समय वास्तव में जीवन है, और यही इंसान की वास्तविक आयु है, जिसकी सुरक्षा हर भलाई का स्रोत और जिसे नष्ट करना हर बर्बादी और बुराई का कारण है। क्योंकि इंसान इस दुनिया में एक जिम्मेदार इकाई है, उसे अपने निर्माता और मालिक के पास उपस्थित होना है और अपने किए का हिसाब व किताब चुकाना है। सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
لا تزول قدما عبدٍ حتى يُسألَ عن عمُرهِ فيما أفناهُ، وعن علمِه فيما فعل، وعن مالِه من أين اكتسَبه وفيما أنفقَه، وعن جسمِه فيما أبلاهُ – سنن الترمذی 2417
महा-प्रलय के दिन एक बन्दे का कदम अपनी जगह से हिल नहीं सकता जब तक कि उस से पूछ न लिया जाए कि उम्र कहाँ बिताई, अपने ज्ञान के अनुसार कहां तक अमल किया, माल कहां से कमाया और कहां खर्च किया और अपना शरीर किस चीज में लगाया । (सुनन तिर्मिज़ी 2417)
समय का महत्व बताने के लिए अल्लाह तआला कई सूरतों की शुरुआत में उसके कुछ भागों जैसे रात, दिन, सुबह, चाशत का समय और युग की क़स्में खाई हैं, जैसा कि अल्लाह तआला कहता है:
وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَىٰ وَالنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّىٰ – سورۃ اللیل1-2
” क़सम है रात की जब वह छा जाए और दिन की जब वह उज्ज्वल हो ” (सूरः अल्लैल1-2)
وَالْفَجْرِ وَلَيَالٍ عَشْرٍ- سورۃ الفجر1-2
” क़सम है सुबह की और दस रातों की ”
وَالضُّحَىٰ وَاللَّيْلِ إِذَا سَجَىٰ – سورہ الضحی 1-2
” साक्षी है चढ़ता दिन, और रात जबकि उसका सन्नाटा छा जाए ”
وَالْعَصْرِ إِنَّ الْإِنسَانَ لَفِي خُسْرٍ- سورۃ العصر1-2
” गवाह है गुज़रता समय, कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है। ”
क़ुरआन करीम ने दो मौकों पर इंसान की हसरत और नादानी का उल्लेख किया है जब कि वह समय की बर्बादी पर पछताएगा:
पहला अवसर: मौत के समय:
अल्लाह तआला ने फरमाया:
رَبِّ لَوْلَا أَخَّرْتَنِي إِلَىٰ أَجَلٍ قَرِيبٍ فَأَصَّدَّقَ وَأَكُن مِّنَ الصَّالِحِينَ – سورہ المنافقون آیت نمبر10
“ऐ मेरे रब! तूने मुझे कुछ थोड़े समय तक और मुहलत क्यों न दी कि मैं सदक़ा (दान) करता (मुझे मुहलत दे कि मैं सदक़ा करूँ) और अच्छे लोगों में सम्मिलित हो जाऊँ।”
लेकिन फिर काहे को पछतावा जब चिड़िया चुग गई खेत
وَلَن يُؤَخِّرَ اللَّـهُ نَفْسًا إِذَا جَاءَ أَجَلُهَا ۚ – سورہ المنافقون آیت نمبر 11
किन्तु अल्लाह, किसी व्यक्ति को जब तक उसका नियत समय आ जाता है, कदापि मुहलत नहीं देता। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है
दूसरा अवसरः
जिस में इनसान समय की बर्बादी पर पछताएगा वह हिसाब व किताब के बाद नरक में प्रवेश करने के बाद का अवसर है। अल्लाह तआला ने फरमाया:
وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ – سورہ فاطر آیت 37
वे वहाँ चिल्लाएँगे कि “ऐ हमारे रब! हमें निकाल ले। हम अच्छा कर्म करेंगे, उससे भिन्न जो हम करते रहे।” (सूरः फ़ातिर आयत 37)
लेकिन गया वक्त फिर हाथ आता नहीं, अल्लाह झंझोरने वाला सवाल करेगा जिससे उनकी सारी इच्छायें मिट्टी में मिल जाएंगी, अल्लाह कहेगा:
أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ ۖ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ – سورہ فاطر آیت 37
“क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी कि जिसमें कोई होश में आना चाहता तो होश में आ जाता? और तुम्हारे पास सचेतकर्ता भी आया था, तो अब मज़ा चखते रहो! ज़ालिमों का कोई सहायक नहीं!” “
जब समय इतना मूल्यवान ठहरा कि समय ही जीवन है यहां तक कि लोग भविष्य में समय नष्ट करने पर ही पछताएँ तो जरूरत थी कि एक मुसलमान समय के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने और उनसे लाभ उठाकर अपने लिए नेकियां एकत्र कर ले।
समय के प्रति एक मुसलमान की जिम्मेदारियाँः
इसलिए समय के प्रति एक मुसलमान की पहली जिम्मेदारी यह है कि वह समय से लाभ उठाने का इच्छुक हो, अपने समय की रक्षा करे जिस तरह वह अपने धन और सम्पत्ति की रक्षा करता है, जब आप बड़ों की सफलता का रहस्य जानना चाहेंगे तो आपको पता चलेगा कि वह अपने समय की असीम सुरक्षा करते और उन्हें लाभदायक कार्यों में इस्तेमाल करते थे, वह अपने समय के मामले में सबसे अधिक चौकन्ना रहे. हसन बसरी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
أدركت أقواماً كانوا على أوقاتهم أشد منكم حرصاً على دراهمكم ودنانيركم
मैं ऐसे लोगों को पाया है, जो तुम्हारे दिरहम व दीनार के लालच से अधिक वे अपने समय के लालची थे।
इसलिए हमें चाहिए कि पाँच चीज़ों को पांच चीजों से पहले ग़नीमत जानें जवानी को बुढ़ापे से पहले, स्वास्थ्य को बीमारी से पहले, मालदारी को फक़ीरी से पहले, फुरसत को मशग़ुलियत से पहले और जीवन को मृत्यु से पहले। (इमाम हाकिम ने इस हदीस को रिवायत किया है और अल्लामा अल-बानी ने इसे सही कहा है)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:
«ما نَدِمْتُ علَى شَيْءٍ نَدَمِي علَى يَوْمٍ غَرَبَتْ شَمْسُهُ، نَقَصَ فِيهِ أَجَلِي وَلَمْ يَزِدْ فِيهِ عَمَلِي».
मुझे इतना अफसोस किसी चीज़ पर नहीं हुआ जितना ऐसे दिन पर हुआ जिस का सूरज डूबा हो और मेरी उमर में कमी आई हो लेकिन उस दिन मेरे अमल में कोई ज़्यादती न हुई हो।