रसूल के पास आया और आपसे उसका उल्लेख किया तो आप सल्ल. ने फरमाया: ऐ अबू ज़र! तेरे अंदर जाहिलियत की बुबास पाई जाती है। वह तुम्हारे भाई हैं, जिन्हें अल्लाह तुम्हारे अधीन रखा है, अल्लाह जिसके अधीन उसके भाई क्या हो उसे चाहिए कि जो खुद खाए वही उसे खिलाए जो खुद पहने वही उसे पहनाए, उसे ऐसे काम असुविधा न दे जो उसके लिए कठिन हो, और अगर ऐसे काम की जिम्मेदारी सौंप ही दे तो उसकी मदद करे। (बुख़ारी, मुस्लिम)

मजदूरों के अधिकारों में सबसे पहला मुद्दा मजदूरी के निर्धारण का आता है कि मजदूरी पहले स्पष्ट कर दी जाए, इसे अस्पष्ट न रखा जाए:हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:

نهَى رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم عن استئجارِ الأجيرِ حتَّى يُبيَّنَ له أجرُه (التعليقات الرضية: 440/2  

“रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मजदूर की मजदूरी निर्धारित किए बिना मजदूर रखने से मना फ़रमाया”।  ( अत्तालीक़ात अर्रज़िया  440/2)

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी को उसकी मज़दूरी कम न देते थे, बल्कि ऐसा करने वालों के संबंध में सख़्त वईद बताईं, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूरी मजदूरी अदा करने की ताकीद करते हुए कहा किः

أعطوا الأجيرَ أجرَه قبل أن يجِفَّ عرَقُه  ۔ الترغيب والترهيب: 3/78

“मजदूर की मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले अदा कर दो”। (अत्तर्ग़ीब वत्तर्हीब: 3/78)

अगरचे यह हदीस ज़ईफ है लेकिन इसका अर्थ सही है, मजदूर की मजदूरी अदा करने में टालमटोल नहीं होना चाहिए सही बुखारी की रिवायत है आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

قال اللهُ : ثلاثةٌ أنا خصمهم يومَ القيامةِ : رجلٌ أعطى بي ثم غدرَ ، ورجلٌ باع حرًّا فأكل ثمنَه ، ورجلٌ استأجرَ أجيرًا فاستوفى منهُ ولم يُعْطِه أجرَه ۔ صحيح البخاري: 2227

 अल्लाह तआला फरमाता है मैं महा-प्रलय के दिन तीन व्यक्तियों का दुश्मन हूंगा उनमें से एक वह है जो किसी मजदूर को मजदूरी पर रखे उससे पूरा काम ले और मजदूरी न दे। (सही बुख़ारी: 2227)

यहां उन साहूकारों के लिए चेतावनी है जो गरीबों के खून पसीना की कमाई हड़प जाते हैं, विडंबना यह है कि हमारे ही कुछ भाई जो खाड़ी में कमाने आए हैं, अपने ही देशवासियों से काम करा कर उनकी मेहनत की कमाई हज़म कर जाते हैं, उन गरीबों की मजबूरी का लाभ उठाते हैं, आए दिन इस तरह की घटनाओं सुनने को मिलती हैं, याद रखें आज आपने गरीबों का माल तो सरलतापूर्वक पचा लिया है लेकिन कल क़यामत के दिन वही आपके हरीफ़ बनकर अल्लाह के दरबार में हाज़िर होंगे। सही मुस्लिम की रिवायत है, एक बार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा से पूछा था: जानते हो मुफ्लिस किसे कहते हैं ? लोगों ने कहा: जिसके पास दिरहम और दीनार न हो वह हमारी नज़र में मुफ्लिस है। जवाब मिला: नहीं महा-प्रलय के दिन मुफ़लिस वह होगा जो नमाज़, रोज़ा, और सदकात के साथ आएगा, लेकिन उसने किसी को गाली दी होगी, किसी को मारा होगा, किसी का खून बहाया होगा, किसी पर आरोप लगाया होगा, किसा का माल खाया होगा, अतः उसकी सारी नेकियाँ उसके दावेदारों को दे दी जाएंगी और जब उसके पास नेकी न रहेगी तो दावेदारों के पाप उसके खाते में लिख दिए जाएंगे और उसे नरक में डाल दिया जाएगा। (सही मुस्लिम: 2581)

इस्लाम ने यह भी आदेश दिया है कि श्रम से उसकी शक्ति और ताकत के अनुसार ही काम लिया जाए, उनके साथ व्यवहार हाकिमाना नहीं बल्कि भाईचारे के अनुसार होना चाहिए।

कुरआन में अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की मजदूरी का उल्लेख किया है कि जब हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम ने मजदूरी के तौर पर मूसा अलैहिस्सलाम को रखना चाहा तो फरमाया:

وَمَا أُرِيدُ أَنْ أَشُقَّ عَلَيْكَ ۚسَتَجِدُنِي إِن شَاءَ اللَّـهُ مِنَ الصَّالِحِينَ ۔ سورہ القصص: 27

“मैं यह नहीं चाहता कि आपको किसी कठिनाई में डालें, अल्लाह ने चाहा तो आगे चलकर आप मुझे भला आदमी पाएंगे”।  (सूरः अल-कसस: 27)

आयत से पता लगा कि आपका व्यवहार मजदूर के साथ ऐसा होना चाहिए कि उसे किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक कष्ट न हो, उसकी ड्यूटी का समय निर्धारित होना चाहिए, उसे सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए, उसे आराम करने का मौका मिलना चाहिए।

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र जीवनी हर इंसान के लिए आदर्श और नमूना है, आपके एक सेवक हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु अपने जीवन का व्यक्तिगत मामला बताते हुए कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दस साल तक सेवा किया, लेकिन अल्लाह की क़सम! इस अवधि में कभी आपने मुझे उफ़ तक नहीं कहा, और कभी ऐसा नहीं हुआ कि आपने कहा हो कि तुमने ऐसा क्यों किया और ऐसा क्यों नहीं किया।? (सही मुस्लिम: 2309)

मजदूरों की जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य:

जहां इस्लाम ने मज़दूरों के अधिकार बताए हैं वहीं यह भी ताकीद की है कि उनकी कुछ जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य भी हैं, जिसकी ओर कुरआन ने दो संक्षिप्त शब्दों में संकेत दिया हैः

قَالَتْ إِحْدَاهُمَا يَا أَبَتِ اسْتَأْجِرْهُ ۖ إِنَّ خَيْرَ مَنِ اسْتَأْجَرْتَ الْقَوِيُّ الْأَمِينُ ۔ سورہ القصص: 26 

 “इन दोनों में से एक ने कहा कि अब्बा जी! आप उन्हें मजदूरी पर रख लीजिए, क्योंकि जिन्हें आप मजदूरी पर रखें उनमें सबसे अच्छा वह है जो मजबूत और भरोसेमंद हो।”  (सूरः अल-कसस: 26)

इस आयत में दरअसल संकेत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के किस्से की ओर है कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने दो लड़कियों के जानवर को पानी पिला दिया तो इन दो लड़कियों ने अपने पिता के पास जाकर पूरी घटना सुनाई और कहा कि आप उन्हें मज़दूर रख लीजिए क्योंकि वे ताक़तवर हैं और भरोसेमंद भी।

पता यह चला कि मज़दूर की जिम्मेदारी है कि वह स्वयं काम की क्षमता रखता हो, काम करने की भी क्षमता रखता हो, काम को अमानत दारी से निपटा रहा हो, समय का पाबंद हो, अपने काम से मतलब रखता हो, समर्पण और लगन से काम करता हो। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

 إنَّ اللهَ تعالى يُحِبُّ إذا عمِلَ أحدُكمْ عملًا أنْ يُتقِنَهُ ۔ صحيح الجامع: 1880

 अल्लाह पसंद करता है कि जब तुम में से कोई काम करे तो उसे अच्छे तरीके से अंजाम दे। (सहीहुल जामिअ़: 1880)

यह थीं कुछ बातें मजदूर दिवस के असवर पर लेकिन हम यहाँ यह कहना चाहेंगे कि इस्लाम मज़दूरों के लिए वर्ष में एक बार दिवस मनाने का समर्थक नहीं बल्कि उसे हर समय उसका अधिकार देने का आदेश देता है, यक़ीन कीजिए कि मजदूर को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उसके नाम पर कोई दिन मनाया जाए, उसका हित उसकी मजदूरी से जुड़ा है और बस। आज अगर मजदूरों के संबंध में इस्लामी शिक्षाओं को अपना लिया जाए तो समाज में शांति स्थापित हो सकती है, लूट घसोट और अपराध पर काबू पाया जा सकता है, और दुनिया शांति का गहवारा बन सकती है।

[ica_orginalurl]

Similar Posts